अब भी बन सकते हैं कई मिल्खा
मिल्खा सिंह का नाम सुन कर कर मानो हमारे दिमाग में उम्मीद की एक नयी किरण जाग जाती है. मिल्खा सिंह ने देश के लिए क्या नहीं कया. उन्होंने भारत को उन देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया, जिसके बारे में सोचना कभी सिर्फ खयाली पुलाव समझा जाता था. हम केवल इतना ही […]
मिल्खा सिंह का नाम सुन कर कर मानो हमारे दिमाग में उम्मीद की एक नयी किरण जाग जाती है. मिल्खा सिंह ने देश के लिए क्या नहीं कया. उन्होंने भारत को उन देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया, जिसके बारे में सोचना कभी सिर्फ खयाली पुलाव समझा जाता था. हम केवल इतना ही जानते थे कि मिल्खा सिंह देश के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के सबसे बेहतरीन धावकों में से एक रहे हैं.
पर हमें यह ज्ञात नहीं था कि उन्हें यह मुकाम पाने के लिए किन रास्तों से गुजरना पड़ा. देश का नाम विश्व में रोशन करने से पहले उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया. गुरबत के दिनों में अपना बचपन गुजारा और कड़ी मेहनत कर इस मुकाम को हासिल किया. मगर आज हमारा देश आगे निकल चुका है. आज की सरकारें नये-नये वादे करती हैं, लेकिन आज भी कई ऐसे धावक हैं, जिन्हें अपनी जिंदगी गरीबी में गुजारनी पड़ रही है.
इसी वजह से देश में अच्छे धावकों की कमी है. जो धावक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा ले रहे हैं, उन्हें वह सुविधाएं नहीं मिल पातीं, जिसकी उन्हें दरकार है. कुछ ऐसे भी धावक हैं, जिन्हें अपनी प्रतिभा को निखारने का उचित मंच और आर्थिक सहयोग नहीं मिल पा रहा है. आज फिर से भारत को इस बात की उम्मीद है कि देश की प्रतिभाओं में से कोई मिल्खा सरीखा धावक पैदा हो. देश की यह सोच तभी साकार हो सकेगी, जब नयी प्रतिभाओं को खुद में निखार करने और अभ्यास के लिए संसाधन जुटाने के सहयोग मिले. ऐसा भी नहीं है कि सरकारों के पास संसाधनों की कमी है, लेकिन उसके पास इच्छाशक्ति नहीं है. वह उन खिलाड़ियों या प्रतिभाओं को पुरस्कृत करती है, जो अपने बूते खिताब या पदक हासिल कर देश वापस आते हैं. सरकार इस सोच को सुधारे.
हरपाल सिंह, बोकारो