असली चमचे कभी पिटा नहीं करते

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रोचक आलेख पढ़ा- ‘टाइम टू टैकल द ग्रेट इंडियन चमचा’. इसे पढ़ कर मुझे लगा कि अखबारों को दिन में सपने देखने की आदत है. चमचा शब्द का प्रयोग हम प्राय: ईष्र्यावश करते हैं. जब कोई दूसरा हमसे बाजी मार ले जाता है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 8, 2014 12:00 AM
लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रोचक आलेख पढ़ा- ‘टाइम टू टैकल द ग्रेट इंडियन चमचा’. इसे पढ़ कर मुझे लगा कि अखबारों को दिन में सपने देखने की आदत है. चमचा शब्द का प्रयोग हम प्राय: ईष्र्यावश करते हैं. जब कोई दूसरा हमसे बाजी मार ले जाता है, तब उसे चमचा करार देकर खुद को तसल्ली देते हैं.
चमचा का अर्थ सभी जानते हैं, फिर भी शब्दकोश की कृपा से प्राप्त अर्थ आपको बताये देता हूं- ‘यह कलछी की तरह का एक छोटा उपकरण है, जिसमें अंडाकार छोटी कटोरी में लंबी डंडी लगी होती है, और जिससे कोई चीज उठाकर खायी या पी जाती है.’ चमचों को लेकर हमारी जो समझ हैं, उसमें यह अर्थ कितना फिट बैठता है, यह मैं आप पर छोड़ता हूं. मैं तो कहता हूं कि यह दुनिया ही चमचों की है. हम अनायास चमचागीरी में आनंदमग्न हो उठते हैं. चमचे भी अपनी चमचागीरी करवाते हैं. किसी महान व्यक्ति ने कहा है, कि गुलाम लोग ही सबसे अधिक गुलामी कराना चाहते हैं.
यह बात चमचों पर सटीक लागू होती है. दूसरों की चमचागीरी करनेवालों को भी अपनी चमचई करनेवाले प्रिय होते हैं. चमचों के महत्व को हमारे फिल्मकारों ने बहुत अच्छी तरह समझा है. फिल्मों में हीरो के साथ एक चमचा अवश्य ही रहता है. बिना चमचे के तो कोई फिल्म ही नहीं बनती. पहले चमचे की कास्टिंग की जाती है, बाद में हीरो की.
चमचा छोटा हो या बड़ा, लेकिन उसमें कमर तक झुक कर कोर्निश बजानेवाले गुण अवश्य होने चाहिए. रसोई से लेकर सत्ता के गलियारे तक चमचे का ही राज चलता है. बिन चमचे को साधे कोई कार्य संभव नहीं हो पाता. कहा जाता है कि अंग्रेज जब भारत में आए तो अपने साथ चमचा लेकर आये. उन्हें हाथ से खाना नहीं आता था. चमचों के दम पर ही उन्होंने इस देश पर 200 साल राज किया. बड़े-बड़े खिताबों से चमचों को नवाजा गया.
अंग्रेज चले गये, लेकिन चमचे छोड़ गये. चमचा संस्कृति दिन-ब-दिन फलती-फूलती गयी. राजनीति, नौकरी, साहित्य, मीडिया समेत सभी क्षेत्रों में चमचों का दखल है. असफल दिलजलों का कहना है कि चमचों की तीन दवाई- जूता, चप्पल और पिटाई. पर चमचों की पिटाई, असंभव है. ये पूरे शरीर पर तेल लगा कर और तेल की शीशी लेकर निकलते हैं. अगर आप भी इस गुर में पारंगत हैं, यानी चमचागीरी आती है तो आपको भी तरक्की से कोई नहीं रोक सकता.
अगर नहीं आती चमचागिरी, तो सीखिए जनाब, वरना ताकते रह जायेंगे. किसी जाने-माने सर्वव्यापी चमचे की सीख है- ‘‘जीहुजूरी डट कर करो, भले ही दूसरा काम मत करो.’’ आप ‘जी हां, जी हां’ कहना सीखो. बॉस इज आलवेज राइट मंत्र का निरंतर जाप करो. बॉस की नजर में हमेशा बने रहो, फिर तरक्की से आपको कोई नहीं रोक सकता. अगर कोई रोक सकता है तो वह आपसे ज्यादा कारआमद कोई चमचा ही होगा. तो जी-जान से जुट जाइए चमचई के अभ्यास में.

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