बस, अब बहुत हो गया! अब हम सभी के लिए अपनी सोच बदलने का समय आ गया है. यदि हम अपनी सोच नहीं बदलते हैं, तो झारखंड की तसवीर और तकदीर बदलनेवाली नहीं है. झारखंड में जैसे ही चुनाव की घोषणा होती है, तो लोगों को मुंह से अक्सर सुनने को यही मिलता है कि चलो फिर लोकतंत्र का पर्व आ गया है.
खास कर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इसे त्योहार के रूप में देखते हैं. उनका एक ही मकसद नेताओं या फिर पार्टी के प्रत्याशियों से धन ऐंठना होता है, ताकि यह पर्व अच्छे से मनाया जा सके. हमें यह मानसिकता बदलने की जरूरत है, क्योंकि जब तक इसे लोग पर्व के बजाय एक परीक्षा के रूप में नहीं लेंगे, तब तक लोगों का भला होनेवाला नहीं है. एक विद्यार्थी जिस तरह परीक्षा की तैयारी करता है, नेता भी ठीक उसी तरह की तैयारी करते हैं. इसीलिए चुनाव पर्व ही नहीं, परीक्षा भी है.
ओम प्रकाश पात्र, जमशेदपुर