चेहरे बदल जाते हैं, मुद्दे नहीं
-ब्रजेश दुबे- डालटेनगंज/ रांची: विश्रमपुर विधानसभा क्षेत्र के खेत सूखे हैं. किसानों का दर्द यही है कि इस पर त्वरित पहल होती तो इलाके की तसवीर बदल गयी होती. अफसोस यह है कि कौरव जलाशय का मामला पिछले 30 वर्षो से लंबित है. खुटी सोत नदी को नहीं बांधा गया. निरंतर सुखाड़ की मार झेल […]
-ब्रजेश दुबे-
डालटेनगंज/ रांची: विश्रमपुर विधानसभा क्षेत्र के खेत सूखे हैं. किसानों का दर्द यही है कि इस पर त्वरित पहल होती तो इलाके की तसवीर बदल गयी होती. अफसोस यह है कि कौरव जलाशय का मामला पिछले 30 वर्षो से लंबित है. खुटी सोत नदी को नहीं बांधा गया. निरंतर सुखाड़ की मार झेल रहे किसान यह कहते हैं कि आखिर कैसे उनके खेतों में आयेगी हरियाली. जब यहां सब कुछ उपलब्ध रहने के बाद उस पर पहल नहीं हो रही है तो क्या उम्मीद की जाये.
विश्रमपुर विधानसभा में सिंचाई का मुद्दा काफी अहम है. हर चुनाव में यह मुद्दे उछलते हैं, उम्मीद जगती है कि इस बार काम होगा, लेकिन देखते ही देखते पांच साल बीत जाते हैं, फिर से चुनाव आ जाता है.
चुनाव लड़नेवाले जनता से कहते हैं कि इस बार होगा काम. लेकिन हर बार निराश होती है जनता. न सिर्फ सिंचाई के मामले में, बल्कि आवागमन के मामले में भी पिछड़ा है यह इलाका. उंटारी से मङिाआंव को जोड़नेवाली जो पुल कोयल नदी पर बन रही है, उसका काम अभी तक पूरा नहीं हुआ.
एनएच-75 का हाल वही है. रेहला-पांडू पथ, विश्रमपुर-रेहला पथ, रेहला-सिगसिगी पथ की बदहाली विकास की कहानी कह रही है. लोगों का कहना है कि इन सब चीजों में बदलाव आये, यह महत्वपूर्ण मुद्दा है और इस बार इन मुद्दों के अलावा विश्रमपुर को अनुमंडल का दरजा दिलाने का मामला भी एक मुख्य चुनावी मुद्दा होगा, अभी से ही इस पर चर्चा शुरू हो गयी है. लोगों का मानना है कि चेहरे तो बदल जाते हैं, लेकिन मुद्दा वहीं का वहीं रह जाता है.