भूटान, ब्राजील, नेपाल, जापान और अमेरिका दौरे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी म्यांमार, आस्ट्रेलिया और फिजी का दौरा पूरा कर चुके हैं. सत्ता संभालने के बाद थोड़े समय में ही उन्होंने विदेश नीति के स्तर पर असाधारण सक्रियता दिखायी है. बात चाहे आस्ट्रेलिया की हो या फिजी की, वर्षो से ठंडे पड़े द्विपक्षीय संबंधों में नये सिरे से जान डालने का काम मोदी की विदेश-यात्राओं के जरिये लगातार हो रहा है.
साढ़े आठ लाख की आबादी वाले छोटे से देश फिजी से भारत के रिश्ते करीब डेढ़ सौ साल पुराने हैं. अंगरेजी शासन के समय गिरमिटिया मजदूर के रूप में फिजी पहुंचे भारतीयों के वंशज आज फिजी की आबादी में करीब 40 प्रतिशत हैं. हालांकि फिजी की 83 प्रतिशत वन-संपदा तथा वहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले पर्यटन व मछली उद्योग पर दो फीसदी गोरी आबादी का दबदबा है. फिर भी फिजी की राजनीति में भारतवंशियों के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां 1997 में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तो उसके मुखिया एक भारतवंशी महेंद्र सिंह चौधरी बने.
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रूप से निकट और प्रशांत द्वीपीय इलाके में होने के कारण सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील देश फिजी में प्रधानमंत्री मोदी का पहुंचना दोनों देशों के आपसी संबंधों को नये सिरे से गढ़ने के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
तीन दशक पहले इंदिरा गांधी फिजी पहुंची थीं. उनके बाद से भारतीय विदेश-संबंध के भीतर फिजी की अहमियत पहचानने की पारखी नजर नहीं दिखी थी. फिजी, भूटान और नेपाल सरीखे छोटे देश हों या फिर अमेरिका और जापान सरीखी बड़ी अर्थव्यवस्था, मोदी ने अपने विजन के अनुरूप इन देशों के साथ संबंधों को पुनस्र्थापित करने की पहल की है.
मोदी के भारत विषयक विजन में ‘भारत का नव-निर्माण’ शब्द बार-बार आता है. इस नव-निर्माण की राह में मोदी अनिवासी भारतीयों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हैं. अपनी इसी सोच के अनुरूप विदेशी दौरे पर वे अनिवासी भारतीयों के बीच अद्भुत संवाद-क्षमता के साथ साझापन कायम करते हैं. इस तरह मोदी की विदेश-यात्रओं के दौरान अनिवासी भारतीय विश्व में भारत की गौरवशाली पहचान गढ़ने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण नीतिगत घटक के तौर पर उभरे हैं.