बड़े पूंजीपतियों की बंद हो ‘मुफ्तखोरी’

‘राष्ट्रीयकृत एवं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से भारी कर्ज लेकर चुकाने में आनाकानी कर रहे बड़े पूंजीपति मुफ्तखोर हैं और इसका खामियाजा देश की मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ रहा है.’ ये शब्द हैं भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के. रिजर्व बैंक के नियमानुसार, जानबूझ कर उधार चुकता नहीं करनेवाले कजर्दारों की श्रेणी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 27, 2014 11:32 PM
‘राष्ट्रीयकृत एवं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से भारी कर्ज लेकर चुकाने में आनाकानी कर रहे बड़े पूंजीपति मुफ्तखोर हैं और इसका खामियाजा देश की मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ रहा है.’ ये शब्द हैं भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के. रिजर्व बैंक के नियमानुसार, जानबूझ कर उधार चुकता नहीं करनेवाले कजर्दारों की श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं,
जो कर्ज लौटाने की क्षमता के बावजूद ऐसा नहीं करते, या कर्ज को निर्धारित काम में उपयोग न कर कहीं और लगा देते हैं, या उसे धोखाधड़ी से खर्च करते हैं, या फिर बैंक को बताये बिना कर्ज के एवज में गिरवी रखी संपत्ति बेच देते हैं. एक ओर छोटे किसानों और उद्यमियों को मामूली कर्ज लेने के लिए भी बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है, दूसरी ओर एक आकलन के मुताबिक, इस वित्तीय वर्ष के अंत तक बैंकों का कुल ‘डूबा कजर्’ 2.28 लाख करोड़ रुपये तक हो जायेगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, बीते वित्त वर्ष में भारतीय बैंकों द्वारा दिये कुल कर्ज का 4.03 फीसदी ‘नॉन परफॉर्मिग एसेट’ था. यह वह राशि है, जिस पर बड़ी कंपनियां कुंडली मारे बैठी हैं. कुछ अनुमानों के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष के अंत तक इसका आकार 4.6 फीसदी हो जायेगा. जानकारों का कहना है कि हकीकत में यह आंकड़ा इससे बहुत अधिक हो सकता है, क्योंकि कंपनियों ने विभिन्न ‘उपायों’ से ढेर सारे कजरे को ‘रिस्ट्रक्चर्ड लोन’ यानी नयी श्रेणी के कर्जे में बदलवा लिया है. ‘रिस्ट्रक्चर्ड लोन’ की श्रेणी में कुल कर्ज की 5.9 फीसदी धनराशि है. दोनों को मिला कर करीब 10 फीसदी का यह आंकड़ा स्पेन और पुर्तगाल के ‘बैड लोन’ के आसपास है, जो गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. भारत के 4.03 फीसदी की तुलना में जापान में मात्र 2.13 और चीन में एक फीसदी ही ऐसे कर्जे हैं, जो लगभग डूब चुके हैं.
हालांकि इन देशों में भी ऐसे कर्जे हो सकते हैं, जिनकी श्रेणी का पुनर्निर्धारण किया गया होगा, लेकिन 2012 में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक अध्ययन में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में कजरे का पुनर्निर्धारण संकट जैसी विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है, जबकि भारत में यह आम चलन बन गया है. अब रघुराम राजन के बयान के बाद देखना यह है कि क्या केंद्र सरकार और बैंक देश के धन पर मुफ्तखोरी कर रहे बड़े कजर्खोरों पर लगाम कसेंगे!

Next Article

Exit mobile version