पीं-पीं, पों-पों. बढ़ाओ यार.. उड़ कर जाओगे क्या? देख नहीं रहे हो जाम लगा है? राजधानी पटना की सड़कों पर आजकल ऐसे दृश्य रोज देखने को मिल रहे हैं. जिस तरह से स्कूल-कॉलेज में दाखिले और नौकरी में ओबीसी, एससी/एसटी आदि के लिए आरक्षण होता है, उसी तरह से राजधानी की सड़कें भी अलग-अलग वर्गो के लिए आरक्षित कर दी गयी हैं.
इनमें से एक वर्ग सड़क पर चलनेवालों का है. बाकी वर्गो में धरने पर बैठनेवाले, रैली निकालनेवाले और हंगामा करनेवाले शामिल हैं. यदि इस आरक्षण में ईमानदारी बरती जाने लगे, तो रामराज ही आ जाये, लेकिन जदयू-राज, भाजपा-राज, राजद-राज और कांग्रेस-राज की लड़ाई के बीच इसकी कल्पना करना भी बेमानी होगी. इसलिए यदि सड़कों के आरक्षण की सीमा तोड़ कर किसी वर्ग वाले दूसरे के क्षेत्र में भी सेंध लगाने लगें, तो इसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है. और राजधानी की सड़कों पर कुछ ऐसा ही हो रहा है. धरने और प्रदर्शन के लिए निर्धारित स्थानों से बाहर निकल कर सड़कों को जाम करना, टायर जलाना, पथराव करना, पुलिस वालों से भिड़ना, वाहनों को आग लगाना अब रोजाना की बातें हो गयी हैं.
हर दिन शहर की रफ्तार थम जा रही है. दस मिनट का सफर तीन घंटे में पूरा हो रहा है. एंबुलेंस में मरीज दम तोड़ रहे हैं. स्कूल बसों में बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे हैं. परीक्षार्थियों की परीक्षाएं छूट रही हैं. उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. किसी यात्री की ट्रेन छूट रही है, तो किसी की फ्लाइट मिस हो रहा है. लेकिन क्या फर्क पड़ता है? नुकसान जिनका हो रहा है, हैं तो वे आम आदमी ही. इसके लिए प्रशासन और सरकार को जिम्मेवार भी कैसे ठहराएं! उन्हें कुछ दिखे तब तो? शासन-प्रशासन की आंखें तभी खुलती हैं, जब वीआइपी नामक प्राणी हवा से जमीन पर उतरते हैं और सड़कों पर चल कर उन्हें कृतार्थ करते हैं.
धरना देनेवालों और हंगामा करनेवालों की मांगें पूरी होंगी नहीं और न ही पटना की सड़कों को मुक्ति मिलेगी. इसलिए पूरी नहीं होंगी कि उन्हें सुननेवाला ही कोई नहीं है. हां और क्या, हमारे राज्य के प्रमुख के पास किसी खास वर्ग के बारे में सोचने, भाषण देने और बयान देने से फुरसत मिले तब तो. हल तो तब निकलेगा न जब वे जनता के प्रति जवाबदेह होंगे, लेकिन वे तो खुलेआम स्वीकार करते हैं कि उन्हें केवल किसी खास व्यक्ति के संतुष्ट होने से मतलब है. अब तो लोग भी जाम के आदी हो चुके हैं. मीडिया वाले भी रोज-रोज जाम की खबर लिख कर इतना थक चुके हैं कि नयी हेडिंग, नये फोटो और नये लेआउट के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वैसे, इतना बताने का समय तो मेरे पास भी नहीं था, लेकिन मैं भी पिछले डेढ़ घंटे से जाम में फंसा हूं और यह सब लिख कर खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोच रहा हूं.
शैलेश कुमार
प्रभात खबर, पटना
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