सीसीएल मजदूरों की पेंशन महज दो सौ
मैं प्रभात खबर के माध्यम से सीसीएल में 30 साल से अधिक समय तक काम करके रिटायर होनेवाले मजदूरों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं. सीसीएल के झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में चल रही खदानों में हजारों की संख्या में मजदूर काम करते हैं. काम करने के समय उनकी तनख्वाह केंद्र सरकार […]
मैं प्रभात खबर के माध्यम से सीसीएल में 30 साल से अधिक समय तक काम करके रिटायर होनेवाले मजदूरों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं. सीसीएल के झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में चल रही खदानों में हजारों की संख्या में मजदूर काम करते हैं. काम करने के समय उनकी तनख्वाह केंद्र सरकार के वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर तय की जाती है. लेकिन ये मजदूर जब रिटायर होते हैं, तो उनकी पेंशन न के बराबर होती है.
कोल कंपनी से रिटायर होने के बाद किसी मजदूर को पेंशन के नाम पर दो सौ रुपये तो किसी को चार सौ और किसी को हजार रुपये पेंशन के रूप में मिलते हैं. कंपनी से रिटायर होनेवाले कई मजदूर तो काल के गाल में समा गये. अब उनकी विधवाओं को पेंशन के नाम पर कुछ भी नहीं दिया जाता है. जबकि स्थिति यह है कि कंपनी में काम करनेवाले मजदूर अपनी जान जोखिम में डाल कर कभी जमीन के अंदर तो कभी जमीन के बाहर काम करते हैं. मगर रिटायर होने के बाद सरकार की ओर से मिलनेवाले पैसे से वे अपना इलाज भी ढंग से कराने में सक्षम नहीं होते.
कंपनी और सरकार उनके काम के बदले रिटायर होने के बाद पेंशन के नाम पर ठगी कर रही हैं. सवाल यह भी है कि जब एक ही रैंक पर काम करनेवाले केंद्रीय और राज्य सरकार के कर्मचारियों को मोटी तनख्वाह मिलने के साथ ही रिटायरमेंट के बाद ठीक-ठाक पेंशन का प्रबंध है, तो फिर सीसीएल मजदूरों के साथ भेदभाव क्यों कर रही है. क्या सीसीएल में काम करनेवाले मजदूर अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों की तरह अपनी सेवाएं नहीं देते? यदि वे 30 साल तक अपनी सेवा देते हैं, तो फिर उनके साथ अन्याय क्यों? सरकारें इस ओर ध्यान दें.
राखी सिन्हा, रांची