हड़िया-शराब पर नियंत्रण जरूरी

रांची और इसके आसपास के जिलों में इन दिनों हड़िया-दारू के खिलाफ एक लहर सी उठी हुई है, जिसकी अगुवाई औरतें कर रही हैं. इसमें उनका साथ बच्चे भी दे रहे हैं. ये लोग छापा मार कर शराब भट्ठियों को तोड़ रहे हैं. साथ ही लोगों से शराब का सेवन न करने की अपील कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 11, 2014 6:46 AM
रांची और इसके आसपास के जिलों में इन दिनों हड़िया-दारू के खिलाफ एक लहर सी उठी हुई है, जिसकी अगुवाई औरतें कर रही हैं. इसमें उनका साथ बच्चे भी दे रहे हैं. ये लोग छापा मार कर शराब भट्ठियों को तोड़ रहे हैं. साथ ही लोगों से शराब का सेवन न करने की अपील कर रहे हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं कि हड़िया-शराब झारखंड के लिए बड़ी समस्या बन गयी है.
झारखंड में ग्रामीणों की आय ऐसे भी बहुत कम है और ऊपर से उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा शराब में चला जा रहा है. हर तरफ नशे के ऐसे आदी देखे जा सकते हैं, जो दिन-रात शराब में डूबे रहते हैं और काम-काज कुछ नहीं करते. घर की औरतें मेहनत-मजदूरी कर जो कमाती हैं, उसे उनके पति और भाई शराब में उड़ा रहे हैं. नशाखोरी के चलते शहरी और ग्रामीण गरीबों में कुपोषण बढ़ रहा है.
जिस पैसे से अनाज, मांस, दूध, सब्जियां, दाल वगैरह खरीदी जानी चाहिए, वह शराब में जा रहा है. सरकार के एक रुपये किलो चावल से किसी तरह पेट तो भर जाता है, लेकिन वह समुचित पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है. शराब के चलते अपराध, सड़क हादसों व घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है. कुछ लोग हड़िया-शराब को आदिवासी संस्कृति से जोड़ने और उसे महिमामंडित करने की गलती करते हैं.
यह सही है कि आदिवासी समाज में शराब को नैतिकतावादी दृष्टिकोण से नहीं देखा जाता. शराब पीने को नैतिक पतन नहीं मान लिया जाता. लेकिन, आदिवासी संस्कृति भी पर्व-त्योहार के समय ही हड़िया-शराब के सेवन को उचित मानती है, वह भी संयमित ढंग से. झारखंड को इसकी सांस्कृतिक विशिष्टता की वजह से पारंपरिक पेय के नाम पर हड़िया बनाने व पीने की छूट मिली हुई है. लेकिन नशे की महामारी यदि नियंत्रित नहीं हुई, तो देर-सवेर सरकार को इसमें दखल देना ही पड़ेगा. शराब के आंदोलन का नेतृत्व औरतें कर रही हैं, क्योंकि नशाखोरी का सबसे ज्यादा खमियाजा उन्हीं को भुगतना पड़ रहा है. उनकी मेहनत की कमाई मर्द शराब में लुटा रहे हैं. घरेलू हिंसा का शिकार भी उन्हीं को होना पड़ रहा है. उन्हें अपने बच्चों की फिक्र है जो अच्छी शिक्षा और पौष्टिक भोजन से वंचित हैं. महिलाओं के इस आंदोलन में हम सब साथ दें.

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