वो जो अपनी मां को भी मां नहीं मानते

अपने लिए ‘मां’ का संबोधन सुनने के वास्ते नारी अपना पूरा अस्तित्व दावं पर लगा देती है. इसके बावजूद ऐसे एहसान फरामोश हर जगह मिल जायेंगे जो लालच में अंधे होकर मां की जान के दुश्मन बन जाते हैं. पर अब भी ऐसे कुछ लोग हैं, जो दूसरे की मां को भी अपनी मां समझते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 4, 2014 11:10 PM

अपने लिए ‘मां’ का संबोधन सुनने के वास्ते नारी अपना पूरा अस्तित्व दावं पर लगा देती है. इसके बावजूद ऐसे एहसान फरामोश हर जगह मिल जायेंगे जो लालच में अंधे होकर मां की जान के दुश्मन बन जाते हैं. पर अब भी ऐसे कुछ लोग हैं, जो दूसरे की मां को भी अपनी मां समझते हैं और उसके लिए वह सब कुछ करते हैं, जो वो अपनी मां के लिए कर सकते हैं.

अभी कुछ दिन पहले मेरे फेसबुकिया मित्र एक जेबकतरे के मातृ-प्रेम से अभिभूत थे. उनकी पोस्ट ने मुङो भी भावुक कर दिया. आज के जमाने में जब लोग पैसे के लिए मां को पार-घाट लगाने, रिश्तेदारों की जान लेने, ठगने, धोखा देने से नहीं चूकते, उस जमाने में भी मां की अहमियत बरकरार है.

कहा जाता है कि दान-पुण्य ऐसा होना चाहिए कि दाएं हाथ की बात, बाएं हाथ को भी पता न चले. लेकिन इस प्रचार युग में दान का ढोल टीवी, रेडियो, अखबार के जरिये कर्णभेदी स्वर में बजाया जाता है. फलां धनपति ने फलां जगह इतने करोड़ का दान किया, इस तरह की खबरें कई दिनों तक छायी रहती हैं. लेकिन जिस जेबकतरे का ऊपर जिक्र किया गया है, उसने धर्म के मर्म को गहराई से समझा है. उसकी कहानी कुछ इस तरह है : एक जेबकतरा एक कामगार की नौकरी छूटने के बाद उसकी जेब कतर लेता है. कामगार पोस्टकार्ड पर नौकरी छूटने का मजमून लिख कर उसे अपनी मां के पास डालने डाकघर जा रहा था. रास्ते में यह वाकया हो गया. जेब में कुल जमा 90 रुपये थे, जो जेबकतरे के पास चले गये. घटना के कुछ दिन बाद कामगार की मां का पत्र आया कि बेटे तुमने जो पैसे मनीऑर्डर से भेजे थे, वे मिल गये. तू चिंता मत करना, हम सब कुशल हैं. बेचारा सोच में पड़ गया कि आखिर मेरी मां को पैसे भेजे तो भेजे किसने? इस घटना के कुछ दिन बाद एक पोस्टकार्ड उसे मिला. अस्पष्ट अक्षरों में लिखा था-‘भाई, नब्बे रुपये तुम्हारे और 910 रुपये अपनी ओर से मिला कर मैंने तुम्हारी मां को भेज दिया है. फिकर न करना. मां तो सबकी एक जैसी होती है न. वह क्यों भूखी रहे?.. तुम्हारा जेबकतरा.’

यह जेबकतरा उन संस्कारी लोगों में शामिल है जो दूसरों की मां को भी अपनी मां समझते हैं. वहीं, इस देश के नेता और अफसर भी हैं जो अपनी भारत माता को भी मां नहीं मानते. जिसके अन्न-दूध से बड़े हुए, उसी का खून चूसते हैं. धन के लिए अपनी मां को बेचने को तैयार रहते हैं. अपनी मां को लूट कर विदेशों में काला धन जमा करते हैं. जिनके हाथों में वतन की बागडोर है, अगर वे भारत माता को मां मानें, तो देश के हर नागरिक में उन्हें अपना भाई या बहन दिखायी देगा. वे उनकी सेवा के लिए तत्पर रहेंगे. जेबकतरा सत्ताविहीन है, इसलिए उसके पास धर्म भी है और कर्तव्य भी. नेता-अधिकारी सत्तासीन हैं, इसलिए उनके पास सिर्फ ‘भ्रष्टं, भ्रष्टे, भ्रष्टामि’ का मंत्र है.

विश्वत सेन

प्रभात खबर, रांची

vishwat.sen@gmail.com

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