घबराइए नहीं, बात चल रही है..

‘घबराइए मत. बातचीत चल रही है. जल्द ही कोई-न-कोई समाधान निकाल लिया जायेगा.’ ऐसी बातें सुनने के हम आदी हो चुके हैं. देश में कोई बड़ी घटना घटे, पड़ोसी मुल्कों से तनाव हो, बीमारियों का आक्रमण हो या फिर कोई राजनीतिक उठा-पटक हो, हर परिस्थिति में हमारे मंत्रियों के मुंह से जो सबसे पहली बात […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 23, 2014 11:21 PM

‘घबराइए मत. बातचीत चल रही है. जल्द ही कोई-न-कोई समाधान निकाल लिया जायेगा.’ ऐसी बातें सुनने के हम आदी हो चुके हैं. देश में कोई बड़ी घटना घटे, पड़ोसी मुल्कों से तनाव हो, बीमारियों का आक्रमण हो या फिर कोई राजनीतिक उठा-पटक हो, हर परिस्थिति में हमारे मंत्रियों के मुंह से जो सबसे पहली बात सुनने को मिलती है, वह यही है कि बातचीत चल रही है.

ऐसा लगता है कि इबोला से भी बचने के लिए सरकार बातचीत का ही रास्ता ढूंढ़ रही होगी. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अब तक वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करके सरकार की ओर से वार्ता के लिए प्रतिनिधि का भी चुनाव कर लिया होगा. जल्द ही इबोला के साथ बातचीत करके सरकार उससे वहीं वापस लौट जाने का आग्रह करेगी, जहां से वह आया है. उससे निबटने में जो समय और पैसों की बरबादी होगी, उससे बेहतर विकल्प तो सरकार के सामने यही है.

और यही वह पेशेवर तरीका भी है, जिसे सरकारें आजादी के बाद से ही अपनाती आ रही हैं. यही तरीका सरकार पाकिस्तान और चीन के साथ भी अपना रही है. एक ओर बार-बार सीमा का अतिक्रमण हो रहा है, तो दूसरी ओर हमारी सरकार यही कह रही है कि बात चल रही है, समाधान निकाल लेंगे. चीनी सैनिक बार-बार भारतीय सीमा में घुस रहे हैं, विवादास्पद क्षेत्र को लेकर धमकी दे रहे हैं और सरकार अब भी यही कह रही है कि वार्ता चल रही है. देश में आक्रोश है. गोलीबारी में जिनके घर का चिराग उजड़ गया, उनके मन में बदले की आग धधक रही है, लेकिन सरकार की तो वार्ता ही चल रही है. खिसियानी बिल्ली की तरह खिसिया रहे हैं, लेकिन ठान लिया है कि जंग किसी भी सूरत नहीं होने देंगे. वार्ता यूं ही चलती रहेगी. राज्य की राजधानी में रैलियां होना, सड़कों को जाम करना, घंटों तक ट्रैफिक जाम लगना, जाम में एंबुलेंस से लेकर स्कूल बस तक फंसे रहना रोजाना की बात हो गयी है, लेकिन सरकार की वार्ता चल रही है. मीडिया वाले भी जब किसी समस्या को लेकर पुलिस और प्रशासन से जवाब मांगते हैं, तो उनकी ओर से यही जवाब मिलता है, बात चल रही है.

समझ नहीं आता कि यह बात आखिर कब तक चलेगी? आखिर यह कैसी बातचीत है, जो द्रौपदी की साड़ी की तरह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. जब इस बातचीत का इतना ही महत्व है और इसी से समस्याएं सुलझायीं जा सकती हैं, तो हमारे यूनिवर्सिटी और कॉलेज ‘बातचीत में स्नातक डिप्लोमा’ या ‘बातचीत में पीजी डिप्लोमा’ जैसे पाठ्यक्रम क्यों नहीं शुरू कर देते, ताकि बातचीत में क्षेत्र में युवाओं को कैरियर बनाने का मौका मिल सके. बातचीत की अपार संभावनाओं को देखते हुए इस क्षेत्र में रोजगार के विपुल अवसर भी उपलब्ध होंगे. ठंड ने दस्तक दे दी है. जरूर सरकार ने ठंड से बातचीत शुरू कर दी होगी कि वह इस बार लोगों को ज्यादा परेशान न करे और जल्दी लौट जाये.

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

Next Article

Exit mobile version