।। रविभूषण ।।
(वरिष्ठ साहित्यकार)
– मोदी से खतरा केवल भाजपा के नेताओं को, कुछ सहयोगी दलों को, अनेक क्षेत्रीय दलों को ही नहीं, भारतीय लोकतंत्र, देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और पूरे देश
को भी है. –
नरेंद्र मोदी को ‘भस्मासुर’ और ‘हिटलर’ कहनेवालों की संख्या बढ़ रही है. 17 वर्ष पुराना भाजपा-जदयू गंठबंधन टूट चुका है. इसके पहले आडवाणी के रथ का पहिया टूट गया था. अपने ब्लॉग में आडवाणी ने हिटलर और मुसोलिनी को बेवजह याद नहीं किया. अब भाजपा ‘अ-आ’ (अटल-आडवाणी) से निकल कर ‘न’ (नरेंद्र मोदी) तक पहुंच चुकी है.
गोवा में नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाने के बाद का राजनीतिक दृश्य मोदी विरोधी है. यह एक लचर तर्क है कि पहले के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने चुनाव अभियान प्रमुख अरुण जेटली और प्रमोद महाजन को बनाया था और चुनाव अभियान के नेता एक समय आडवाणी भी थे, जो प्रधानमंत्री नहीं बने. विकास, सुशासन और हिंदुत्व को लेकर नरेंद्र मोदी की जो छवि बनी है, भाजपा निश्चित रूप से उन्हें बाद में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी. यद्यपि भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा अब तक नहीं की है. पर अब अटकलों के लिए कोई जगह नहीं है.
गोवा का उत्साह फिलहाल फीका है. मोदी को लोकप्रिय और स्वीकार्य बनाने-कहने में मीडिया की बड़ी भूमिका है. मोदी पर 2002 के गुजरात नरसंहार का लगा दाग कभी मिट नहीं सकता. 6 दिसंबर, 1992 के बाबरी मसजिद ध्वंस में अप्रत्यक्ष ही सही, आडवाणी की भूमिका थी, पर लिब्राहन आयोग के समक्ष आडवाणी ने इस तारीख को सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण माना था. नरेंद्र मोदी ने अब तक गुजरात में ‘राजधर्म’ का निर्वाह न करने के कारण क्षमा मांगने की बात तो दूर, पश्चाताप तक नहीं किया है. जिसने अपने प्रदेश में ‘राजधर्म’ का निर्वाह नहीं किया, उसे देश की बागडोर सौंपना कितना उचित होगा? चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने के बाद मोदी ने अपने चहेते अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनवा दिया. अमित शाह पहले जेल में थे, अभी जमानत पर हैं. माया कोडनानी का हश्र भी मोदी देख चुके हैं.
जिस उम्मीद से जनता ने पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिया था, कांग्रेस ने उससे छल कर सबसे बड़ा गुनाह किया है. रुपये का अवमूल्यन हो रहा है और ऐसा खामोश प्रधानमंत्री न था, न शायद होगा. मनमोहन सिंह पांचवीं बार राज्यसभा के सांसद के रूप में शपथ लेंगे. सबसे अधिक भ्रष्ट-निकम्मी इस सरकार ने भी मोदी का कद बढ़ाया है. जयराम रमेश ने मोदी के संगठन कौशल, वक्तृता की सही प्रशंसा की है.
निस्संदेह आज की भारतीय राजनीति में मोदी सर्वाधिक प्रखर वक्ता हैं. उनके इस ‘गुण’ के समक्ष और कोई नहीं टिक सकता. वे उत्तेजक और प्रभावशाली माहौल बनाने में निपुण हैं. पूर्वोत्तर राज्यों और दक्षिणी राज्यों में उनकी वक्तृत्व-कला सफल नहीं होगी. उन्होंने अपने विरोधियों और अपने मार्ग में आनेवाले बाधकों को एक-एक कर किनारे लगा दिया है. वह एक कठोर और सख्त व्यक्ति हैं- प्रशासक भी. मोदी सीधा वार करनेवाले व्यक्ति हैं. अपनी सुविधा के लिए वे नये मुहावरे गढ़ते हैं, जो देश की वास्तविकता भी झलकाते हैं. उनके लिए आज ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की जरूरत है, क्या भारत की चिंता सिर्फ मोदी को है? ‘गुजरात गौरव’ से आगे बढ़ वे ‘भारत गौरव’ तक पहुंचेंगे.उनकी भाषा व शब्दावली उनके विचारों से जुड़ी है. दिल्ली के अपने व्याख्यान को उन्होंने ‘प्रवचन’ कहा था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कभी सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन नहीं रहा. इसका जन्म उस समय (1925) हुआ, जब देश की जनता भ्रमित थी. गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था और किसान उठ खड़े हुए थे. सांप्रदायिकता बढ़ रही थी. महावीर सिंह ने, जो अशफाक उल्ला खां के साथ काकोरी-कांड में थे, अंडमान में उम्रकैद की सजा भोगते हुए अपने पिता को पत्र में यह लिखा था कि वे ‘समाज’ से ‘आर्य समाज’ या अन्य किसी संकीर्ण समाज का अर्थ ग्रहण नहीं करते, क्योंकि उनके लिए ‘समाज’ का अर्थ सामान्य जनता है.
संघ के एजेंडे में हमेशा ‘हिंदुत्व’ रहा है. अटल-आडवाणी दोनों ने यह समझ लिया था कि इस एजेंडे को आगे रख कर ‘राज’ नहीं किया जा सकता. आडवाणी ने अटल की तरह बाद में अपनी एक उदार छवि बनायी. नरेंद्र मोदी पहले के आडवाणी का नया रूप हैं. आडवाणी ने अपना रूप बदला, मोदी ने नहीं. जदयू को आडवाणी मंजूर थे, नरेंद्र मोदी नहीं.
सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू आज नरेंद्र मोदी के सामने नतमस्तक हैं. गोवा में सुषमा स्वराज का चेहरा कितना उदास, दुखी और चिंतित था! जनसंघ और भाजपा में कभी कोई एक नेता मोदी की तरह प्रमुख नहीं था. दीनदयाल उपाध्याय के साथ बलराज मधोक भी थे और अटल-आडवाणी के साथ नानाजी देशमुख. और आज? नरेंद्र मोदी के सामने राजनाथ सिंह का कद छोटा है.
नरेंद्र मोदी ने हमेशा अपना कद बढ़ाने और दूसरों का कद छोटा करने का कार्य किया है. वे भारतीय राजनीति में सर्वाधिक आक्रामक हैं. उनके कारण भाजपा में दरार आयी, भाजपा-जदयू गंठबंधन टूटा. वे एक अर्थ में ‘आक्रमणकारी’ हैं. उनके नाम से ही ध्रुवीकरण होने लगता है. भाजपा ने अपनी ‘उदार छवि’ खो दी है. अब उसका अनुदार रूप सामने है. अब भाजपा नहीं, संघ प्रमुख है.
भारतीय पूंजीपति और उद्योगपति का आज वास्तविक रूप क्या है? टाटा, मित्तल और अंबानी के प्रिय हैं मोदी. इन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही थी. कॉरपोरेट जगत मोदी के पक्ष में है और इसकी संभावना है कि 16वें लोकसभा चुनाव में प्रत्येक संसदीय सीट पर नहीं, प्रत्येक बूथ पर मोदी की निगाह होगी. जो अथाह धन-राशि खर्च की जायेगी, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है.
मोदी की छवि ‘लौहपुरुष’ और ‘विकास पुरुष’ की बनायी गयी है. पार्टी से बड़ा, व्यक्ति बन गया है. गुजरात का विकास मोदी ने नहीं किया है. वह पहले से ही एक विकसित राज्य है. मोदी के पक्ष में अब चेतन भगत जैसे लेखक खड़े हो रहे हैं, जिन्होंने भाजपा की जीत का ‘गेम प्लान’ बनाया है.
लोहिया के कांग्रेस विरोधी अभियान और मोदी के कांग्रेस-मुक्त भारत में कहां विरोध है? मोदी संघ से भाजपा में आये. आज भाजपा संघ के अधीन है. विकास, सुशासन और हिंदुत्व में, संघ हिंदुत्व के साथ सदैव रहा है. भाजपा और संघ दोनों के लिए आगामी लोकसभा चुनाव आखिरी अवसर है. अभी नहीं तो कभी नहीं. इसे सब समझते हैं.
स्वाभाविक रूप से मोदी के खिलाफ राजनीतिक दलों को एकजुट होना चाहिए. खतरा केवल भाजपा के नेताओं को, कुछ सहयोगी दलों को, अनेक क्षेत्रीय दलों को ही नहीं, भारतीय लोकतंत्र, देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और पूरे देश को भी है, क्योंकि जो अपने दल में अंदर से सर्वस्वीकार्य नहीं है, विरोधी स्वरों को ठिकाने लगाने में सिद्ध है, क्या वह सचमुच देश का भला करेगा?