अनिवार्य मतदान से जुड़े जरूरी सवाल
गुजरात के मतदाताओं के लिए स्थानीय निकायों के चुनाव में वोट देना अनिवार्य करनेवाले कानून पर राज्य के राज्यपाल ओपी कोहली ने मुहर लगा दी है. तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाल ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया था, जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री, और अब देश के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने इसे अनुशासन के जरिये […]
गुजरात के मतदाताओं के लिए स्थानीय निकायों के चुनाव में वोट देना अनिवार्य करनेवाले कानून पर राज्य के राज्यपाल ओपी कोहली ने मुहर लगा दी है. तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाल ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया था, जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री, और अब देश के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने इसे अनुशासन के जरिये ‘लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए’ उठाया गया कदम बताया था, ताकि राजनीति और राजनेता ‘वोट बैंक, जाति और क्षेत्र की राजनीति’ से ऊपर उठ कर सोच सकें और मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनाये जानेवाले भ्रष्ट तौर-तरीकों पर रोक लग सके.
उन्होंने यह भी कहा था कि कम मतदान की वजह से मतदाताओं की कुल संख्या का 25 फीसदी से भी कम मत पानेवाली पार्टियां सत्ता में आ जाती हैं, इसलिए देश भर में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए. निश्चित रूप से ये ठोस तर्क हैं और मोदी द्वारा चिह्न्ति समस्याएं भी हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की गंभीर चुनौतियां हैं. लेकिन यह बिंदु भी विचारणीय है कि अनिवार्य मतदान का कानून और इस कानून के उल्लंघन पर दंड की व्यवस्था का संविधान प्रदत्त बुनियादी अधिकारों से कहीं टकराव तो नहीं है. फिर एक आवश्यक प्रश्न इस कानून की व्यावहारिकता पर भी है. यूनेस्को के अनुसार, भारत में आंतरिक आप्रवासन की संख्या 40 करोड़ तक पहुंच गयी है. ऐसे में मतदान के वक्त अपने मूल निवास-स्थान पर जा पाना एक बड़ी आबादी के लिए दुष्कर है.
बार-बार जगह बदलने और मतदाता सूची में नाम शामिल होने की प्रक्रिया जटिल होने के कारण नयी जगह पर मतदाता बनना भी आसान नहीं होता. इसलिए जरूरी है कि अनिवार्य मतदान की व्यवस्था वाले देशों के अनुभवों से सीख लेकर ऐसी प्रणाली विकसित की जाये, ताकि अधिकतम लोग मतदान को अपनी जिम्मेवारी समझ कर इसमें शामिल हों. लेकिन यह जागरूकता तभी आ सकती है, जब साक्षरता एवं शिक्षा का स्तर बेहतर हो. हमें ध्यान रखना होगा कि सहभागिता और सामूहिकता लोकतंत्र के मूल भाव हैं. लोकतांत्रिक आधुनिक समाज की संकल्पना जवाबदेह और जिम्मेवार नागरिकों से ही की जा सकती है. ज्यादा कानूनों और दंड का भय दिखा कर बेहतर समाज की संरचना नहीं की जा सकती.