मनरेगा पर आखिर खींच-तान क्यों?
गत दिनों प्रभात खबर में चंदन श्रीवास्तव का मनरेगा पर मंतव्य पढ़ा. मैं अपनी खुद की राय जाहिर करने के पहले सिंगापुर की विकास यात्र पर बात करना चाहूंगा. सिंगापुर के पूर्व तानाशाह ली कुआन यू का एक इंटरव्यू आज से तकरीबन 20 साल पहले रीडर्स डाइजेस्ट में प्रकाशित हुआ था. तब ली ने कहा […]
गत दिनों प्रभात खबर में चंदन श्रीवास्तव का मनरेगा पर मंतव्य पढ़ा. मैं अपनी खुद की राय जाहिर करने के पहले सिंगापुर की विकास यात्र पर बात करना चाहूंगा. सिंगापुर के पूर्व तानाशाह ली कुआन यू का एक इंटरव्यू आज से तकरीबन 20 साल पहले रीडर्स डाइजेस्ट में प्रकाशित हुआ था.
तब ली ने कहा था कि लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के लिए उनमें विकास की भूख जगायी. आज अर्थशास्त्र का सामान्य विद्यार्थी भी यह जानता है कि सरकारी मदद नेताओं को लोकप्रिय तो बना सकती है, लेकिन उनमें स्वाभिमान, उत्साह और लगन पैदा नहीं कर सकती. भारत में मनरेगा के तहत काम करनेवालों की भी यही स्थिति है. शुरुआती दौर में सरकारी सहयोग की जरूरत हो सकती है, जिसके लिए मनरेगा ठीक है. लेकिन यह जरूरतमंद लोगों के लिए ही हो. अगर सरकार ऐसा सोच रही है, तो इसमें गलत क्या है? शिवशंकर प्रसाद, रांची