खेल से खिलवाड़ करते ‘बाहरी’
राष्ट्रीय खेल घोटाले में झारखंड ओलिंपिक संघ के महासचिव एसएम हाशमी तथा तत्कालीन खेल निदेशक पीसी मिश्र की गिरफ्तारी हुई, पर इसमें चार साल सात दिन लग गये. दरअसल, राष्ट्रीय खेल आयोजन समिति (एनजीओसी) को किसी कायदे-कानून की परवाह नहीं थी. ऐसा लगता है जैसे उसे बड़ी हस्तियों की सरपरस्ती मिली हुई थी. आखिर क्या […]
राष्ट्रीय खेल घोटाले में झारखंड ओलिंपिक संघ के महासचिव एसएम हाशमी तथा तत्कालीन खेल निदेशक पीसी मिश्र की गिरफ्तारी हुई, पर इसमें चार साल सात दिन लग गये.
दरअसल, राष्ट्रीय खेल आयोजन समिति (एनजीओसी) को किसी कायदे-कानून की परवाह नहीं थी. ऐसा लगता है जैसे उसे बड़ी हस्तियों की सरपरस्ती मिली हुई थी. आखिर क्या वजह थी कि 95 रुपये की सीटी 450 रुपये में, तथा 30 दर्जन जगह 200 दर्जन टेनिस बॉल खरीदी गयी.
अधिकाधिक खरीद बिना टेंडर के, नोमिनेशन के आधार पर की गयी. एनजीओसी के अधिकारी बार-बार कहते रहे कि खरीद की उनकी नीति वित्त विभाग के कायदे-कानूनों से संचालित नहीं होती. बड़ी हस्तियों की सरपरस्ती नहीं होती, तो जिस 34वें राष्ट्रीय खेल की आयोजन समिति के सचिव के नाते हाशमी को लाल बत्ती मिली थी, वह गिरफ्तारी तक उनके साथ नहीं रहती. जबकि 2015 में केरल में होनेवाले 35वें राष्ट्रीय खेल की नयी समिति बन गयी है.
दरअसल सारा ‘खेल’ खेल संघों पर गैर खिलाड़ियों के हावी होने की वजह से होता रहा है. इसके पूर्व राष्ट्रमंडल खेल घोटाले को लेकर सुरेश कलमाडी जेल की हवा खा चुके हैं. एन श्रीनिवासन को बीसीसीआइ की अध्यक्षी गंवानी पड़ी थी. पर हुआ क्या? देश भर में अपने-अपने तरीके से खेल का ‘खेल’ चलता रहा. सर्वोच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर 2013 को अपने एक फैसले में खेल संघों में गैर खिलाड़ियों के वर्चस्व पर बेहद सख्त टिप्पणी की थी.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर तथा जे चेलामेश्वर की खंडपीठ ने कहा था कि खेल संगठनों की कमान नेताओं तथा कारोबारियों के हाथों में होने के कारण खेलों का नुकसान हो रहा है. उन्होंने सख्त अंदाज में कहा था कि क्या खेल संघों को निजी हितों का बंधक बनाया जा सकता है. पर न तो सरकार को और न ही खेल संघों को अदालती टिप्पणियों से सीख लेने की जरूरत महसूस हुई. इस मुल्क में खेल संघ के पदाधिकारियों को गैर खिलाड़ियों के योगदान से सीख लेने की जरूरत है.
वर्ष 1936 के ग्रीष्म ओलिंपिक में डिस्कस थ्रो का कांस्य पदक विजेता जान पारांदोव्स्की कोई खिलाड़ी नहीं था. दरअसल यह सम्मान ‘दि ओलिंपिक डिस्कस’ शीर्षक उनकी पुस्तक के लिए उन्हें दिया गया था.