‘स्मार्ट’ बनो- पुलिस महकमे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह नया मंत्र है. पुलिस एवं खुफिया विभागों के प्रमुखों की बैठक में उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मी कर्तव्यपालन में सख्त और संवेदनशील बनें, उनके आचरण में नैतिक शुचिता और बरताव में चुस्ती-फुर्ती हो, वे घटनाओं के प्रति चौकन्ना और लोगों की सुरक्षा संबंधी जरूरतों के प्रति जवाबदेह बनें.
प्रधानमंत्री को यह भी लगता है कि एक भरोसमंद एवं उत्तरदायी सुरक्षा व्यवस्था कायम करने के लिए पुलिसकर्मियों का प्रशिक्षित और नयी टेक्नोलॉजी के मामले में दक्ष होना भी जरूरी है. प्रधानमंत्री की इन बातों से शायद ही किसी को इनकार होगा. एफआइआर दर्ज करने तक में वसूली, जांच-कार्य में सुस्ती, दबंग समाज-सत्ता के पक्ष में साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़, फर्जी मुठभेड़ और हिरासत में मौत के साथ-साथ पुलिस बल में स्टाफ और संसाधनों की कमी की रोजाना की सुर्खियां गवाह हैं कि पुलिस महकमा अपने दायित्वों का निर्वाह करने में काफी हद तक असफल है. इसे भांपते हुए पुलिस महकमे में सुधार की बातें करीब दो दशकों से हो रही हैं.
इस दौरान कई रोडमैप भी बने, लेकिन उनके क्रियान्वयन के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने में केंद्र व राज्यों की सरकारें नाकाम रही हैं. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को राजनीतिक दबाब से मुक्त रखने, जवाबदेह तथा कर्तव्य पालन में दक्ष बनाने के लिए कुछ जरूरी दिशा-निर्देश जारी किये थे. इसमें राज्य स्तर पर सुरक्षा आयोग बनाने, पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति की अवधि तय करने, पुलिसिया जांच-कार्य को विधि-व्यवस्था की बहाली से अलग रखने और शिकायतों की सुनवाई के लिए प्राधिकरण बनाने जैसी बातें शामिल थीं. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए राज्यों को नया पुलिस एक्ट बनाने को कहा था.
लेकिन, आठ साल बाद भी कोर्ट के दिशा-निर्देशों का या तो पालन नहीं हुआ, या कहीं हुआ भी तो आधा-अधूरा. केंद्रीय गृहमंत्री ने इसी कार्यक्रम में देश में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने की आशंका जताते हुए आंतरिक सुरक्षा-व्यवस्था चौक-चौबंद करने पर जोर दिया था. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि भारी बहुमत से बनी केंद्र सरकार बातों से आगे बढ़ कर, पुलिसकर्मियों और विभाग को ‘स्मार्ट’ बनाने के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति भी दिखायेगी.