नक्सलवाद पर नकेल के नाम रहा बीता वर्ष
Naxalism In India : नक्सली आतंक पर सफलता के पीछे रही तीन स्तरीय रणनीति, जिसके तहत सबसे पहले नक्सलियों पर समर्पण का दबाव बनाया गया. यदि इसके बावजूद नक्सली नहीं माने, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए रणनीति बनायी गयी.
Naxalism In India : बीते वक्त में क्या खोया-क्या पाया, नये वर्ष के साथ इसके मूल्यांकन की परंपरा रही है. इस लिहाज से यदि 2024 का मूल्यांकन करें, तो कई बिंदुओं पर हमें निराशा हाथ लगेगी, तो कई उपलब्धियों और सफलताओं का भी जिक्र होगा. लाल आतंक के रूप में विख्यात नक्सलवाद पर नकेल बीते वर्ष की उपलब्धि कही जा सकती है. इसका श्रेय निश्चित तौर पर गृह मंत्री अमित शाह को जाता है, पर इसमें राज्यों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही है.
नक्सली आतंक पर सफलता के पीछे रही तीन स्तरीय रणनीति, जिसके तहत सबसे पहले नक्सलियों पर समर्पण का दबाव बनाया गया. यदि इसके बावजूद नक्सली नहीं माने, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए रणनीति बनायी गयी. इस पर भी यदि नक्सलवादी नहीं माने तो उनके विरुद्ध निर्णायक मुठभेड़ की तैयारी की गयी. इसी का असर रहा कि बीते वर्ष अकेले छत्तीसगढ़ में ही करीब एक हजार से अधिक नक्सलियों ने या तो आत्मसमर्पण किया या फिर उनकी गिरफ्तारी की गयी, जबकि करीब 287 नक्सली मारे गये. इनमें झारखंड में मारे गये नक्सलियों की संख्या सिर्फ नौ रही, जबकि सबसे अधिक नक्सली छत्तीसगढ़ में मारे गये. झारखंड में इसी तरह एक सैक मेंबर, दो जोनल कमांडर, छह सब जोनल कमांडर और छह एरिया कमांडर गिरफ्तार किये गये. नक्सलियों की कमर सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में टूटती नजर आ रही है. यहां लगभग 867 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
नक्सलवाद के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी को माना जाता रहा है. नक्सलवाद का समूल नाश करने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार ने सबसे पहले इसी समस्या को खत्म करने पर जोर दिया. इसके तहत केंद्र सरकार ने विकास और बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान दिया. बस्तर समेत तमाम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हजारों गांवों को सड़क, बिजली और पानी जैसे बुनियादी सुविधाओं से जोड़ा गया. इन कारणों से इन क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के जीवन की कठिनाइयां कम हुईं. उन्होंने विकास की धारा को अपनी आंखों से देखा और भारतीय राष्ट्र राज्य के बारे में उनकी धारणा बदली.
सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाओं की भी शुरुआत की. इससे न केवल हिंसा में कमी आयी, बल्कि स्थानीय लोगों की दुश्वारियां भी कम हुईं. इस कारण उन लोगों का मन बदला. तमाम उपायों के बावजूद लंबे समय से नक्सल प्रभावित रहे लोगों के लिए मुख्यधारा में लौटना या मुख्यधारा के प्रति भरोसा बनाना बिना सुरक्षा सुनिश्चित किये संभव नहीं था. सरकार ने इस मोर्चे पर भी काम किया. सुरक्षा बलों की प्रभावी उपस्थिति हर संभव स्तर पर की.
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा सहूलियत को बढ़ावा देने के लिए युद्ध स्तर पर कार्यक्रम चलाये गये. पहले इन क्षेत्रों के लिए स्कूल और अस्पताल सपना थे, पर अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है. स्थानीय समुदायों का सहयोग इस अभियान की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है. अमित शाह ने प्रभावित क्षेत्रों में जनता से सीधे संवाद स्थापित किया है. ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया गया है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है. स्थानीय सुरक्षा बलों को मजबूत करते हुए उनकी सहायता से नक्सलवाद को कमजोर किया गया है. इन प्रयासों ने न केवल जनता का विश्वास जीता है, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और स्थिरता लाने में भी मदद की है. इस बीच नक्सलियों पर निगाह रखने के लिए जहां खुफिया तंत्र को मजबूत बनाया गया, वहीं उनकी निगहबानी के लिए तकनीक का भी खूब सहारा लिया जा रहा है. इसके साथ ही, नक्सलियों के लिए की जा रही फंडिंग पर भी नकेल कसी गयी है.
गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च, 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. देश के अब केवल 38 जिले ही नक्सल प्रभावित माने जा रहे हैं, जबकि पहले ऐसे जिलों की संख्या 120 से अधिक थी. नक्सलवाद से जुड़े सिमटते आंकड़े ही बता रहे हैं कि केंद्र सरकार की नक्सल विरोधी रणनीति की दिशा सही है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास के लिए 15,000 से अधिक आवास बनाये जा रहे हैं. नक्सलवाद से विस्थापित परिवारों के लिए राहत शिविर भी बनाये गये हैं. समर्पण कर चुके नक्सलियों और नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को रोजगार दिलाने के लिए कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की गयी है. रोजगार मेले के जरिये रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को आर्थिक सहायता के साथ ही बैंकों से आसान दर पर कर्ज भी दिलवाया जा रहा है. अब तक आदिवासियों से केंद्रीय नेतृत्व बात करने से बचता रहा है, पर अमित शाह ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों के साथ संवाद स्थापित करने पर जोर दिया है. इसकी शुरुआत उन्होंने छत्तीसगढ़ में चौपाल लगाकर की. ग्रामीणों की समस्याएं सुनीं और उन्हें सरकारी योजनाओं के प्रति जागरूक किया. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)