सियासी मजबूरियों से बिहार का अहित
राजनीति में अक्सर ऐसा नही होता कि लगभग सभी सियासी पार्टियां किसी मुद्दे पर सकारात्मक नजरिया रखती हों. बिहार को विशेष राज्य के दज्रे का मामला ऐसा ही है. इस पर सभी दल एकमत हैं कि राज्य को विशेष दर्जा मिलना चाहिए. मगर विडंबना यह है कि सभी पार्टियों के अलग-अलग सुर-ताल हैं. होना यह […]
राजनीति में अक्सर ऐसा नही होता कि लगभग सभी सियासी पार्टियां किसी मुद्दे पर सकारात्मक नजरिया रखती हों. बिहार को विशेष राज्य के दज्रे का मामला ऐसा ही है. इस पर सभी दल एकमत हैं कि राज्य को विशेष दर्जा मिलना चाहिए.
मगर विडंबना यह है कि सभी पार्टियों के अलग-अलग सुर-ताल हैं. होना यह चाहिए था कि बिहार से जुड़े इस अहम मुद्दे पर दल राजनीति के दायरे से बाहर जाकर इस पर सर्वानुमति की तलाश करते.
लेकिन सियासत की मजबूरी के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है और इसका नुकसान अंतत: बिहार को ही उठाना पड़ रहा है. विशेष दज्रे के लिए जब सभी पार्टियां सर्वसम्मति से बिहार विधानसभा के भीतर प्रस्ताव पास कर सकती हैं तो सदन के बाहर एकजुटता क्यों नहीं हो सकती? आखिर यह कैसी राजनीति है जो बिहार के हितों को तवज्जो नहीं देती? राज्य के पिछड़ेपन का लंबा इतिहास है. इसमें केंद्र की उपेक्षापूर्ण नीतियों की बड़ी भूूमिका रही है. यह उपेक्षा आजादी के बाद की देसी सरकारों की देन है. आजादी के पहले भी अंगरेजी हुकूमत में इस क्षेत्र की उदासीनता ऐतिहासिक तथ्य है. ऐसे में आजादी के बाद समानता पर आधारित नीतियों के तहत राज्यों का विकास होना चाहिए था. यह काम नहीं हुआ. इसकी जगह जो राज्य पहले से ही विकसित और समृद्ध थे, आजादी के बाद भी उन्हें ही आगे बढ़ने के अवसर मुहैया कराये गये. वर्ष 2000 में बिहार विभाजन के बाद खनिज संपदा वाले इलाके झारखंड में चले गये.
उस वक्त भी सभी पार्टियों ने मिल कर बिहार को विशेष पैकेज देने की मांग की थी. तब सभी पार्टियों का एक शिष्टमंडल केंद्र सरकार को अपनी समवेत आवाज सुनाने गया था. लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला. बाद के दिनों में यह मुद्दा खूब चर्चा में रहा. करीब सवा करोड़ लोगों ने हस्ताक्षर कर केंद्र से यह मांग की कि बिहार को विशेष दर्जा दिया जाये. कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में इस मुद्दे का जिक्र किया था. उन्होंने यह वादा भी किया था कि केंद्र में आनेवाली नयी सरकार बिहार की इस मांग को पूरा करेगी. लेकिन इस मुद्दे पर कोई सुगबुगाहट नहीं होना संदेह पैदा करने वाला है. शायद इसीलिए पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष दज्रे के सवाल को नये परिप्रेक्ष्य में उठाने की पहल की है.