ट्रेन स्टेशन से सरकने के बाद लय पकड़ चुकी थी. बीवी-बच्चों को किसी तरह नीचे की सीट पर बिठाया और खुद को ऊपर की सीटों पर कब्जा जमाये छात्रों के बीच एडजस्ट किया. छात्रों ने अपने सैंडल खोल कर पंखों पर सजा दिये. संसाधनों का ऐसा अधिकतम सदुपयोग ही तो अपने प्रधानमंत्री जी चाहते हैं! लेकिन यह सदुपयोग ‘स्वच्छता अभियान’ के खिलाफ जा रहा था.
सैंडल के तले में लगी मिट्टी मेरे बच्चे पर झड़ी. मैंने सैंडल हटाने को कहा. एक छात्र ने जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं होता अंकल जी, माटी-धूर से ही तो बचवा मजबूत बनेगा.’’ अब छात्रों ने सामूहिक रूप से खैनी मलना शुरू किया और चाय की जगह खैनी पर चर्चा शुरू कर दी कि किसने किस सवाल का क्या जवाब लिखा है. मैंने स्टेशन से खरीदा गया ‘हंस’ का ताजा अंक पढ़ना शुरू कर दिया.
तभी छात्रों के बीच इस सवाल के जवाब को लेकर बहस छिड़ गयी कि सम्राट अशोक का संबंध किस धर्म से था. छात्रों के जवाब देश की शिक्षा व्यवस्था की नींव हिलाने के लिए काफी थे. अब मेरी आंखें पत्रिका पर थीं और कान छात्रों की बातचीत पर. चर्चा के लिए दूसरा सवाल आया कि जंतर-मंतर क्या है.
किसी ने किला बताया, तो किसी ने अजायबघर. फिर बहुमत के आधार पर उनमें राय बनी कि सही जवाब अजायबघर है. अब मुझसे बरदाश्त नहीं हुआ. मैंने कहा कि ये दोनों जवाब गलत हैं. उन्होंने कहा- तो फिर आप ही बताइए. मैंने जवाब दिया- वेधशाला. उन्होंने कहा कि ये विकल्प तो था ही नहीं. मैंने उनसे परचा निकालने को कहा. उसमें ‘खगोलीय पर्यवेक्षणशाला’ विकल्प मौजूद था, जो ‘एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेटरी’ का मच्छिका स्थाने मच्छिका वाला सरकारी अनुवाद था. मैंने कहा कि इसी को वेधशाला भी कहते हैं. छात्रों के मुंह से एक साथ निकला- ई होता का है? उन्हें संक्षिप्त जानकारी देकर मैंने फिर पत्रिका पढ़नी शुरू कर दी.
तभी तीसरा सवाल आया कि अमिताभ बच्चन को किस फिल्म की शूटिंग के दौरान चोट लगी थी. मुङो पूरा यकीन था कि करीना के जीरो फिगर और शाहरुख के सिक्स पैक के शोधार्थियों को इस सवाल का सही जवाब जरूर पता होगा. लेकिन यह क्या? सबने पूरे यकीन से एक साथ जवाब दिया ‘शोले’. मैंने उन्हें खीजते हुए बताया कि सही जवाब ‘कुली’ है, तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा, ‘‘शोले सबसे हिट फिलिम था, तो हमको लगा कि यही सही होगा.’’ तभी एक छात्र बोला, ‘अंकल जी मैगजीन खूब पढ़ते हैं, इसलिए सब जानते हैं.’ तभी एक ने पत्रिका दिखाने को कहा. उन्होंने ‘हंस’ को एक -दूसरे के हाथों में यूं फेंका जैसे दहकता कोयला हो. फिर पूछा- का चीज का पत्रिका है ई? मैंने कहा- कहानी की. एक ने कहा- अच्छा! सरस सलिल जैसा. रेलवे के ग्रुप डी की परीक्षा देकर पटना लौट रहे ये छात्र मुगलसराय में उतर गये. फिर एक और परीक्षा की तैयारी करने के लिए.
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
satyajournalist@gmail.com