समावेशी वित्तीय परिवेश के लिए पहल
बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने कंपनियों को भुगतान बैंक और लघु वित्त बैंक स्थापित करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किया है. इसके अंतर्गत मोबाइल, टेलीकॉम, व्यापारिक, सहकारिता, सुपर मार्केट और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भुगतान बैंक तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां व संस्थाएं लघु बैंक स्थापित करने […]
बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने कंपनियों को भुगतान बैंक और लघु वित्त बैंक स्थापित करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किया है. इसके अंतर्गत मोबाइल, टेलीकॉम, व्यापारिक, सहकारिता, सुपर मार्केट और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भुगतान बैंक तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां व संस्थाएं लघु बैंक स्थापित करने की मंजूरी दी गयी है.
भुगतान बैंक प्रति ग्राहक एक लाख रुपये जमा करने के साथ एटीएम कार्ड/डेबिट कार्ड जारी कर सकेंगे, लेकिन कर्ज देने का अधिकार सिर्फ लघु बैंकों को होगा. इन बैंकों को कर्ज का 75 हिस्सा कृषि, लघु उद्योगों आदि क्षेत्रों में देने की बाध्यता होगी. निश्चित रूप से इससे देश की बड़ी आबादी को वित्तीय मुख्यधारा से जोड़ा जा सकेगा. इस उद्देश्य की गारंटी के लिए रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे बैंकों द्वारा दिये गये कुल कर्ज की 50 फीसदी राशि 25 लाख रुपये से अधिक नहीं होगी.
भुगतान बैंकों के माध्यम से ग्राहक आम खरीदारी, फोन बिल चुकाने और छोटी रकम हस्तांतरित करने जैसी रोजमर्रा की जरूरतें आसानी से पूरी कर सकेंगे, क्योंकि उनके पास अनेक बैंकिंग विकल्प मौजूद होंगे. भारतीय डाक जैसी संस्थाओं के जरिये गांव-गांव तक आर्थिक लेन-देन की सुविधा व्यापक हो सकती है. इसके कुल 1,55,000 डाक घर हैं, जिनमें 1,39,040 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. भारतीय डाक की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत छह लाख करोड़ रुपये जमा हैं. कहा जा सकता है कि रिजर्व बैंक का यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गयी हर परिवार को बैंक खाता उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी जन-धन योजना का विस्तार भी है और पूरक भी.
आज छोटी रकम की लेन-देन के लिए भी लोगों को बड़े बैंकों पर निर्भर रहना पड़ता है और कई तरह की अड़चनों से जूझना पड़ता है. इससे बैंकों पर बोझ बढ़ता है और सेवा पर असर पड़ता है. बैंकिंग व्यवस्था के सीमित होने और नियमों की कठोरता के कारण निम्न आय वर्गीय लोग, जो देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, अवैध वित्तीय कंपनियों और कजर्दाताओं के चंगुल में फंस जाते हैं. आशा है कि इन नये बैंकों के अस्तित्व में आने से वित्तीय परिवेश अधिक सुगम, सरल और समावेशी होगा.