विवादित मसलों पर बेमानी बयानबाजी

हिंदुस्तान की सियासत के रंग और रहनुमाओं के बदलते पैंतरे देखना हो, तो चुनाव सबसे अच्छा मौका है. कोई नेता कहीं कुछ बयान दे रहा होता है, तो उसी की पार्टी का दूसरा नेता इससे अलहदा बात कह देता है और पार्टियां एक-दूसरे पर इल्जाम मढ़ने में लगी रहती हैं. जनता की बेहतरी से जुड़े […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2014 11:55 PM

हिंदुस्तान की सियासत के रंग और रहनुमाओं के बदलते पैंतरे देखना हो, तो चुनाव सबसे अच्छा मौका है. कोई नेता कहीं कुछ बयान दे रहा होता है, तो उसी की पार्टी का दूसरा नेता इससे अलहदा बात कह देता है और पार्टियां एक-दूसरे पर इल्जाम मढ़ने में लगी रहती हैं. जनता की बेहतरी से जुड़े मसले रवायती घोषणापत्रों में खानापूरी बन कर रह जाते हैं.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही नजारा है. राज्य से भाजपा के सांसद और प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेंद्र सिंह ने कुछ दिन पहले बयान दिया कि उनकी पार्टी संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग पर कायम है.

यही बात बाद में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने भी दोहराई. यह बात भी सुनने में आयी कि राज्य चुनाव के लिए जारी होनेवाले घोषणापत्र में इस मांग का उल्लेख किया जायेगा. इसी साल आम चुनाव के लिए जारी पार्टी के घोषणापत्र में भी इस धारा को हटाने का वादा था. दूसरी ओर, कश्मीर में पार्टी की प्रभावशाली नेता एवं पार्टी प्रत्याशी हिना बट्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो वह बंदूक उठा सकती हैं. विरोधाभास के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने कहा है कि भाजपा सिर्फ इस मसले पर विचार की बात कहती है, न कि इसे हटाने या इसमें बदलाव लाने की.

जो भी हो, भाजपा नेताओं के इस जुबानी जमा-खर्च ने चुनावी पारा बढ़ा दिया है. ऐसी बयानबाजियों में कांग्रेसी भी पीछे नहीं हैं. एक फर्जी मुठभेड़ के मामले में सैनिकों को सजा दिये जाने के फैसले के पसे-मंजर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि एक सभ्य देश में सेना को विशेष अधिकार देनेवाले विवादास्पद आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट जैसे कानून की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. सवाल जायज है कि कुछ माह पहले तक केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्री रहे चिदंबरम ने तब इस बाबत कोई पहल क्यों नहीं की? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे सेना के प्रति कश्मीरियों की नाराजगी का चुनावी फायदा उठाना चाहते हैं! ऐसे वक्त में जब बेहतर माहौल बनाते हुए जनता की रोजमर्रा की मुश्किलों को हल करने पर बहस होनी चाहिए, पार्टियां और राजनेता उन मसलों पर बयानबाजी कर रहे हैं, जो इस राज्यस्तरीय चुनाव के लिए अहम मुद्दे हैं ही नहीं.

Next Article

Exit mobile version