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आइटी के जरिये सेहत संवारने का लक्ष्य

अमेरिका में लाखों की नौकरी छोड़ नंदिता लौटीं भारत आज अधिकतर युवा मोटी तनख्वाह के पीछे भागते हैं, लेकिन एक युवा महिला पेशेवर ऐसी भी है जो विदेश में डिग्री लेने और नौकरी पाने के बाद भी अपने देश के लिए कुछ करने की खातिर वापस लौट आयी. नंदिता शेट्टी ने आइटी के जरिये स्वास्थ्य […]

अमेरिका में लाखों की नौकरी छोड़ नंदिता लौटीं भारत
आज अधिकतर युवा मोटी तनख्वाह के पीछे भागते हैं, लेकिन एक युवा महिला पेशेवर ऐसी भी है जो विदेश में डिग्री लेने और नौकरी पाने के बाद भी अपने देश के लिए कुछ करने की खातिर वापस लौट आयी. नंदिता शेट्टी ने आइटी के जरिये स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव लाने का बीड़ा उठाया है.
मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स में स्नातक नंदिता शेट्टी ने अपने कैरियर की शुरुआत बेंगलुरु स्थित फिलिप्स मेडिकल सिस्टम्स में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर की. ब्रेन इमेजिंग और कंप्यूटेशनल मेथडॉलजी पर रिसर्च करनेवाली नंदिता बाद में अमेरिका चली गयीं. वहां उन्होंने मेसाचुसेट्स जेनरल हॉस्पिटल और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में कुछ वर्षो तक काम किया.
इसी दौरान नंदिता को एहसास हुआ कि उन्हें अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल अपने देश को संवारने के लिए करना चाहिए. इसके बाद वह एक बड़ी नौकरी छोड़ कर भारत लौट आयीं. ऑटिज्म पीड़ित और सामान्य बच्चों के दिमाग में क्या अंतर होता है, अमेरिका में इस पर शोध करनेवाली नंदिता भारत लौट कर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक गैर सरकारी संगठन, परदादा-परदादी एजुकेशनल सोसाइटी से जुड़ीं. यह संस्था बच्चों की शिक्षा और उनके कौशल विकास के लिए काम करती है.
अमेरिका में लाखों की नौकरी छोड़ कर भारत कैसे आना हुआ, इस सवाल के जवाब में नंदिता कहती हैं कि एमआटी में अध्ययन के दौरान एमआइटी-इंडिया क्लब समिट में मेरा वीरेंद्र सिंह (सैम) से मिलना हुआ.
डय़ूपोंट दक्षिण एशिया के मुखिया रहे सैम से हुई एक घंटे की बातचीत के अनुभव ने जैसी मेरी दुनिया ही बदल डाली. उन्होंने मेरे साथ अपने अनुभव बांटे कि किस तरह उन्होंने अपने गांव लौट कर एक संस्थान स्थापित किया, जो आज कई लोगों की जिंदगी संवार रहा है. इस संस्थान के जरिये सैम ने बदलते समाज के बीच लोगों की बदलती जरूरत को पहचाना और उसे पूरा करने की कोशिश की.
नंदिता कहती हैं कि सैम के साथ बातचीत के चार महीनों के भीतर ही मैं बोस्टन छोड़ कर छोटी-सी जगह बुलंदशहर आ गयी. गांव में रह कर मैंने यह जाना कि लोगों पर गरीबी किस तरह प्रभाव डालती है. स्थानीय ग्रामीणों और छात्रों के बीच काम करने के बाद मुझे उसका असर लोगों पर होता दिखा.
यह मेरे लिए एक बेहद सुखद एहसास था. परदादा-परदादी एजुकेशनल सोसाइटी के साथ एक साल तक काम करने के बाद नंदिता ने दिल्ली की एक स्टार्ट-अप कंपनी, इनविक्टस ऑन्कोलॉजी में बिजनेस डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम किया. नंदिता बताती हैं कि इसी दौरान मुझे स्टैनफोर्ड इग्नाइट प्रोग्राम से जुड़ने का मौका मिला. यह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके तहत तकनीकी पेशेवरों और उद्यमियों को वैश्विक मंच से रूबरू कराया जाता है. उन्हें वैश्विक मानकों से परिचित कराया जाता है और यह बताया जाता है कि वे इन्हें कैसे पा सकते हैं.
बहरहाल, नंदिता बताती हैं कि इसके बाद मेरे भी मन में एक ऐसे स्टार्ट-अप पर काम करने का विचार आया, जिससे समाज पर सीधा और सकारात्मक प्रभाव पड़े. इसमें मुझे इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के अपने हुनर के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने का मौका मिलेगा. इस स्टार्ट-अप के जरिये मुझे यह जानने का मौका मिलेगा कि लोगों के मस्तिष्क पर परिस्थितियों का क्या असर पड़ता है. इसके आधार पर मैं उनकी जिंदगी में परिवर्तन ला सकूंगी और सही मायने में अपने भारतीय होने का एक फर्ज निभा सकूंगी.

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