गठन के 14 सालों में झारखंड को स्थिर सरकार नहीं मिली है. कारण कई हैं, मतदाताओं में जागरूकता की कमी, वोट प्रतिशत में गिरावट और विधानसभा की सीटें कम होना. विस की सीटें तो रातों-रात नहीं बढ़ सकती. पर इसके लिए बाकी प्रयास किये जा सकते हैं, सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों, स्वयं सेवी संस्थानों और प्रबुद्ध लोगों को आगे आना होगा. आम लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित करना होगा. एक बार फिर अवसर है, झारखंड जैसे छोटे और अल्प विकसित राज्य के विकास के लिए.
इसे संवराने के लिए, गति देने के लिए. अब पिछला विस चुनाव का आंकड़ा ही देख लीजिए, करीब 57 फीसदी लोगों ने ही वोट किया था. सबसे खराब स्थिति बड़े शहरों की थी. रांची सीट के लिए सबसे कम मतदान हुआ था. यहां मात्र 32.91 फीसदी लोगों ने ही वोट डाले थे. रांची जिले के हटिया सीट पर मात्र 39.43 फीसदी वोटिंग हुई थी. धनबाद के लिए 42.75 फीसदी, जमशेदपुर पूर्वी सीट के लिए 45.14 फीसदी व जमशेदपुर पश्चिमी के लिए 42.15 फीसदी वोट पड़े थे.
जबकि ये इलाके पूरी तरह सुरक्षित माने जाते हैं, नक्सलियों और उग्रवादियों की पहुंच से दूर. इन इलाकों में लोग बेखौफ वोट डाल सकते हैं. पर ऐसा हो नहीं रहा है. वहीं, नक्सल प्रभावित पाकुड़ जैसे छोटे इलाके में 72.63 फीसदी वोटर मताधिकार का प्रयोग करते हैं. आंकड़ों से स्पष्ट है कि शहरों के कुछ संपन्न लोग ही मतदान को लेकर अधिक उदासीन हैं. इनकी इसी उदासीनता से राज्य में स्थिर सरकार के गठन में बाधा आती रही है. 2009 से अब तक राज्य में तीन मुख्यमंत्री बने, दो बार राष्ट्रपति शासन. हालात को बदलने को लेकर शहरों में रह रहे इन्हीं लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करना अधिक आवश्यक है.
ऐसा करना किसी चुनौती से कम नहीं है. बेहतर होगा, इन लोगों को खुद से पहल करनी होगी, यह अधिक कारगर हो सकता है. छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोगों तक सरकारी व गैर सरकारी संस्थान और स्वयं सेवी संस्थान पहुंचें. लोगों को वोटिंग के लिए जागरूक करे, तो इन इलाकों में मतदान का प्रतिशत और बढ़ सकता है. यह राज्य के हित में होगा, क्योंकि स्थायी सरकार ही बेहतर विकास कर सकती है. राज्य के वोटरों के पास एक बार फिर अवसर है.