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विधानसभा पर खर्च बढ़ता गया और सत्र सिकुड़ते गये

शकील अख्तर राज्य गठन के बाद विधानसभा पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ सत्र के दौरान बैठकों की संख्या कम होती जा रही है. इससे सरकार के कामकाज और उससे होनेवाले लाभ और नागरिकों की समस्याओं सहित अन्य मुद्दे पर विधानसभा में सही तरीके से चर्चा नहीं हो पा रही है. पिछले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2014 5:16 AM
शकील अख्तर
राज्य गठन के बाद विधानसभा पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ सत्र के दौरान बैठकों की संख्या कम होती जा रही है. इससे सरकार के कामकाज और उससे होनेवाले लाभ और नागरिकों की समस्याओं सहित अन्य मुद्दे पर विधानसभा में सही तरीके से चर्चा नहीं हो पा रही है. पिछले 12 साल में झारखंड विधानसभा की कुल 282 बैठकें ही हुईं. इन 12 सालों में विधानसभा की एक दिन की कार्यवाही पर औसतन 1.22 करोड़ रुपये प्रतिदिन की दर से खर्च हुए.
विधानसभा सभा में प्रति वर्ष मानसून, शीतकालीन और बजट सत्र आहूत किये जाते हैं. इनमें बजट पेश व पारित करना, सरकार के काम काज, विकास योजनाओं पर चर्चा, आम नागरिकों की समस्याओं सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा करने का प्रावधान है. विधानसभा का कौन-सा सत्र कितने दिनों का होगा. इसमें कितनी बैठकें होंगी.
यह तय करना सरकार का काम है. विधानसभा सत्र में बैठकों की संख्या के आधार पर उसके काम काम,जनता के प्रति लगाव और जन प्रतिनिधियों के सवालों के सामना करने की शक्ति का आकलन किया जाता है. विधानसभा के विभिन्न सत्रों में बैठकों की संख्या कम होने को बेहतर नहीं माना जाता है. सत्र की अवधि कम होने के मुद्दे पर विधानसभा के कई पूर्व अध्यक्ष चिंता व्यक्त कर चुके हैं. मगर,राज्य में विधानसभा सत्रों की अवधि लगातार कम होती जा रही है.
12 वर्षो में सबसे लंबा मानसून सत्र वर्ष 2005-06 में 20 दिनों का हुआ था. इसके बाद इस सत्र में बैठकों की संख्या घट कर पांच तक हो गयी. वित्तीय वर्ष 2001-02 और 2005-06 में सबसे लंबा शीतकालीन सत्र हुआ था, जो सिर्फ सात-सात दिनों का था. इसके बाद शीतकालीन सत्र में बैठकों की संख्या सिमट कर सिर्फ दो तह पहुंच गयी. वर्ष 2001-02 में राज्य का सबसे लंबा 38 दिनों का सत्र हुआ था. इसके बाद यह घट कर 10 दिनों तक पहुंच गया. 12 वर्षो में विधायकों, विधानसभा के कर्मचारियों व राज्य के मंत्रियों के खर्च में सात गुना से अधिक वृद्धि हुई. वर्ष 2001-02 में राज्य के विधायकों के वेतन-भत्ते, उनकी सुख-सुविधाओं पर 447.70 लाख रुपये खर्च हुए थे.
विधानसभा सचिवालय के कर्मचारियों पर 365.78 लाख रुपये खर्च हुए, वहीं मंत्रिपरिषद पर 315.28 लाख रुपये खर्च हुए थे. इस तरह विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होनेवालों और उसका काम काज करनेवालों पर 2001-02 में कुल 1128.76 लाख रुपये खर्च हुए थे. वर्ष 2012-13 में यह खर्च बढ़ कर 8622.46 लाख रुपये हो गया, लेकिन इसका नतीजा क्या रहा, यह हम-आप सभी जानते हैं.

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