सरकार के गले पड़ा 100 दिनों का वादा

सूची जारी करने से पहले देश के अपने कानूनों का ध्यान रखना होगा और अन्य देशों से हुई संधियों का भी सम्मान करना होगा. लेकिन, कई कानूनी जानकार यह बता रहे हैं कि पूरी सूची सार्वजनिक करने में संधियां आड़े नहीं आ रही हैं. एनडीए सरकार के लिए 100 दिनों में विदेशों से काला धन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2014 12:41 AM

सूची जारी करने से पहले देश के अपने कानूनों का ध्यान रखना होगा और अन्य देशों से हुई संधियों का भी सम्मान करना होगा. लेकिन, कई कानूनी जानकार यह बता रहे हैं कि पूरी सूची सार्वजनिक करने में संधियां आड़े नहीं आ रही हैं.

एनडीए सरकार के लिए 100 दिनों में विदेशों से काला धन वापस लाने का वादा उसी तरह गले पड़ गया है, जैसे यूपीए सरकार के लिए 100 दिनों में महंगाई घटाने का वादा गले पड़ गया था. अब तो 150 से ज्यादा दिन गुजर चुके हैं और लोग पूछ रहे हैं कि सरकार बताये, विदेशों से वापस लाया हुआ काला धन कहां है? केंद्र सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में केवल तीन नामों को सामने रखे जाने पर धुरंधर वकील राम जेठमलानी साफ-साफ अपनी निराशा जताते हुए कह रहे हैं कि ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया’. हालांकि काले धन के प्रश्न पर बेहद मुखर रहे योगाचार्य रामदेव अब भी आशान्वित हैं. वे कह रहे हैं कि एक बड़ी शुरुआत हो गयी है.

हैरानी इस बात पर है कि देश के वित्त मंत्री इस बारे में देश को ठोस जानकारी और ठोस कार्ययोजना बताने के बदले राजनीतिक शिगूफे छोड़ने में लगे हैं. वित्त मंत्री का काम राजनीतिक सनसनी फैलाना नहीं है. वे चुटकी लेकर कह रहे हैं कि पूरी सूची सामने आ गयी, तो कांग्रेस शर्मिदा होगी. होगी तो होने दें, इसकी चिंता आपको क्यों है? उधर, चिदंबरम काला धन रखनेवालों की सूची में किसी कांग्रेसी का नाम आने की संभावना पर पहले से ही सफाई देने में लग गये हैं. कह रहे हैं कि कांग्रेसी का नाम आने पर वह व्यक्ति शर्मिदा होगा, पार्टी नहीं. वैसे यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि नाम किसका सामने आता है. चिदंबरम बड़े भोलेपन से कह रहे हैं कि उन्होंने सूची नहीं देखी थी! आप चाहें तो उन पर यकीन कर सकते हैं. आप चाहें तो यह भी यकीन कर सकते हैं कि उन्हें उस संभावित कांग्रेसी का नाम नहीं पता. यकीन इस बात पर भी किया जा सकता है कि उन्होंने गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बारे में जो बात कही है, उसका इन सब बातों से कोई लेना-देना नहीं है.

जब चुनावी सभाओं में भाजपा नेता दहाड़ते थे कि 100 दिनों में काला धन वापस लाया जायेगा, तब उस दावे या वादे पर राजनीतिक रूप से भोले व्यक्तियों ने ही शब्दश: यकीन किया होगा. आखिर कब तक चुनावी वादों को हवा-हवाई तरीके से लिया जायेगा? आज यदि भाजपा के ही चुनावी वादे को याद दिलाते हुए लोग सवाल उठा रहे हैं, तो क्या गलत कर रहे हैं? विपक्ष में रहते हुए जिन नेताओं ने सारे नाम तुरंत सार्वजनिक करने का वादा किया था, उन पर इस समय अगर देश को गुमराह करने का आरोप लग रहा है, तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है. यह विडंबना ही है कि छह महीने पहले तक कांग्रेस जिन तर्को का सहारा लेती थी, उन्हीं तर्को का सहारा अब भाजपा ले रही है.

आज भाजपा सफाई दे रही है कि काले धन को वापस लाने से पहले कानूनी तरीके से कर चोरी की बात को साबित करना होगा. विदेशी बैंकों में खाता रखनेवाले करीब 800 भारतीयों की जो सूची भारत सरकार को फ्रांस और जर्मनी से मिली है, उन्हें सार्वजनिक करने में एनडीए सरकार भी हिचक रही है. अभी केवल तीन नाम सामने रखे गये, कहा जा रहा है कि आनेवाले दिनों में कुछ और नाम सामने रखे जायेंगे. सवाल है कि सारे नाम क्यों नहीं सार्वजनिक किये जा सकते? अगर आज आप अन्य देशों से हुई संधियों के आधार पर गोपनीयता की बात कर रहे हैं, तो क्या यह बात आपको चुनाव प्रचार अभियान के दौरान मालूम नहीं थी? यूपीए सरकार के समय में संसद में इस मुद्दे पर हुई बहसों के दौरान जब भाजपा नेता पूरी सूची सार्वजनिक करने की मांग करते थे, क्या उस समय उन्हें इन संधियों के बारे में मालूम नहीं था? जनता सबसे ज्यादा इस बात से हैरान है कि उस समय जो तर्क यूपीए सरकार की ओर से दिये जाते थे, ठीक उन्हीं शब्दों में वही तर्क एनडीए सरकार और भाजपा नेताओं की ओर से दिये जा रहे हैं. सवाल भी वही, जवाब भी वही. पाले वही रहे, बस उन पालों के लोग बदल गये.

हालांकि इन सवालों के बीच यह भी दिखता है कि काले धन के विरुद्ध कार्रवाई यूपीए के दिनों की तुलना में आगे जरूर बढ़ी है. पिछली सरकार काले धन की जांच में हर कदम पर अड़ियल बैल बनी दिखती थी, जबकि यह सरकार आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है. आप इसकी गति से असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन अभी यह कहने का कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखता है कि एनडीए सरकार काले धन की जांच को अटका रही है या कुछ लोगों को बचाने में लगी है. इसने 26 मई से अब तक काले धन के बारे में जो कुछ किया है, उसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. मूलभूत अंतर यह है कि हमने कांग्रेस को इन मुद्दों को वर्षो से लटकाते हुए और कोई संतोषजनक परिणाम देने में नाकाम रहते हुए देखा है. नयी सरकार को अभी पांच महीने ही हुए हैं. अगर हम 100 दिनों में काला धन वापस लाने के चुनावी प्रचार को एक किनारे रख दें, तो इन पांच महीनों में काले धन पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सरकार ने जो कुछ किया है, वह बहुत तेज नहीं, तो बहुत धीमा भी नहीं है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार को प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, देश के अपने कानूनों का ध्यान रखना होगा और अन्य देशों से हुई संधियों का भी सम्मान करना होगा. लेकिन, कई कानूनी जानकार यह पक्ष भी सामने रख रहे हैं कि पूरी सूची सार्वजनिक करने में संधियां आड़े नहीं आ रही हैं. एनडीए सरकार का काले धन पर धीरे-धीरे आगे बढ़ना इसकी एक रणनीति भी हो सकती है. दरअसल, 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के बाद से ही सभी नेताओं के जेहन में यह बात बैठी है कि विरोधी नेताओं पर कानूनी कार्रवाई करने से उन्हें जनता की सहानुभूति मिल सकती है. जनता सरकार ने 1977 में सत्ता में आने के बाद इंदिरा गांधी के विरुद्ध मुकदमे दर्ज किये थे और शाह आयोग बिठा कर जांच शुरू करायी थी. तब इंदिरा को जनता की सहानुभूति मिली थी.

नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों को यह आशंका हो सकती है कि काले धन के विरुद्ध आक्रामक ढंग से कार्रवाई करने और उसमें कुछ कांग्रेसी नेताओं के नाम सामने आने पर इसे बदले की भावना से की गयी कार्रवाई न मान लिया जाये और कांग्रेस को जनता की सहानुभूति बटोरने का मौका न मिल जाये. इस समय कांग्रेस काले धन के सवाल पर आक्रामक दिख रही है. लेकिन, इस मुद्दे पर ज्यादा बवाल मचाना कांग्रेस को उल्टे भारी पड़ सकता है. हरियाणा में भाजपा सरकार के शपथ ग्रहण के दिन ही जब नव-नियुक्त मंत्रियों ने जमीन संबंधी सारे सौदों की जांच की बात कही, तो कांग्रेस के नेता बयान देने लगे कि बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है! काले धन के मसले पर भी ऐसा हो सकता है. कांग्रेसी पूछते रहेंगे कि सरकार क्या कर रही है? फिर सरकार वह काम कर देगी और बोलेगी, आपने ही तो कहा था यह काम करने के लिए!

राजीव रंजन झा

संपादक, शेयर मंथन

Rajeev@sharemanthan.com

Next Article

Exit mobile version