भ्रष्टाचार से अभिशप्त है झारखंड की विकास-यात्रा
जोगिंदर सिंह पूर्व निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो झारखंड के साथ बने इन दोनों राज्यों में तेजी से विकास हुआ है. झारखंड की सरकारों ने बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों के विकास की अनदेखी की. स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य का रिकार्ड बेहद खराब है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर नहीं जाते है. सरकारी […]
जोगिंदर सिंह
पूर्व निदेशक,
केंद्रीय जांच ब्यूरो
झारखंड के साथ बने इन दोनों राज्यों में तेजी से विकास हुआ है. झारखंड की सरकारों ने बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों के विकास की अनदेखी की. स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य का रिकार्ड बेहद खराब है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर नहीं जाते है. सरकारी अस्पतालों में एक हजार डॉक्टरों की कमी है. राज्य की 70 फीसदी महिलाएं खून की कमी का सामना कर रही है.
झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को बिहार के दक्षिणी हिस्से को अलग कर बनाया गया था. इसकी सीमा बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ से मिलती है. झारखंड का क्षेत्रफल 30,778 वर्ग किलोमीटर है. झारखंड का मतलब है जंगल का क्षेत्र और देश के कुल प्राकृतिक संसाधनों में 40 फीसदी यहां मौजूद है. राज्य की आबादी 3.29 करोड़ है, जिसमें 1.69 करोड़ पुरुष और 1.6 करोड़ महिलाएं हैं. यहां 28 फीसदी आबादी आदिवासियों और 12 फीसदी अनुसूचित जाति की है. झारखंड में 24 जिले, 260 ब्लॉक और 32,620 गांव है, जिनमें से केवल 45 फीसदी में बिजली की सुविधा और 8,484 सड़क से जुड़े हुए हैं. छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड खनिज उत्पादन के क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य है. कोयला, लौह, तांबा, माइका, बाक्साइट, ग्रेफाइट, लाइम-स्टोन और यूरेनियम जैसे खनिज पदार्थ पाये जाते हैं. साथ ही यहां वन क्षेत्र भी सर्वाधिक है.
नक्सलवाद और गरीबी
नक्सल आंदोलन के केंद्र में झारखंड रहा है. 1967 में नक्सल आंदोलन शुरू होने के बाद से ही राज्य में नक्सली और पुलिस मुठभेड़ में 6 हजार लोगों को जान गंवानी पड़ी है. देश के कुल क्षेत्रफल में 7.80 फीसदी हिस्सेदारी होने के बाद भी यहां के 92 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. इसकी मुख्य वजह है कि प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद यहां के लोग गरीबी में जीवन जीने को मजबूर और भूखमरी के शिकार हैं. सरकार के बड़े दावों के बाद भी योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिल पाया है.
गवर्नेस का अभाव और भ्रष्टाचार
झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने का मकसद बेहतर शासन और आदिवासियों का त्वरित विकास करना था. लेकिन गठन के बाद से ही उद्योग और कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर काफी धीमी रही है. इसका मुख्य कारण सरकार के सभी विभागों में भ्रष्टाचार का हावी होना है. राज्य के 54 फीसदी से अधिक लोग गरीब हैं और शासक अपनी जेब भरने में व्यस्त हैं. इसी का परिणाम है कि राज्य को जितने खाद्यान्न की जरूरत है, उससे आधा ही वहां उसका उत्पादन होता है.
राज्य में किसी मंत्री के खिलाफ पहला गंभीर आरोप वर्ष 2004 में लगा जब अर्जुन मुंडा सरकार की अगुवाई कर रहे है. एक अखबार ने खुलासा किया था कि भूमि एवं राजस्व मंत्री मधु सिंह ने 50 लाख रुपये रिश्वत की मांग की थी. उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन किसी भी सरकार ने मंत्री के खिलाफ जांच नहीं करायी. वर्ष 2005 से 2008 के दौरान भ्रष्टाचार की जड़े और गहरी हुई. मीडिया की खबरों के मुताबिक चार निर्दलीय विधायक एनोस एक्का, हरिनारायण राय, मधु कोड़ा और कमलेश सिंह किंगमेकर की भूमिका में आ गये. सभी चारों को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भी जाना पड़ा.
राजनेताओं के अलावा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. आज शायद ही ऐसा कोई सरकारी विभाग बचा है जो संदेह से परे हो. ऐसा लगता है कि विकास कभी एजेंडे में नहीं रहा. अधिकांश राजनेता और अधिकारी सिर्फ अपने विकास में लगे रहे. यहां तक कि राजभवन के अधिकारी भी अपवाद नहीं रहे. राज्यपाल रहे सैयद सिब्ते रजी के ओएसडी और निजी सचिव के घर सीबीआइ ने छापा मारा. राष्ट्रपति शासन के दौरान गलत नियुक्ति के आरोप में 38 उप पुलिस अधीक्षक और उप जिलाधिकारी रैक के अधिकारियों को बर्खास्त किया गया.
उत्तराखंड व छत्तीसगढ़ में विकास
झारखंड के साथ बने इन दोनों राज्यों में तेजी से विकास हुआ है. झारखंड की सरकारों ने बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों के विकास की अनदेखी की. स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य का रिकार्ड बेहद खराब है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर नहीं जाते. सरकारी अस्पतालों में एक हजार डॉक्टरों की कमी है. राज्य की 70 फीसदी महिलाएं खून की कमी का सामना कर रही है.
झारखंड में भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के मामले में राज्य अव्वल है. इसने इस मामले में सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं. पहले तर्क दिया जाता था कि राज्य सरकार में स्थानीय लोगों की भागीदारी कम है. अब यह तर्क भी बेमानी हो चुका है. राज्य के गठन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले झारखंड मुक्ति मोरचा की शुरुआत ही गलत हुई, जब 28 जुलाई 1993 को उसके सांसदों ने पैसे लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मत दिया. सीबीआइ ने इन सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की धारा 105(2) का हवाला देते हुए मामला खारिज कर दिया. लंबे अरसे से सरकारी और निजी क्षेत्र में हर स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है. यही वजह है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल से झारखंड को सर्वाधिक भ्रष्ट राज्यों की श्रेणी में शामिल किया है.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, जो निर्दलीय विधायक थे, को भाजपा को छोड़ सभी प्रमुख पार्टियों ने समर्थन दिया. वे भ्रष्टाचार के मामले में 44 महीने जेल में रहे और उनके खिलाफ अभी भी मामला चल रहा है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक निर्वतमान विधानसभा के 37 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं. इनमें से 19 करोड़पति हैं. सबसे अधिक दागी 10 दागी विधायक झामुमो के हैं. उसके बाद कांग्रेस के 14 विधायकों में से 7, जेवीएम के 6 और आजसू के 4 विधायक दागी हैं. सबसे अधिक करोड़पति झामुमो के 6, कांग्रेस के 5 और राजद के 2 हैं. भाजपा, जेवीएम और आजसू के एक-एक विधायक करोड़पति हैं. करोड़पति विधायकों में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी शामिल है. दो पूर्व मंत्री हरिनारायण राय और एनोस एक्का आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल जा चुके हैं. दो अन्य पूर्व मंत्री बंधु तिर्की और नलिन सोरेन के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के मामले चल रहे है.
समस्या का समाधान वहां के लोगों के हाथ में है. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठ कर ईमानदार प्रतिनिधि निर्वाचित हों. नागरिक के रूप में हम किसी सरकार से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकते हैं, लेकिन अच्छी व खराब सरकारें होती है. अधिकांश लोग सोचते हैं कि केवल खराब और सबसे खराब सरकार होती है, क्योंकि जब तक हम कानून का पालन करते हैं, यह कोई नहीं बता सकता है कि क्या सही है. योग्य व्यक्ति के पास अधिकार न होने और अधिकार संपन्न व्यक्ति के पास योग्यता न होने से गवर्नेस असफल होता है.