झारखंड में बेमतलब होता आरटीआइ

झारखंड में सूचना का अधिकार कानून ठंडे बस्ते में जाता नजर आ रहा है. इसके तहत आयोग से सूचना मांगने वाले लोगों को आयोग का चक्कर लगाना पड़ रहा है. सूचना के अधिकार के तहत 30 दिनों में सूचना दी जानी है, लेकिन आलम यह है कि वर्षो बाद भी लोगों को सूचनाएं नहीं मिल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2014 11:53 PM

झारखंड में सूचना का अधिकार कानून ठंडे बस्ते में जाता नजर आ रहा है. इसके तहत आयोग से सूचना मांगने वाले लोगों को आयोग का चक्कर लगाना पड़ रहा है. सूचना के अधिकार के तहत 30 दिनों में सूचना दी जानी है, लेकिन आलम यह है कि वर्षो बाद भी लोगों को सूचनाएं नहीं मिल पा रही हैं.

इसके पीछे की सरकारी उदासीनता को समझना भी जरूरी है. झारखंड में आरटीआइ के तहत कुल नौ सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जानी है, लेकिन राज्य स्थापना के 14 वर्षो में आज तक सभी पदों को कभी नहीं भरा गया. मौजूदा समय की बात करें, तो अभी केवल दो ही आयुक्तों के भरोसे पूरे राज्य है.

नियुक्ति प्रक्रि या में शिथिलता राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करती है. ऐसे में आरटीआइ कानून की सफलता तथा लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर खतरा मंडराता दिख रहा है. अब इन दो आयुक्तों पर ही पूरे राज्य के लोगों की अपीलों का बोझ क्यों, यह समझ से परे है. स्वीकृत पदों पर भी आयुक्तों की नियुक्ति ना होने से लगता है कि सरकार की मंशा साफ नहीं है. अब जनता तो यही समङोगी कि सरकार परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार को प्रश्रय दे रही है. एक तरफ सूचना का अधिकार कानून ने शहरों से इतर गांवों तक दस्तक दे दी है. बहुत सारे लोग विभिन्न योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि के बारे में जानकारी पा कर जागरूक भारत की तसवीर बना रहे हैं ,तो वहीं सूचना आवेदन के लाखों मामले लंबित हैं. परिणाम यह कि कार्यालयों में आवेदन पत्र धूल फांकते नजर आते हैं, तो आवेदक उत्तर प्राप्ति की आशा में बाट जोहता नजर आता है. थक-हार कर व्यक्ति अपना ध्यान दूसरी तरफ लगा लेता है. इस विभागीय सुस्ती का जवाब कौन देगा?

सुधीर कुमार, गोड्डा

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