दयानंद का नाम लेने से परहेज क्यों?
महात्मा गांधी जब अबोध बालक थे, तभी अंगरेजों के भयंकर दमन चक्र के बीच बड़ी निर्भीकता से महर्षि दयानंद सरस्वती ने सबसे पहले स्वराज की घोषणा की थी. मातृभाषा गुजराती एवं संस्कृत के प्रकांड पंडित होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के लिए स्वामी दयानंद ने अपने उपदेशों एवं पुस्तक रचना […]
महात्मा गांधी जब अबोध बालक थे, तभी अंगरेजों के भयंकर दमन चक्र के बीच बड़ी निर्भीकता से महर्षि दयानंद सरस्वती ने सबसे पहले स्वराज की घोषणा की थी.
मातृभाषा गुजराती एवं संस्कृत के प्रकांड पंडित होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के लिए स्वामी दयानंद ने अपने उपदेशों एवं पुस्तक रचना का माध्यम हिंदी को बनाया. सदियों से उपेक्षित दलित एवं समाज की स्त्रियों के लिए स्वामी दयानंद ने न केवल शिक्षा का द्वार खोला, बल्कि उन्हें वेदों के पठन-पाठन एवं यज्ञ करने व कराने का अधिकार भी दिया.
दयानंद ने सदियों से चले आ रहीं धर्म, समाज एवं राष्ट्र को कमजोर करनेवाले रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों पर प्रबल प्रहार किया. मन में सुविचारों के उदय के लिए उन्होंने मद्य एवं मांस सेवन का भी विरोध किया. बाद में युवा होने पर महात्मा गांधी ने स्वामी दयानंद द्वारा शुरू किये गये स्वराज आंदोलन, हिंदी आंदोलन, अस्पृश्यता उन्मूलन, मद्य निषेध और गोहत्या आदि पर रोक लगाने के लिए आंदोलन किया.
स्वराज, समाज सुधार एवं राष्ट्रीयता के लिए सरदार पटेल ने भी स्वामी दयानंद का आभार प्रकट किया. आश्चर्य की बात यह है कि आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल की लोहे की प्रतिमा स्थापित करने के लिए देशभर से लोहा एकत्र कर रहे हैं. लेकिन उनकी जुबान से महर्षि दयानंद सरस्वती का नाम भूल से भी नहीं निकलता है. वे हमेशा उनका नाम लेने से कतराते हुए नजर आते हैं. इसका कारण संभवत: यह है कि जहां स्वामी दयानंद सरस्वती अंधविश्वासों और रूढ़िवादियों के प्रबल विरोधी थे, वहीं नरेंद्र मोदी इन दोनों कुरीतियों के प्रबल पोषक हैं. शायद इसीलिए वे उनका नाम नहीं लेना चाहते.
संध्या कुमारी, रांची