हम पर भरोसा कर बनते हो बुद्धिजीवी ?

वंस अपॉन ए टाइम (किसी नेता को बुरा न लगे, इसलिए यूं ही लिख दिया, इसे आप करेंट घटना ही समङों) बहुत बड़े अनुभवी व्यक्ति ने यह कहते हुए सामनेवाले की बोलती बंद कर दी.. मियां बनते हो बड़का महान बुद्धिमान और मेरी बातों में आ गये. मैं अब तक फेंके जा रहा हूं और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 19, 2014 4:18 AM

वंस अपॉन ए टाइम (किसी नेता को बुरा न लगे, इसलिए यूं ही लिख दिया, इसे आप करेंट घटना ही समङों) बहुत बड़े अनुभवी व्यक्ति ने यह कहते हुए सामनेवाले की बोलती बंद कर दी.. मियां बनते हो बड़का महान बुद्धिमान और मेरी बातों में आ गये. मैं अब तक फेंके जा रहा हूं और आप हैं कि मन मिजाज लगा कर हमारी बातों को तरजीह दिये जा रहे हैं. ऐसे बुद्धिहीन से तो बात करने में भी मजा नहीं आता. आप तो निरे मैंगो पीपुल निकले. न जानना न बूझना बस विश्वास कर लेना. ऐसा कैसे चलेगा. दुनियादारी सीखनी होगी. ऐसे ही एक नेताजी के घर में चोर आ गया.

जैसे ही उन्होंने चोर को देखा, चोर भागने लगा. बस, नेताजी भी उसके पीछे-पीछे भागने लगे. अब भला चोर की क्या औकात जो वह नेताजी से कंपीटिशन कर पाये. पलक झपकते ही नेताजी चोर से आगे निकलते हुए जोर से चिल्लाये, एक तो चोरी, ऊपर से मेरे साथ रेस. बड़े साहसी चोर हो भई.

शरम करो, अपनी औकात पर गौर करो और सामनेवाले की काबीलियत को ध्यान में रखो. फिर कंपीटिशन करने मैदान में उतरो. चोरी चकारी, बेईमानी, झूठ बोलने जैसे काम में महारत हासिल करनी है, तो पहले हमारे घर छह महीने पानी भरने का काम करो. तब से बेचारा नेताजी के यहां पानी भरने का काम कर रहा है. ऐसे ही एक नेताजी ने अपनी बहुप्रचारित भ्रष्टाचार विरोधी रैली में घोषणा की. हमारी पार्टी में करप्ट व भ्रष्ट लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. तभी उनके पीछे से सेक्रेटरी ने कहा, ठीक ही बोलते हैं सर ओवरफ्लो हो रहा है. हाउसफुल हो गया है.

अब तो ऐसे लोगों के लिए जगह ही नहीं बची है. पहले से भरे पड़े हैं. और तो और अपने अभिनय सम्राट नेताओं पर तो भगवान भी तुरंत भरोसा कर लेते हैं. या यूं कहिए कि भरोसा करने के अलावा उनके पास भी कोई चारा नहीं होता. जनता को धड़ल्ले से बेवकूफ बनाते-बनाते नेताजी देवी देवताओं से भी अपनी मिन्नतें सबसे पहले पूरी करवा लेते हैं. सुनिए एक वाकया. नेताजी नाव से नदी पार जनता पर मेहरबानी करने जा रहे थे कि अचानक जोरदार तूफान आया और उनकी नाव पलट गयी. उन्हें तैरना नहीं आता था. उन्होंने मन लगा कर आंसू भर कर प्रार्थना की, भगवान अगर मुङो बचा लिया, तो मैं उस पार पहुंचते ही 21 किलो लड्ड चढ़ा कर गरीबों में बांट दूंगा.

फिर जोर से हवा चली और एक बड़ी-सी लहर के साथ एक लकड़ी की शाख पकड़ में आ गयी. नेताजी उसका सहारा लेकर तैरने लगे. जब किनारा करीब आया, तो वह मन ही मन कहने लगे, कौन से लड्ड, कैसे लड्ड? इतना कहना था कि एक जोरदार लहर आयी और उनके हाथ से लकड़ी छूट गयी. बेचारे फिर विनम्र होकर ईश भजन करने लगे और कहा, अरे बुरा क्यों मान रहे हैं? मैं तो पूछ रहा हूं, कौन से लड्ड-बेसन के या बूंदी के? अब फैसला आप के हाथ है कि आप कितने बुद्धिमान व भरोसेमंद हैं..

लोकनाथ तिवारी

प्रभात खबर, रांची

lokenathtiwary@gmail.com

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