झारखंड में बीते 14 सालों में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी जैसा कोई दूसरा धुरंधर खिलाड़ी पैदा नहीं हो सका है. हालांकि, खेल के नाम पर यहां की सरकारें अब तक करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती हैं. धौनी ने तो स्कूल से ही अपने इरादे साफ कर दिये थे. मोटरसाइकिल व चरपहिया गाड़ी में क्रिकेट किट के साथ घूमते हुए बहुत से खिलाड़ी दिखते हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी, कॉलेज और स्कूलों में उनके जैसे खिलाड़ी नहीं दिखते.
जब धौनी हेहल में 2004 में स्व. कार्तिक उरांव क्रिकेट टूर्नामेंट खेल रहे थे, तभी मैंने लिखा था कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. हेहल के उस मैच को देखने के लिए मैं पहुंचा, तो धौनी गेंदबाजी कर रहे थे. पहली पारी समाप्त होने पर जब वह बाहर आये, तो वे बिजली के खंभे के पास खड़े थे. मैंने उनके पास जाकर पूछा कि गेंदबाजी क्यों कर रहे थे, तुम तो कीपर थे? उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. छोटे मैचों में चोट न लग जाये, इसलिए गेंदबाजी कर रहा था. मैंने प्रोत्साहित करते हुए कहा था कि अभी उम्र लंबी है. जोन तक पहुंचो, वहीं टीम इंडिया में चयन होगा. बेहतर प्रदर्शन करने पर टीम इंडिया में चुन लिए जाओगे और अप्रैल 2004 में भारत ए टीम में उनका चयन हो गया. जिंबाब्वे और केन्या के प्रदर्शन से उन्होंने चयनकर्ताओं को जीता और आज वे सफल भारत के सफल कप्तान हैं.
कुल मिला कर यह कि धौनी ने जो मेहनत की, वह आज कहीं दिखायी नहीं देती. धौनी जैसी आक्रामकता, गेंदबाजों की पिटाई करने की कला ही उन्हें ऊंचाई तक ले गयी है. कर्नाटक के स्पिनर सुनील जोशी ने कहा था कि धौनी पिच पर टिके, तो गेंद पवेलियन में गिरेगी. आज कोई धौनी जैसी मेहनत नहीं करता.
किशन अग्रवाल, रांची