चुनावी सर्वे और मोदी का जादू
विजय विद्रोही कार्यकारी संपादक, एबीपी न्यूज दोनों राज्यों में भाजपा अपने दम पर सत्ता में नहीं पहुंची, तो साफतौर पर मानना ही पड़ेगा कि मोदी-लहर कमजोर हुई है. हालांकि अगर नरेंद्र मोदी विजेता बन कर उभरते हैं, तो कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को भविष्य के लिए अपनी रणनीति बदलनी ही पड़ेगी. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा […]
विजय विद्रोही
कार्यकारी संपादक, एबीपी न्यूज
दोनों राज्यों में भाजपा अपने दम पर सत्ता में नहीं पहुंची, तो साफतौर पर मानना ही पड़ेगा कि मोदी-लहर कमजोर हुई है. हालांकि अगर नरेंद्र मोदी विजेता बन कर उभरते हैं, तो कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को भविष्य के लिए अपनी रणनीति बदलनी ही पड़ेगी.
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए आज करीब दस करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. महाराष्ट्र में 8.33 करोड़ और हरियाणा में 1.63 करोड़. दोनों राज्यों में भाजपा ‘एकला चलो’ की रणनीति अपना रही है और नतीजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अग्निपरीक्षा साबित होनेवाले हैं.
अब तक जितने भी चुनावी सर्वे आये हैं, उनमें दोनों ही राज्यों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर रही है, लेकिन दोनों ही जगह पार्टी अपने दम पर बहुमत नहीं पा रही है. महाराष्ट्र में जरूर एक सर्वे में भाजपा को 154 सीटें मिल रही हैं, लेकिन एक सर्वे में उसके हिस्से में सिर्फ 93 सीटें ही हैं.
यदि सभी सर्वेक्षणों का औसत निकाला जाये, तो भाजपा सवा सौ सीटों पर अटक रही है, जबकि उसे बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए. इसी तरह हरियाणा में बहुमत का आंकड़ा 46 का है, जबकि भाजपा को एक सर्वे में 36 सीटें ही मिल रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी की लहर कमजोर पड़ रही है?
क्या भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना और हरियाणा में कुलदीप विशनोई की हजकां को छोड़ कर खुद का ही नुकसान किया है? क्या मोदी और अमित शाह की जोड़ी जनता की नब्ज पकड़ने में विफल रही है? क्या नतीजों के बाद मोदी-शाह जोड़ी पर सवाल उठाये जायेंगे? इन सवालों के जवाब के लिए हमें 19 अक्तूबर का इंतजार करना होगा.
फिलहाल चुनाव प्रचार में सभी दलों ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई को मुद्दा बनाने की कोशिश की, पर प्रचार अभियान नकारात्मक ही ज्यादा रहा है. दलों ने अपने को पाक-साफ बताते हुए दूसरों को भ्रष्ट जरूर बताया, लेकिन सत्ता में आने के बाद का रोडमैप सामने रखने में विफल रहे. सभी सिर्फ यकीन दिलाते रहे कि उन पर यकीन किया जाये.
चुनाव प्रचार मोदी बनाम अन्य हो कर रह गया. भाजपा चाहती भी यही थी, ताकि मोदी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके. मोदी-लहर को भुनाने की पूरी कोशिश की गयी. इसलिए नजर इस बात पर रहेगी कि मोदी-लहर इन चुनावों में क्या कमाल दिखा पायेगी. हरियाणा पर एक चुनावी सर्वे में जनता से यही सवाल पूछा गया था.
19 फीसदी लोगों ने कहा कि मोदी-लहर जस की तस है, पर 41 फीसदी का कहना था कि लोकसभा चुनावों के मुकाबले मोदी-लहर या उनका मैजिक कुछ कमजोर पड़ा है. 23 फीसदी ने तो स्थानीय मुद्दों को मोदी-मैजिक से ऊपर रखा. गौरतलब है कि हरियाणा में कांग्रेस दस वर्षो से सत्ता में है और महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन पिछले 15 वर्षो से सत्ता में है.
सवाल उठ सकता है कि अगर भाजपा दोनों जगह जीत जाती है, तो क्या इसे मोदी लहर क्यों माना जाये? इसके दो कारण हैं. एक, कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा उस राज्य-विशेष की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को मिलना चाहिए था, पर फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है, जो हरियाणा में चौथे नंबर की पार्टी थी. इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी.
अब अगर दोनों जगह वह पहले नंबर की पार्टी बनती नजर आ रही है, तो उसका श्रेय मोदी-लहर को क्यों नहीं जाना चाहिए?खासतौर से यह देखते हुए कि हरियाणा में भाजपा का संगठन बेहद कमजोर है. लोकसभा में उसने दस में से सात सीटें जरूर जीती थी, लेकिन इनमें से पांच में कांग्रेस से आयात किये गये नेता जीते थे. महाराष्ट्र में तो पिछले 25 वर्षो से भाजपा आधी सीटों पर तो कहीं थी ही नहीं.
वहां अगर वह शिवसेना से अलग होकर सौ सीट पार कर रही है, तो स्वाभाविक रूप से मोदी का या तो जादू चल रहा है या फिर वहां के लोग कांग्रेस के विकल्प के रूप में भाजपा को देख रहे हैं.
हालांकि जितने भी चुनावी सर्वे आये हैं वे सितंबर के आखिरी सप्ताह से लेकर अक्तूबर के पहले सप्ताह के बीच के हैं. ज्यादातर तीन अक्तूबर के आसपास के हैं. तब मोदी अमेरिका में थे. मोदी ने चार अक्तूबर से चुनाव प्रचार शुरू किया था. हरियाणा में पार्टी का संगठन तक नहीं है और जिस महाराष्ट्र में वह केवल 119 सीटों (288 में से) पर ही चुनाव लड़ती आयी है.
इसलिए अगर मोदी के चुनाव प्रचार में उतरने से पहले ही भाजपा महाराष्ट्र में 125 के आसपास सीटें हासिल कर रही है और हरियाणा में उसे 36 सीटें मिल रही हैं, तो फिर उसे तो मोदी के चुनाव प्रचार में उतरने के बाद महाराष्ट्र में पौने दो सौ पार और हरियाणा में पचास के पास पहुंचना ही चाहिए.
अगर आप इन तर्को से सहमत हैं, तो बड़ा सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी की दोनों राज्यों में ताबड़तोड़ रैलियों के बाद पार्टी का आंकड़ा साफ बहुमत दिलानेवाला क्यों नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ यानी दोनों राज्यों में भाजपा अपने दम पर सत्ता में नहीं पहुंची, तो साफतौर पर मानना ही पड़ेगा कि मोदी-लहर कमजोर हुई है. हालांकि अगर नरेंद्र मोदी विजेता बन कर उभरते हैं, तो कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को भविष्य के लिए अपनी रणनीति बदलनी ही पड़ेगी.