हुदहुद तो दो थाप में ही चित हो गया

लोग हुदहुद को लेकर डरे हुए थे. सोच रहे थे, पता नहीं कैसा कहर बरपायेगा. किसी का घर उजड़ेगा, तो किसी का बागीचा. देश-दुनिया के वैज्ञानिक उसकी रफ्तार को लेकर कयास लगा रहे थे. सरकारों ने आपदा प्रबंधन विभाग के लोगों को मुस्तैद कर रखा था. सेना के जवानों को सीमा पर गोली चलाने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2014 4:21 AM

लोग हुदहुद को लेकर डरे हुए थे. सोच रहे थे, पता नहीं कैसा कहर बरपायेगा. किसी का घर उजड़ेगा, तो किसी का बागीचा. देश-दुनिया के वैज्ञानिक उसकी रफ्तार को लेकर कयास लगा रहे थे.

सरकारों ने आपदा प्रबंधन विभाग के लोगों को मुस्तैद कर रखा था. सेना के जवानों को सीमा पर गोली चलाने के साथ-साथ प्रभावित राज्यों में राहत कार्य करने के लिए भी तैयार रहने को कहा गया था. इनके अलावा नगर निगम के अधिकारी, राज्यों के छोटे-बड़े नेता, गैर-सरकारी संस्थाओं के मालिक साहिबान और चील-कुत्ते, कौव्वे, सियार और हुंडार भी अलर्ट हो गये थे. मगर सब सत्यानाश!

सरकारी बाबुओं ने पेट बढ़ाने और जेब मोटी करने के लिए भारी-भरकम योजनाएं बना रखी थीं, लेकिन हुदहुद ने हद ही कर दी. लगता है कि वह भी प्रबंधन में कुशल प्रधानमंत्री जी के प्रबंध को देख कर डर गया. इतना डरा कि बंगाल की खाड़ी में 180 किलोमीटर की रफ्तार से आनेवाला यह तूफान आंध्र तट से टकराते ही कमजोर हो गया. सबसे ज्यादा निराशा झारखंड के सरकारी अमले और तथाकथित स्वयंसेवियों को हुई. यहां न पेड़ उखाड़ा, न घर गिराया. खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना. बेड़ा गर्क हो इसका, सब सत्यानाश कर दिया. न किसी का पेट मोटा होने दिया और न ही किसी की जेब. ये तो एकदम मोदीजी टाइप बात हो गयी कि न खुद खायेंगे और न ही किसी को खाने देंगे. एकदम सौ फीसदी अमेरिका यात्र टाइप उपवासी और सात्विक होकर आया बेचारा. हुदहुद ने समाज के खाऊ -पकाऊ हिस्से को हाथ की सफाई दिखाने का मौका नहीं दिया. उल्टे लॉलीपॉपिया नेता की तरह दो थाप मार खाने जैसा खुद को साबित कर दिया. ऐसा तूफान न ही आये तो बेहतर होगा. वैसे लोटे का क्या काम, जिसमें पहले ही हजारों छेद हों.

हुदहुद के फुदफुद कर निकल लेने से एक और बिरादरी के लोग दुखी हैं. वे हैं चौराहे पर अड्डा मार कर चाय, पान, खैनी के साथ दिन काटने वाले. कभी अखबार, तो कभी टीवी की खबरों के आधार पर दिन भर हुदहुद ऐसे आयेगा, तो हुदहुद वैसे आयेगा चलता रहता. किसी ने हुदहुद का नाम हुदहुद क्यों रखा गया, इस पर रिसर्च कर डाली. तो कोई चक्रवात पर विकीपीडिया छानता रहा. कुल मिला कर, हुदहुद सभी का मन लगाये हुए था. अब इन लोगों को मन लगाने, दिन काटने के लिए किसी नये मसले की तलाश करनी होगी. हालांकि नया मुद्दा तैयार है. 19 को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने हैं. भाई लोग इस पर तीन-चार दिन बतकूचन पर निकाल देंगे. वैसे मोदी-भक्त एग्जिट पोल से गदगद हैं. 19 को जो हो, वे जीत का जश्न मना रहे हैं. खैर, दुनिया अपनी जाने, हमें तो अफसोस है कि हुदहुद के लिए एक पैकेट मोमबत्ती खरीदी थी जो ऐसे ही पड़ी रह गयी.

विश्वत सेन

प्रभात खबर, रांची
vishwat.sen@gmail.com

Next Article

Exit mobile version