वीरान भूमि को बना डाला हरा-भरा जंगल

मिलिए फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया से, जिन्होंने अकेले ही एक ओर जहां हम अपने ऐशो-आराम के लिए बेहिचक पेड़ काट कर कंक्रीट के जंगल बनाते चले जा रहे हैं, वहीं एक ऐसा शख्स भी है जिसने दुनिया की सभी सुख-सुविधाओं को पर्यावरण और जीव जगत की रक्षा के लिए त्याग दिया.असम के जनजातीय समाज से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2014 4:45 AM
मिलिए फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया से, जिन्होंने अकेले ही
एक ओर जहां हम अपने ऐशो-आराम के लिए बेहिचक पेड़ काट कर कंक्रीट के जंगल बनाते चले जा रहे हैं, वहीं एक ऐसा शख्स भी है जिसने दुनिया की सभी सुख-सुविधाओं को पर्यावरण और जीव जगत की रक्षा के लिए त्याग दिया.असम के जनजातीय समाज से ताल्लुक रखनेवाले इस शख्स ने अकेले दम पर 1360 एकड़ का जंगल तैयार कर दिया. आइए जानें कैसे-
लगभग 30 साल पहले, 16 साल के एक नौजवान ने हरियाली की छांह के अभाव में हजारों जीव-जंतुओं को मरते देख, बांस के पौधे लगाने शुरू किये थे. बाढ़ की विभीषिका ने पहले जिस जगह की सारी हरियाली छीन ली थी, जादव मोलाई पयंग के अथक प्रयासों की बदौलत आज वहां 1360 एकड़ का ‘मोलाई’ जंगल फैला है.
यह जंगल अब रॉयल बंगाल टाइगर्स, गैंडों, सैकड़ों हिरणों, खरगोशों के साथ-साथ लंगूरों, गिद्धों सहित कई तरह की प्रजातियों के अन्य पशु-पक्षियों का आशियाना बन चुका है. मोलाई के इस जंगल में हजारों घने पेड़ हैं. इसके अलावा, बांस का जंगल यहां लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैला है. सौ हाथियों का झुंड इस जंगल में लगातार आता-जाता रहता है और साल के छह महीने यहीं बिताता है.
पिछले कुछ सालों में हाथियों के 10 बच्चे भी इस जंगल में पैदा हुए हैं. इस जंगल को तैयार करने की शुरुआत के बारे में पूछने पर मोलाई बताते हैं कि मैं तब 16 साल का था, जब असम में बाढ़ ने तबाही मचायी थी. मैंने महसूस किया कि जंगल और नदी के कछारी इलाकों में आनेवाले प्रवासी पक्षियों कि गिनती धीरे-धीरे कम हो रही है.
यही नहीं, घर के आसपास समय-समय पर दिखने वाले सांप भी गायब हो रहे हैं. इस वजह से मेरा मन बेचैन हो उठा. मोलाई आगे कहते हैं, गांव के बड़े-बुजुर्गो ने मेरे पूछने पर बताया कि जंगल उजड़ने और पेड़ों की कटाई के कारण पशु-पक्षियों का बसेरा खत्म हो रहा है और इसका उपाय यही है कि उन प्राणियों के लिए नये आवास स्थान या जंगल का निर्माण किया जाये.
असम के ‘मीशिंग’ जनजाति के सदस्य मोलाई बताते हैं कि जब मैंने वन-विभाग को इस बारे में खबर की, तो उन्होंने मुझे ही पेड़ लगाने की सलाह दे डाली. शायद यह सलाह उन्होंने मजाक में दी थी, लेकिन मैंने इसे गंभीरता से लिया. तब मैंने ब्रह्मपुत्र नदी के तट के पास के एक वीरान टापू को चुना और वहां वृक्षारोपण का काम शुरू कर दिया. तीन दशकों तक मोलाई हर रोज उस टापू पर जाते और कुछ नये पौधों लगा आते.
इन पौधों को पानी देने की एक बड़ी समस्या खड़ी हुई. हर रोज नदी से पानी ढो कर लाना और सभी पौधों को पानी देना अकेले मोलाई के लिए संभव नहीं था. इस पर मोलाई कहते हैं कि मैंने इसका उपाय कुछ इस तरह निकाला. मैंने बांस की एक तख्ती हर पौधे के ऊपर खड़ी की और उसके ऊपर घड़ा रखा.
इन घड़ों में छोटे-छोटे सुराख होते थे. एक बार भरने पर एक घड़े का पानी एक हफ्ते तक धीरे-धीरे नीचे टपक कर पौधों को सींचता रहता.
मोलाई बताते हैं कि इसके एक साल बाद, 1980 में, जब गोलाघाट जिले के वन विभाग ने जनकल्याण उपक्र म के अंतर्गत वृक्षारोपण कार्य जोरहाट जिले से पांच किमी दूर अरु णा चापोरी इलाके के 200 हेक्टेयर में शुरू किया, तो मैं भी उससे जुड़ गया. लगभग पांच साल चले उस अभियान में मोलाई ने एक मजदूर के तौर पर काम किया.
अभियान पूरा होने के बाद जब अन्य मजदूर चले गये, तब मोलाई ने वहीं रु कने का फैसला किया. मोलाई अकेले उन पौधों की देखरेख करते और साथ ही नये पौधे भी लगाते जाते. इसका नतीजा यह हुआ कि वह इलाका अब एक घने जंगल में तब्दील हो गया है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने 22 अप्रैल 2012 को पयंग को उनकी अनूठी और अतुलनीय उपलब्धि के लिए सम्मानित किया. यही नहीं, इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट ने 2013 में मोलाई को ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि प्रदान की. आनेवाली पीढ़ी के लिए संदेश देते हुए मोलाई कहते हैं कि शिक्षा पद्धति कुछ ऐसी होनी चाहिए कि हर बच्चे को कम से कम दो वृक्ष लगाने जरूरी होने चाहिए.
फिलहाल मोलाई अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ जंगल में एक झोपड़ी में रहते हैं. उनके बाड़े में गाय-भैंसें हैं जिनका दूध बेच कर वह अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. यही उनके परिवार की आय का एकमात्र जरिया है. लेकिन इससे संतुष्ट मोलाई कहते हैं कि मेरे साथी इंजीनियर बन गये हैं और शहर जा कर बस गये हैं. मैंने सब कुछ छोड़ कर इस जंगल को अपना घर बनाया है. अब तक मिले विभिन्न सम्मान और पुरस्कार ही मेरी असली कमाई हैं, जिससे मैं खुद को इस दुनिया का सबसे सुखी इनसान मानता हूं.

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