वोट के सौदागर!

दर्शक 14 वर्षो में कैसा झारखंड बना है? बारह वर्ष एक युग माना जाता है. कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में यानी शुरू में ही उसके भविष्य के लक्षण दिखायी देते हैं. झारखंड बने तो 14 वर्ष हो गये. 14 वर्ष की उम्र में लक्षण दिखने लगा है कि किशोर बालक का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2014 6:30 AM
दर्शक
14 वर्षो में कैसा झारखंड बना है? बारह वर्ष एक युग माना जाता है. कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में यानी शुरू में ही उसके भविष्य के लक्षण दिखायी देते हैं. झारखंड बने तो 14 वर्ष हो गये. 14 वर्ष की उम्र में लक्षण दिखने लगा है कि किशोर बालक का भविष्य क्या है? गुजरे 14 वर्षो में बारह सरकारें झारखंड में बदली हैं.
यह नौवें मुख्यमंत्री हैं. तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है. यहां आठवें राज्यपाल हैं. आपको याद है कि एक सरकार की या एक मुख्यमंत्री की संवैधानिक उम्र क्या है? पांच वर्ष! यानी झारखंड में 45 वर्षो में नौ मुख्यमंत्री होते. अगर सभी मुख्यमंत्री अपना-अपना कार्यकाल पूरा करते, तो तीन बार राष्ट्रपति शासन भी नहीं लगता, पर इसी मौजूदा विधानसभा में दो बार राष्ट्रपति शासन भी लगा है.
क्या ये आंकड़े महज तथ्य हैं? नहीं. ये झारखंड की बीमार राजनीति के लक्षण हैं.
यहां राजनीति में ईमान है ही नहीं. यहां दल-बदल का नियम लागू नहीं होता. झारखंड के विधायक सभी नैतिक मूल्यों-आचार संहिता से ऊपर हैं. ये ऐसे ग्रहलोक के प्राणी हैं, जो कब, किसके साथ और कहां हैं, यह वे खुद नहीं जानते. यहां हर राजनेता या दल सरकार बनाने की जल्दी में रहता है. ऐसी स्थिति में मकसद साफ है, सत्ता को हथियार या माध्यम बना कर निजी ताकत बढ़ाना.
अपने समर्थकों का घर भरना. अपने अपढ़ चापलूसों को सरकारी नौकरी में डालना.
किसी संवैधानिक नियम-कानून की परवाह न करना, और लहर गिनने के काम में लगना. सुरक्षा फौजें लेकर सड़क पर सायरन बजाते लोगों को डराते-धमकाते चलना. झारखंड लूटो! इस अभियान का ही परिणाम है कि गुजरे 14 वर्षो में 28 नेताओं के घर छापे पड़े, 10 नेता और 332 सरकारी अफसर-कर्मचारी जेल गये.
देश में पहली बार झारखंड के विधायकों ने राज्यसभा में वोट बेचने का श्रेय पाया है. देश में पहली बार राज्यसभा चुनाव के संदर्भ में 22 विधायकों के घर छापे पड़े हैं. राज्यसभा चुनाव 2010 और 2012 में हुए हॉर्स ट्रेडिंग के मामले में सीबीआइ जांच चल रही है. आपको याद है कि झारखंड राज्यसभा चुनाव 2010 में झामुमो के समर्थन से केडी सिंह चुनाव जीते थे. बाद में वह झामुमो छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में चले गये. फिर राज्यसभा चुनाव 2012 में, पैसे के बल, विधायकों के वोट प्रभावित होने की खबरें उछली.
राज्यसभा के इन दोनों चुनावों (2010 और 2012) में झारखंड के 26 विधायकों के यहां छापे पड़े. इनमें कांग्रेस के सात विधायक, झामुमो के चार, झाविमो के दो, भाजपा के तीन, राजद के पांच, आजसू के चार, जदयू के एक और दो निर्दलीय यानी कुल 26 विधायकों के खिलाफ जांच चल रही है.
कुछेक अपवाद छोड़ कर इसमें सभी दल के लोग हैं. याद रखिए, झारखंड विधानसभा बनने के बाद, विधायकों ने अपने वेतन और भत्ते में आठ बार वृद्धि की. झारखंड में विधायक फंड तीन करोड़ का है. इस तरह झारखंड के विधायक, वैध रूप से सरकार से सबसे अधिक तनख्वाह, सुविधाएं वगैरह पा रहे हैं. फिर भी इनका लोभ देखिए! राज्यसभा चुनावों में भी ये सौदेबाजी करते हैं. आपको याद है, 2012 राज्यसभा चुनावों के दौरान आयकर ने नामकुम से सवा दो करोड़ रुपये जब्त किया था. चुनाव आयोग ने वोटों की गिनती पर रोक लगायी. राष्ट्रपति से चुनाव रद्द करने की अनुशंसा की. इस संदर्भ में अनेक विधायकों के घर छापे पड़े.
आप मत भूलिए कि झारखंड विधानसभा में अब तक नौ (दो कार्यकारी स्पीकर सहित) अध्यक्ष हो चुके हैं. आमतौर से एक अध्यक्ष के पद की उम्र भी पांच वर्ष होती है, पर रोज नयी-नयी सरकार बनाने-बिगाड़ने के खेल में लगे विधायकों के सौजन्य से झारखंड में नौ अध्यक्ष हो चुके हैं. इन अध्यक्षों (दो अपवादों को छोड़ कर) के कामकाज पर कभी आपने गौर किया है?
जितनी जरूरत है, उससे कई गुणा अधिक अपने-अपने अयोग्य लोगों की भरती. लोकतंत्र में विधानसभा मंदिर की भूमिका में है. यहां कानून बनते हैं, ताकि समाज बेहतर तरीके से चले. भविष्य सुंदर हो. पर झारखंड विधानसभा अपवाद है, जहां सचिव न्यायिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं. यहां चपरासी भी कानून बनानेवाले अफसर की भूमिका में पहुंच सकता है. यहां इतनी नियुक्तियां हुईं कि काम करनेवालों के लिए बैठने की जगह ऑफिस में नहीं थी.
1. झारखंड विधानसभा में नियुक्ति घोटाला एवं जांच की स्थिति एवं कितनी नियुक्तियां किसने की.विधानसभा की नियुक्तियां जिन पर विवाद है
– 150-अनुसेवक (चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी), 30 रिपोर्टर- तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने की थी.
– 150-सहायक-तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर ने की थी.
– झारखंड विधानसभा में न्यायिक सेवा के अधिकारी को सचिव के रूप में पदस्थापित नहीं किया गया है.
– झारखंड विधानसभा में चपरासी के पद पर नियुक्त व्यक्ति भी प्रोन्नत हो कर सचिव बनते रहे हैं.
– नियुक्तियों की जांच के लिए राधाकृष्ण किशोर की अध्यक्षता में विधानसभा की जांच कमेटी बनी. जांच कमेटी ने रिपोर्ट भी दी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. सरकार ने नियुक्तियों की जांच के लिए लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में आयोग बनाया. आयोग को विधानसभा की ओर से आवश्यक सहयोग नहीं किया गया. लोकनाथ प्रसाद ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद आयोग की जांच प्रक्रिया बंद है. सरकार ने रुचि नहीं दिखायी.
2. एक पूर्व अध्यक्ष ने क्या-क्या अनियमितताएं पकड़ी थीं. किस-किस तरह के भत्ते बंद किये.
उन्होंने अनेक उल्लेखनीय काम किये, पर फिलहाल तीन महत्वपूर्ण बिंदु.
– गुरुत्तर भत्ता पर रोक लगाया. गुरुत्तर भत्ता के रूप में विधानसभा के अधिकारी 13 माह का वेतन लेते थे. काम 12 माह का, वेतन 13 माह का.
– राज्यपाल के आदेश में अवर सचिव लिखा था. इसमें अवर को हटा कर सचिव कर दिया गया. इसे तत्कालीन अध्यक्ष सीपी सिंह ने पकड़ा.
– 20 सचिवों और कर्मचारियों की अवैध प्रोन्नति को पकड़ा. प्रोन्नति को रद्द किया.
(पर अब इन चीजों की क्या स्थिति है? फिर चीजें पुरानी राह पर, लेकिन कोई विरोध नहीं)
3. झारखंड विधानसभा की बैठकें कैसे घटती गयीं. कब-कब गाली-गलौज हुआ. बहस का स्तर कहां पहुंचा.
कितनी बैठकें हुई
– 15 नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद अब तक विधानसभा कुल 340 (बैठकें) दिन चली है.
– पहली विधानसभा (2000-2004)
115 दिन चला सत्र
– दूसरी विधानसभा (2005-2009)
118 दिन चला सत्र
– तीसरी विधानसभा (2010 से अब तक)
107 दिन चला है सत्र
विधानसभा में पांच दिन के सत्र में औसतन दो दिन हो-हंगामा में बरबाद होता रहा है.
4. कितनी समितियां बनीं. उन पर कितना खर्च हुआ. कितनी समितियों ने रिपोर्ट दी.
विधानसभा की कमेटी
– वर्तमान विधानसभा में 25 कमेटियां हैं.
– 14 वर्ष में 41 विशेष कमेटियां बनीं
– सिर्फ दस विशेष कमेटियों ने रिपोर्ट सौंपी
विशेष कमेटियों के लिए अलग से खर्च की व्यवस्था नहीं होती है. कमेटी के सदस्यों को जांच के क्रम में बाहर जाना होता है, तो देय भत्ता अनुरूप टीए-डीए मिलता है. कमेटियों के खर्च का अलग लेखा-जोखा नहीं होता है.
लोकतंत्र में विधानसभा ही मंदिर है. मार्गदर्शक. यही संस्था आदर्श स्थापित करने का काम कर सकती है. झारखंड की समस्याओं पर बेहतर विचार-विमर्श और सरकार व अफसरशाही पर नकेल कसने का काम यहीं से संभव है. पर खुद से पूछिए, पिछले 14 वर्षो में क्या हमारे विधायक (पक्ष-विपक्ष) कोई आदर्श स्थापित कर पाये हैं?
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