त्रिपुरा में चौथी बार सत्ता संभाल रहे, देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने एक नयी पहल की है. राजनीतिक विचारधारा की दूरियों से परे जाकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्योता दिया है कि वे ‘गुड गवर्नेस’ विषय पर राज्य के मंत्रियों को संबोधित करें. हाल के दशकों की भारतीय राजनीति पर गौर करें, तो इसे एक मिसाल कहा जा सकता है, क्योंकि इस दौरान केंद्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारों के बीच संबंधों के ज्यादातर उदाहरण कड़वाहट भरे रहे हैं.
राजनीति विज्ञान की किताबों में राजनीति की अनेक परिभाषाएं मौजूद हैं, जो देश-काल की परिस्थितियों के मद्देनजर समय-समय पर दी गयी हैं. इनमें जार्ज एच सेबाइन (प्रसिद्ध कृति ‘ए हिस्ट्री ऑफ पॉलिटिकल थ्योरी’) के शब्दों में कहें तो ‘प्रतिरोधी हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की विशेष कला का नाम राजनीति है.’ राजनीति की इस विवेचना को आधुनिक विचारकों ने भी अपने-अपने शब्दों में दोहराया है. ऐसी विवेचनाएं सिर्फ इस सोच तक सीमित नहीं हैं कि सबसे निचले पायदान पर खड़े समाज-समूहों के हितों और सबसे समर्थ लोगों-समूहों के बीच नीतियों के जरिये सामंजस्य बिठाया जाये, बल्कि उनका मार्गदर्शक तत्व यह भी है कि जनहित को दलगत भावनाओं से ऊपर रखा जाये.
लेकिन, जब हम अपने देश के राजनीतिक दलों के व्यवहार पर गौर करते हैं, तो उनकी राजनीति इस विवेचना की कसौटी पर खरी नहीं उतरती. यहां विपक्ष में रहनेवाले दल सत्ता पक्ष के हर सही-गलत फैसले का विरोध करने में जुटे रहे हैं. ऐसे में सत्तारूढ़ दल को विपक्ष के तर्कसंगत विरोध को भी खारिज करने का मौका मिलता रहा है. इससे उन्हें चुनावों के दौरान यह कहने का मौका भी मिलता है कि राज्य में भी उसी की सरकार बने, तभी विकास हो सकता है.
लेकिन, माणिक सरकार ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार विकास की राह में राजनीतिक विचारधाराओं को आड़े नहीं आने देगी. यह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का मान बढ़ानेवाला कदम भी है, क्योंकि प्रधानमंत्री पूरे देश का मुखिया होता है. उन्हें समुचित मान देना और उनके सही फैसलों को अपने राज्य में आगे बढ़ाना एक मुख्यमंत्री के सकारात्मक सोच का भी परिचायक है. उम्मीद करनी चाहिए कि अन्य राजनीतिक दल भी इस पर गौर करेंगे.