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आदिवासी हितों की अनदेखी के कारण बिगड़े हालात

जेके सिन्हा सीआरपीएफ के पूर्व डीजी राज्य में पुलिस सुधार की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. इसलिए जिस अनुपात में राज्य की आबादी बढ़ रही है और अपराध के नये स्वरूप सामने आ रहे हैं, उससे निबटने में पुलिस बल पूरी तरह से नाकाम है. झारखंड गठन के बाद से ही विकास की […]

जेके सिन्हा

सीआरपीएफ के पूर्व डीजी

राज्य में पुलिस सुधार की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. इसलिए जिस अनुपात में राज्य की आबादी बढ़ रही है और अपराध के नये स्वरूप सामने आ रहे हैं, उससे निबटने में पुलिस बल पूरी तरह से नाकाम है.

झारखंड गठन के बाद से ही विकास की बजाय नकारात्मक खबरों के कारण सुर्खियों में रहा है. संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद गरीबी, अशिक्षा और मूलभूत सुविधाओं की कमी से आम लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है. झारखंड की समस्याएं कई हैं. खनन कार्य, खासकर कोयला खदानों के कामकाज में माफिया की घुसपैठ हो गयी है. इस क्षेत्र में माफियाओं की मौजूदगी के कारण आये दिन खूनखराबा होता रहता है और इससे शहर की कानून-व्यवस्था पर असर पड़ता है.

उसी तरह स्क्रैप का कारोबार भी राज्य में काफी बड़ा है, इसमें भी काफी गुंडागर्दी है. इसके अलावा राज्य के कई क्षेत्रों जैसे गिरिडीह, हजारीबाग में सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती रही है. सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए समय पर शासन का दखल आवश्यक है. कानून-व्यवस्था एक सामान्य प्रक्रिया है और अपराध को बेहतर पुलिसिंग के सहारे रोकने में मदद मिल सकती है. चूंकि झारखंड के कुछ इलाके औद्योगिक क्षेत्र हैं, तो मजदूरों की समस्या का भी सामना करना पड़ता है.

झारखंड की सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद है. नक्सलवाद मुख्य रूप से दो विभाग खनन और वन से जुड़ा हुआ है. नक्सलवाद पर लगाम लगाने में पुलिस की भूमिका सीमित है. झारखंड पुलिस नक्सलियों से लड़ने में दक्ष नहीं है. देखने में आया है कि पिछले कुछ वर्षो में वन उत्पादों के ठेकेदार, वन अधिकारी और राजनेताओं की नक्सलियों से सांठगांठ हो गयी है. ऐसे में पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में कठिनाई होती है. बेहतर पुलिसिंग के लिए सड़कों का बेहतर होना काफी आवश्यक है. नक्सली नहीं चाहते की सड़कें अच्छी बनें. बेहतर सड़क होने से सुरक्षा बलों को आने-जाने में आसानी होती है. लेकिन गठन के बाद से ही राज्य में सड़कों की बेहतरी की ओर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया.

मेरा मानना है कि झारखंड का गठन जल्दबाजी में किया गया. आदिवासी हितों के नाम पर इसका गठन हुआ, लेकिन अब तक वहां कोई भी दल स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाया है. आदिवासी काफी सीधे, लेकिन मेहनती होते हैं. अंगरेजों ने भी इस क्षेत्र में शासन चलाने के लिए जमीनी हकीकतों को तवज्जो दी थी. आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए ही छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट बनाया गया था. यही नहीं, अंगरेजी हुकूमत में यह जरूरी था कि शीर्ष अधिकारी को स्थानीय भाषा की जानकारी हो. लेकिन आजादी के बाद इस ओर ध्यान नहीं दिया गया. संसाधनों की उपलब्धता को देखते हुए आदिवासियों का शोषण होने लगा. वन अधिकारों को लेकर झगड़ा भी बढ़ने लगा. आदिवासियों के लिए वन का धार्मिक महत्व रहा है. लेकिन विकास के नाम पर आदिवासियों की भावना की अनदेखी की गयी. उद्योग के निर्माण और खनन कार्यो के कारण बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों का विस्थापन हुआ. इससे शासन और आदिवासियों के बीच तनाव बढ़ने लगा. इस कारण नक्सलवाद ने राज्य में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी.

राज्य के लिए सबसे दुर्भाग्य की बात रही है अस्थिर सरकार. गंठबंधन की सरकारों के कारण शासन-व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला. अस्थिर सरकारों के कारण विकास योजनाएं जमीन पर नहीं उतर पायीं. यही वजह है कि कोयले की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद राज्य गंभीर बिजली संकट का सामना कर रहा है. राजनीतिक दलों ने बुनियादी समस्या को दूर करने की बजाय सिर्फ सत्ता हासिल करने को ही मुख्य एजेंडा बना लिया है. यही वजह है कि राज्य में पुलिस सुधार की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. इसलिए जिस अनुपात में राज्य की आबादी बढ़ रही है और अपराध के नये स्वरूप सामने आ रहे हैं, उससे निबटने में पुलिस बल पूरी तरह से नाकाम है. यही नहीं पुलिस थानों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए पुलिस का आधुनिकीकरण बेहद जरूरी है.

अगर हालात नहीं बदले, तो झारखंड का भविष्य अंधकारमय ही रहेगा. गठन के बाद से राज्य में कोई बड़ा औद्योगिक निवेश नहीं हुआ है. कागजों पर करोड़ों रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं, पर जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ है. राज्य को पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए राजनीतिक स्थिरता और दूरदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता है. साथ ही विकास योजनाओं में आदिवासियों को भी भागीदार बनाने की जरूरत है. वन भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित कर राज्य शांति और समृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है. राज्य में विकास की अपार संभावनाएं हैं. बस इसे सही दिशा और नेतृत्व की दरकार है.

(आलेख बातचीत पर आधारित)

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