सभी संतों को एक जैसा बताना अनुचित
गत 18 नवंबर के आपके संपादकीय आलेख ‘संत बड़ा या फिर संविधान’ एवं ‘आसाराम की चिट्ठी संत रामपाल के नाम’ पढ़ा. आपके विचार से संत रामपाल जी के न्यायालय में नहीं उपस्थित होने तथा राज्य सरकार द्वारा इसका अनुपालन और कार्यान्वयन नहीं करने पर जो संवैधानिक अवहेलना हुई है, वह वस्तुत: चिंता का विषय है. […]
गत 18 नवंबर के आपके संपादकीय आलेख ‘संत बड़ा या फिर संविधान’ एवं ‘आसाराम की चिट्ठी संत रामपाल के नाम’ पढ़ा. आपके विचार से संत रामपाल जी के न्यायालय में नहीं उपस्थित होने तथा राज्य सरकार द्वारा इसका अनुपालन और कार्यान्वयन नहीं करने पर जो संवैधानिक अवहेलना हुई है, वह वस्तुत: चिंता का विषय है. हम आपके विचार से सर्वथा सहमत हैं.
पर उसका सरलीकरण कर अन्य संत-महात्माओं को भी उसी कोटि में रख देना वांछनीय नहीं है. संत तथा संविधान की अपनी जगह पर संप्रभुता है. समाज के विभिन्न अंगों और समुदायों को सुचारुरूप से कार्य करने के लिए कानून का अनुपालन जरूरी है. संपादकीय के नीचे जो चिट्ठी प्रकाशित हुई है, हमारा मानना है कि उससे लाखों धर्मप्रिय पाठकों को ठेस पहुंची है, भले ही यह व्यंग्यात्मक लेख क्यों न हो.
कृष्ण मोहन प्रसाद, रांची