इनका अभियान देख कचरा भी हंस पड़ा
दो अक्टूबर को जब ‘स्वच्छ भारत’ अभियान की शुरुआत हुई, तो मैं बड़ी खुश हुई. मैंने फेसबुक पर लिखा-‘यदि लोग राजनीति, पार्टी, तेरा-मेरा, इसमें मेरा क्या, इससे मुङो क्या.. जैसी भावनाओं से ऊपर उठ कर इस अभियान से जुड़ेंगे, तो देश का चेहरा बदल जायेगा. हर तरफ साफ-सुथरी सड़कें होंगी और मक्खी-मच्छर, बीमारियां कहीं दूर […]
हर तरफ साफ-सुथरी सड़कें होंगी और मक्खी-मच्छर, बीमारियां कहीं दूर भाग जायेंगी.’ लेकिन मेरा भ्रम कुछ ही दिनों में टूट गया. यह अभियान शुरू होते ही लोगों को अखबार में छपने का एक नया तरीका मिल गया. चार-पांच लोगों से मिल कर बनी संस्थाएं हों या चटक-मटक साड़ी व मेकअप में सजी महिलाओं के महिला मंडल, सभी ने झाड़ू के साथ पोज मार कर प्रेस रिलीज भेजना शुरू कर दिया. कई लोगों ने रिपोर्टर को बकायदा आमंत्रित किया कि हम फलां जगह पर, फलां वक्त में सफाई करने वाले हैं. प्लीज रिपोर्टर और फोटोग्राफर को भेज दें.
एक महिला मंडल की अध्यक्षा ने फोन लगा कर मुङो कहा, ‘आपके यहां से अभी तक कोई कवरेज के लिए आया नहीं है.’ मैंने जवाब दिया ‘बस पहुंचता ही होगा.. आप सफाई जारी रखिये. वह आ जायेंगे.’ फोटोग्राफर और रिपोर्टर वहां पहुंच गये. उस प्रोग्राम को कवर करने के बाद जब वे ऑफिस पहुंचे, तो उन्होंने आंखों देखा हाल बताया.
वहीं फोटो कर लेते हैं. उनमें से एक महिला ने कहा, सफाई अभी की नहीं है. आप फोटो तो खींच लो पहले. दूसरी महिला ने सड़क के एक ओर इशारा करते हुए कहा, ‘वो बैकग्राउंड ठीक रहेगा.’ सभी झाड़ लेकर वहां पहुंच गयीं. सड़क के बीचो-बीच कचरा पड़ा था. सभी ने झाड़ू लगाने वाला पोज बनाया और कैमरे की तरफ देख कर मुस्करायीं.
इसे बड़ा लगाइयेगा.’ फोटोग्राफर ने कैमरा बैग में डाला. मंडल की अध्यक्ष ने पर्स में से कागज निकाल कर रिपोर्टर को दे दिया. उसमें महिला मंडल का नाम और वहां मौजूद सभी महिलाओं के नाम थे. सभी महिलाएं रिपोर्टर व फोटोग्राफर को ‘बाय’, ‘थैंक्यू’ बोलते हुए अपनी गाड़ियों में बैठी और चली गयीं. कचरा वहीं सड़क पर पड़ा उन्हें ताक रहा था और मन ही मन हंस रहा था. मानो कह रहा हो, ‘मैं अंगद के पैर की तरह हूं, इतनी आसानी से नहीं हिलूंगा. जब तक तुम दृढ़ संकल्प ले कर सफाई नहीं करोगे. मैं हटने वाला नहीं हूं.’