बहुत हुई बरबादी अब नवनिर्माण करें

आज (15 नवंबर) झारखंड को अलग राज्य बने 14 साल हो गये. यह मौका है इस बात का मूल्यांकन करने का कि हम कहां खड़े हैं. इस राज्य के निर्माण के लिए लंबा संघर्ष चला. सैकड़ों लोग आंदोलनों में शहीद हुए. लोगों में यह भावना थी कि बिहार अपने आदिवासी बहुल दक्षिणी हिस्से की उपेक्षा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2014 12:40 AM

आज (15 नवंबर) झारखंड को अलग राज्य बने 14 साल हो गये. यह मौका है इस बात का मूल्यांकन करने का कि हम कहां खड़े हैं. इस राज्य के निर्माण के लिए लंबा संघर्ष चला. सैकड़ों लोग आंदोलनों में शहीद हुए.

लोगों में यह भावना थी कि बिहार अपने आदिवासी बहुल दक्षिणी हिस्से की उपेक्षा करता है. कहा जाता था कि अपना राज होगा तो इस क्षेत्र का विकास होगा. यहां के लोगों को रोजी-रोटी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा. इस क्षेत्र में अकूत खनिज संपदा है.

यहीं उद्योग लगेगा और यहीं नौकरी मिलेगी. समृद्धि आयेगी. लेकिन अलग राज्य बनने के बाद हालात में बहुत बदलाव नहीं दिख रहा. बेहतर शासन के अभाव में झारखंड आगे नहीं बढ़ पा रहा. राज्य बनने के बाद लगभग हर बड़ा दल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सत्ता में रहा, लेकिन झारखंड के हालात नहीं बदले. यहां के लोग जब उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ को देखते हैं तो तकलीफ और बढ़ जाती है. इन दोनों राज्यों का गठन झारखंड के साथ ही हुआ था, पर वे तरक्की की राह पर झारखंड से कहीं आगे हैं.

अलग राज्य बनने के बाद तीसरी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. यहां कभी किसी दल की अकेले बहुमत की सरकार नहीं रही. हर बार सरकार बनाने के लिए छोटे-छोटे दलों या फिर निर्दलीयों को ‘पटाना’ पड़ा. सरकार को समर्थन देने के एवज में वे मोलभाव करते रहे. किसी भी मुख्यमंत्री को अपने ढंग से शासन करने का मौका नहीं मिला. वे कड़े फैसले नहीं ले पाये, क्योंकि उन पर हमेशा दबाव रहा. मजबूरी की सरकारों का परिणाम है कि राज्य की प्रमुख नीतियां नहीं बना पायीं. 14 सालों में यहां कभी मजबूत विपक्ष भी नहीं रहा. पांच साल तक विपक्ष में बैठने को कोई तैयार नहीं था. विपक्ष इसी चक्कर में रहा कि कैसे उसे सत्ता में आने का मौका मिले. इसके लिए किसी भी सरकार को गिराने या किसी भी सरकार में शामिल होने से वो नहीं चूके.

यह राज्य ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए बदनाम रहा है. तबादले के लिए नियम हैं, लेकिन किसी सरकार ने उनका पालन नहीं किया. जब चाहा मुख्य सचिव-डीजीपी से लेकर डीसी-एसपी, बीडीओ-सीओ, चिकित्सक को बदल दिया. पैसों के लिए. अच्छे अफसरों को दरकिनार कर दिया गया. जिस अधिकारी ने मंत्री के गलत फैसलों का विरोध किया या साथ नहीं दिया, उसे किनारे कर दिया गया. बेईमान अफसरों की तूती बोलती रही. सत्ता के दलालों का लगभग हर सरकार में बोलबाला रहा. राज्य का विकास नेताओं की प्राथमिकता में कभी नहीं रहा. राज्य में भरती के लिए नीतियां नहीं बन पायीं.

दावे होते रहे, लेकिन हुआ कुछ नहीं. नतीजतन 90 लाख बेरोजगारों की फौज तैयार हो गयी. सरकारी दफ्तरों में पद खाली रहे, लेकिन भरती नहीं हुई. जब भी विज्ञापन निकले, पेंच लगा दिया गया. स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की बात आयी तो बाहरी-भीतरी का मामला उठने लगा. बिहार में इस दौरान साढ़े चार लाख लोगों को नौकरी मिल गयी. लेकिन झारखंड में इंतजार करते-करते नौकरी की उम्र खत्म हो गयी. एक-एक परीक्षा लेने में सालों बीत गये. जेपीएससी के जरिये जब नियुक्ति हुई तो उसमें नेताओं के परिजन घुस गये. मेधावी छात्र सड़कों पर घूमते रह गये. स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक नहीं हैं. प्रयोगशालाएं नहीं हैं. राज्य में बेहतरीन शिक्षण-संस्थान आ नहीं सके. सेंट्रल यूनिवर्सिटी और लॉ यूनिवर्सिटी को छोड़ दें, तो अन्य संस्थाओं को जमीन नहीं मिल सकी. उद्योग नहीं लगे. एमओयू होते गये, लेकिन वे जमीन पर नहीं उतरे.

झारखंड में 14 सालों में 18 हजार लोगों की हत्या और साढ़े नौ हजार दुष्कर्म यह बताने के लिए काफी हैं कि कानून का कितना राज चलता है. यह सही है कि बड़ा इलाका नक्सल प्रभावित है, लेकिन अगर सरकार ईमानदारी से काम करना चाहे, इच्छाशक्ति हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है. भ्रष्ट अफसरों और नेताओं ने 14 साल में झारखंड को लूट लिया है. भ्रष्टाचार के कारण राज्य बदनाम हो गया है. योजनाएं अधूरी पड़ी हैं. खेतों में सिंचाई की सुविधा नहीं है. सड़कें, सरकारी भवन, स्कूल भवन बनने के छह माह के भीतर ध्वस्त होने लगते हैं. योजनाओं की आधी राशि कमीशन में चली जाती है.

अब तक झारखंड में फ्लाइओवर, पुल-पुलियों का जाल बिछ जाना चाहिए था, लेकिन स्थिति यह है कि शहरों में जाम के कारण चलना मुश्किल है. अगर सरकारों ने दूरदृष्टि दिखायी होती, सड़कों को चौड़ा कर दिया जाता, फ्लाइओवर बना दिये जाते, तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती. अब तो हजारीबाग, डाल्टनगंज, देवघर जैसे शहरों में भी जाम होने लगा है. सरकार राजनीतिक कारणों से ठोस निर्णय नहीं ले पाती. बिजली की स्थिति ग्रामीण इलाकों और छोटे-छोटे शहरों में खराब है. पीने का साफ पानी नहीं मिलता. तमाम कमियों के बावजूद झारखंड को बेहतर किया जा सकता है, अगर बेहतर सरकार हो, काम करनेवाली सरकार हो, बेहतर शासन हो. 14 साल के झारखंड को देखने के बाद लोगों को चेत जाना चाहिए. चुनाव भी सामने है. अगर मजबूत सरकार बनती है, बेहतर प्रतिनिधि चुन कर आते हैं (किसी दल या गंठबंधन के क्यों न हों), सरकार अच्छा निर्णय लेती है, तो झारखंड बदल सकता है.

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