भारत सरकार ने साक्षरता पर जोर देते हुए सरकारी स्कूलों में कई सुविधाएं मुहैया करायीं, ताकि गरीब बच्चे पढ़ाई कर सकें. पुस्तकें, मिड डे मील, स्कूल ड्रेस, साइकिल आदि मुकम्मल तौर पर मुहैया कराये जाते हैं. गरीब के बच्चे स्कूल जाते जरूर हैं, पर सिर्फ खेलने और खाने के लिए. इसके बाद बच्चे भाग जाते हैं. वजह के रूप में सरकारी शिक्षकों की लापरवाही ही सामने आती है. सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन का कार्य पूरी तरह से ठप है. ज्यादातर स्कूलों में शिक्षक आपसी बातचीत में मशगूल रहते हैं. उन्हें बच्चों के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है.
शिक्षक अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं. उन्हें वही काम करना चाहिए, जिसके लिए उन्हें नियुक्त किया गया है. कच्ची उम्र में ही अगर बच्चों को पढ़ाई से लगाव नहीं होगा, तो भविष्य में उनका पढ़ाई-लिखाई से कोई सरोकार भी नहीं होगा. सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों की पढ़ाई इस हद तक खराब है कि सातवीं-आठवीं कक्षा के बच्चे ठीक तरह से हिंदी की पुस्तक भी नहीं पढ़ सकते. इसमें गलती किसकी है? गरमी के मौसम में शिक्षकगण पंखे के नीचे तथा सर्दी के मौसम में धूप में सारा दिन निकाल देते हैं. ये लोग आपस में इतने मशरूफ होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं चलता कि बच्चे कब स्कूल से भाग गये.
बच्चों का सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करना और घर पर बैठना एक जैसा है. यही वजह है कि कुछ मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं. हालांकि उनका कहना भी सही है कि बच्चे घर से इतनी दूर सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और वहां पढ़ाई नहीं होती. एक ओर सरकार बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करती है, वहीं शिक्षक अध्यापन न करके बच्चों मनोबल तोड़ने का काम कर रहे हैं.
चंदा साहू, देवघर