..तो भक्तो जोर से बोलो-श्रमेव जयते
जावेद इस्लाम प्रभात खबर, रांची अभी हमारे प्रधान सेवक जी की ‘चलती’ का समय है. वे चलते हैं, तो चर्चा हो जाती है. बोलते हैं, तो सुभाषित, सूक्ति, मुहावरा वगैरह बन जाता है. और, नारा लगा दें, तो मीडिया में हर तरफ ‘न्यारा-न्यारा’ जयकारा होने लगता है. पिछले दिनों, उन्होंने ‘श्रमेव जयते’ का उद्घोष कर […]
जावेद इस्लाम
प्रभात खबर, रांची
अभी हमारे प्रधान सेवक जी की ‘चलती’ का समय है. वे चलते हैं, तो चर्चा हो जाती है. बोलते हैं, तो सुभाषित, सूक्ति, मुहावरा वगैरह बन जाता है. और, नारा लगा दें, तो मीडिया में हर तरफ ‘न्यारा-न्यारा’ जयकारा होने लगता है. पिछले दिनों, उन्होंने ‘श्रमेव जयते’ का उद्घोष कर डाला. सारे जहां से अच्छे अपने हिन्दोस्तां में ‘सत्यमेव जयते’ का राज स्थापित हो चुका है, इसलिए उन्होंने ‘श्रम की जय’ का नारा दिया है. इससे देश के पूंजीपतियों में खुशी की लहर दौड़ गयी है.
सब प्रधान सेवक जी की वाह-वाह कर रहे हैं. यह बताता है कि हमारा पूंजीपति वर्ग कितना श्रमिक समर्थक, उदार और इंसाफपसंद है. हमारे मजदूर नेता उनके खिलाफ धरना, प्रदर्शन कर बेवजह उन्हें बदनाम करते रहे. प्रधान सेवक जी ने उन्हें सही औकात बतायी. दिल्ली में ‘श्रमेव जयते’ के शुभारंभ के लिए विशाल जलसे का आयोजन किया गया, लेकिन उसमें किसी श्रमिक नेता को न्योता तक नहीं दिया गया.
अगर मजूदरों के हितों को लेकर एलान हो और जश्न मालिक वर्ग मनाये, तो भावी औद्योगिक संबंधों के लिए इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकती है? लेकिन यह बात ‘मजदुरवन’ को हजम नहीं हो रही है, वे खामखाह प्रधान सेवक जी की नीयत पर संदेह कर रहे हैं.
वामपंथी मजदूर संगठनों की नाराजगी तो समझ में आती है, क्योंकि उनकी आदत ही है हर ‘नेक’ काम में फच्चर डालने की. लेकिन ‘संघी-पुत्तर’ भारतीय मजदूर संघ भी वामपंथियों जैसा काहे बतिया रहा है? वह तो मालिकों को अन्नदाता और मजदूरों को कर्मयोगी जैसी उपमाओं से अलंकृत करता रहा है. उसका मानना है कि ये मालिक न हों, तो मजदूर भूखे मर जायें.
उसका सिद्धांत है कि मजदूरों को मालिकों से अपने हक के लिए लड़ना नहीं चाहिए, बल्कि नि:स्वार्थ भाव से अपने मालिक के हित में काम करना चाहिए, तभी भारत महाशक्ति और विश्वगुरु बन पायेगा. उसके मुताबिक, मालिक कभी श्रमिक विरोधी नहीं होते. आठ की जगह 12-18 घंटे खटाना, न्यूनतम मजदूरी भी नहीं देना, जान और सेहत को जोखिम में डाल कर काम लेना.. ये सब ‘श्रमिक हितकारी’ नहीं तो और क्या है? मगर ‘मेक इन इंडिया’ के लिए आनेवाले और ज्यादा ‘श्रमिक हितकारी’ माहौल चाहते हैं. वे कहते हैं कि जब तक श्रम सुधार नहीं होगा, निवेश नहीं करेंगे.
प्रधान सेवक जी अमेरिका में उनसे वादा करके लौटे हैं, ‘‘जो मांगोगे मिलेगा, आइए तो सही. यदि आप श्रम सुधार चाहते हैं, तो हम भी कम मजदूर हितैषी नहीं हैं.’’ देसी कारपोरेट तो यह बात पहले से ही अच्छी तरह से जानते हैं, पर ‘श्रमेव जयते’ के उद्घोष के बाद तो एफडीआइ वालों को भी यकीन आना शुरू हो गया है. डॉलर लेकर आनेवालों को यकीन दिलाने में कोर-कसर नहीं रह जाये, इसलिए सभी भक्तगणों को तो और ज्यादा जोर से चिल्लाना होगा-श्रमेव जयते! श्रमेव जयते!!