मंत्रिमंडल विस्तार से उभरते संकेत

इस साल मई महीने में मोदी मंत्रिमंडल ने शपथ ली तो मंत्रियों की संख्या 45 थी. इसमें कई मंत्रियों के पास एक से ज्यादा मंत्रलय थे. अरुण जेटली के जिम्मे तीन-तीन बड़े मंत्रालयों (वित्त, रक्षा और कॉरपोरेट अफेयर्स) का प्रभार था. तब कहा गया था कि मोदी सरकार का मंत्र है- ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 10, 2014 1:23 AM
इस साल मई महीने में मोदी मंत्रिमंडल ने शपथ ली तो मंत्रियों की संख्या 45 थी. इसमें कई मंत्रियों के पास एक से ज्यादा मंत्रलय थे. अरुण जेटली के जिम्मे तीन-तीन बड़े मंत्रालयों (वित्त, रक्षा और कॉरपोरेट अफेयर्स) का प्रभार था. तब कहा गया था कि मोदी सरकार का मंत्र है- ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’. हालांकि जिम्मेवारी का निर्वाह काम की मात्र और गंभीरता के लिहाज से श्रम-विभाजन की मांग करता है. इस लिहाज से देखें तो मोदी-मंत्रिमंडल का विस्तार अपेक्षित था.
मंत्रिमंडल में 21 नये चेहरों को शामिल करने से संकेत उभरते हैं कि नयी सरकार आगामी दिनों में अपने कामकाज में अधिक चुस्ती-फुर्ती लाना चाहती है. यह विस्तार मोदी सरकार ने अपने पांच महीने पूरे कर लेने के बाद किया है. इस बीच हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इस समय झारखंड में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और कुछ ही समय बाद बिहार में भी चुनाव होनेवाले हैं. इसके मद्देनजर मंत्रिमंडल विस्तार पर क्षेत्रीय, जातीय और चुनावी समीकरणों का असर साफ देखा जा सकता है.
जयंत सिन्हा, गिरिराज सिंह, रामकृपाल यादव, राजीव प्रताप रूडी, बाबुल सुप्रियो को राज्यमंत्री का ओहदा देना झारखंड, बिहार व बंगाल के भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं को यह संकेत देने की कोशिश कही जा सकती है कि इन राज्यों में विधानसभा चुनाव के परिणाम पार्टी के पक्ष में रहे, तो भविष्य में दूसरों के लिए भी केंद्रीय सत्ता में हिस्सेदारी के रास्ते खुले रहेंगे. महाराष्ट्र के सुरेश प्रभु, हरियाणा के राव वीरेंद्र और बिहार के रामकृपाल यादव को अलग-अलग ढंग से पुरस्कृत कर भाजपा ने यह संकेत भी दिया है कि अपना दल छोड़ कर भाजपा में निष्ठा जतानेवालों के साथ पद-प्रतिष्ठा के मामले में पार्टी भेदभाव का रवैया नहीं अपनाती.
राज्यमंत्री के रूप में ज्यादातर युवा नेताओं को चुनने से यह समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भविष्य की टीम तैयार करने की भी कोशिश कर रहे हैं. शिवसेना जरूर इस विस्तार से नाराज है, लेकिन उसे यह समझना होगा कि भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ एनडीए का नेतृत्व कर रही है. इसलिए मनमोहन सिंह सरकार की तरह सहयोगी दल अब प्रधानमंत्री के हाथ ऐंठ कर अपनी बात नहीं मनवा सकते.

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