बस पकड़ने की हड़बड़ी में हादसे
हमारा शहर रांची. यहां सड़क दुर्घटनाएं होती हैं जो कतई आश्चर्य की बात नहीं है. आश्चर्य की बात यह है कि अभिभावकों की भागमभाग और रफ्तार के बीच इतनी कम दुर्घटनाएं होती हैं! सुबह साढ़े छह बजे मैं अपनी बेटी को स्कूल बस के स्टॉप तक छोड़ने जाता हूं. रातू रोड से रोज सुबह करीब […]
हमारा शहर रांची. यहां सड़क दुर्घटनाएं होती हैं जो कतई आश्चर्य की बात नहीं है. आश्चर्य की बात यह है कि अभिभावकों की भागमभाग और रफ्तार के बीच इतनी कम दुर्घटनाएं होती हैं! सुबह साढ़े छह बजे मैं अपनी बेटी को स्कूल बस के स्टॉप तक छोड़ने जाता हूं. रातू रोड से रोज सुबह करीब सौ से अधिक स्कूल बसें आती-जाती हैं.
मैं देखता हूं कि जहां मैं खड़ा होता हूं, उस स्टॉप पर रोजाना पांच-दस बच्चों की बसें छूट ही जाती हैं. फिर उसके बाद अभिभावकों की भागमभाग जो शुरू होती है, वह देखने लायक होती है. ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को स्टॉप तक छोड़ने खुद के वाहन से आते हैं. बस छूटने के बाद वे रॉकेट से भी तेज रफ्तार से स्कूल और उसके बाद फिर घर वापस पहुंचना चाहते हैं.
इस भागमभाग में उन्हें ट्रैफिक नियमों और साइड का भी ख्याल नहीं रहता. कोई दाएं से भाग रहा है, तो कोई बाएं से. सबका लक्ष्य एक ही है कि वह किसी तरह स्कूल में बच्चे को छोड़े और फिर जल्दी से घर पहुंचे. कोई दोपहिया दौड़ा रहा है, तो कोई चरपहिया. कभी लहरिया स्टाइल में गाड़ी डिवाइडर से, तो कभी सड़क के किनारे पैदल यात्रियों से टकराने को आतुर. उनका लहरिया स्टाइल देख कर स्टंट करनेवाले भी शरमा जायें. उन्हें देख कर बरबस ही मुंह से ‘गइलअ’ निकल आता है. दुख तो तब होता है, जब ये सरपट भागते अभिभावक सामने या बगल से किसी को गुजरते देख कर ब्रेक लगाना भी मुनासिब नहीं समझते. वहीं, स्कूल बस वाले हर 15-20 फर्लाग पर, गाड़ी बीच सड़क पर रोक कर बच्चों को उठाते रहते हैं. इतना कुछ देख कर भगवान पर आस्था और बढ़ जाती है, जो ‘आउट ऑफ द वे’ जाकर रोज इतने लोगों को बचाता है.
कुमार संजय, रांची