हेमंत सोरेन की सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि उसने महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण दिया है. होमगार्ड, प्राथमिक शिक्षक व पंचायत समिति की नियुक्ति में महिलाओं को प्राथमिकता दी जायेगी. श्रेय लेने के लिए सबने कहा कि यह काम हमने किया, लेकिन झारखंड राज्य को अलग कराने में जो पांच हजार से अधिक आंदोलनकारी शहीद हुए, सरकार और सरकार में शामिल नेता उनके परिजनों को आरक्षण देना भूल गये.
जो हजारों आंदोलनकारी जीवित हैं, जेल गये, मार खाये, मुकदमे ङोले, नौकरी छोड़ कर अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में कूदे वैसे तमाम आंदोलनकारियों को भी आज 14 साल में कोई नौकरी नहीं देता, कोई आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, कोई पेंशन नहीं दी जाती और न ही आश्रय के लिए जमीन ही उपलब्ध करायी गयी. ठीक इसके विपरीत उत्तराखंड सरकार ने पहले साल में ही उत्तराखंडी आंदोलनकारियों को तमाम तरह की नौकरियों में क्षैतिज आरक्षण का लाभ दिया.
छत्तीसगढ़ ने भी पहले साल में स्थानीय नीति तैयार कर ली और आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में नियुक्त किया. इतने सालों में झारखंड में आंदोलनकारियों को अभी तक न तो सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिला है और न ही स्थानीय नीति ही बनी है. झारखंड आंदोलन के एक बड़े नेता विनोद बाबू और टेकलाल महतो आज जिंदा नहीं हैं. ये लोग आंदोलनकारियों को नाम और चेहरे से पहचानते थे. शीबा महतो, अर्जुन राम महतो और एके राय भी आंदोलनकारियों को पहचानते हैं, मगर ये लोग सत्ता से बाहर हैं. हालांकि शीबू सोरेन भी आंदोलनकारियों को पहचानते हैं, मगर ये उदासीन बने बैठे हैं.
रामावतार भगत, हजारीबाग