इन हालात का जिम्मेवार कौन?
न महफिल अजीब है न मंजर अजीब है/ जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है// न डूबने देता है न उबरने देता है/ उसकी यादों का वो समंदर अजीब है. यह शेर भले ही आपको अपनी महबूबा की याद दिलाता हो, लेकिन जरा इसे झारखंड और यहां की सरकार के संदर्भ में सोच कर देखें, […]
न महफिल अजीब है न मंजर अजीब है/ जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है// न डूबने देता है न उबरने देता है/ उसकी यादों का वो समंदर अजीब है. यह शेर भले ही आपको अपनी महबूबा की याद दिलाता हो, लेकिन जरा इसे झारखंड और यहां की सरकार के संदर्भ में सोच कर देखें, क्या आपको भी मेरी तरह बर्बादी का आलम समझ आता है? भारत की कुल खनिज संपदा का 40} हमारे झारखंड से प्राप्त होता है. फिर भी इसकी इस योग्यता पर सरकार ने कभी गहनता से नहीं सोचा और न ही यहां की सरकार ने इस ओर सोचने के लिए प्रतिबद्ध किया है. हम अपनी चौकड़ी में बैठे रहे और अपना ही राग अलापते रहे.
झारखंड को अलग हुए 14 वर्ष बीत गये. 14 वर्ष के इस किशोर राज्य को इसकी भ्रूणावस्था से ही अच्छे पोषण से वंचित रखा गया. झारखंड की आज वही हालत है जो कुपोषित शिशु की होती है. तीर-धनुष के बल पर झारखंड को अपनी गोद में तो ले लिया, पर इसके लिए अन्न-पानी की व्यवस्था नहीं की गयी. न किसी ने प्यारे हाथ से सहलाया, न ही किसी फूल की तरह खिलने के लिए खाद-पानी दिया गया. यहां की राजनीति में लूट-खसोट की ऐसी बाढ़ आयी कि प्रगति के क्षेत्र में सुखाड़ के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगा यहां की जनता को.
परिणाम यह हुआ कि आज झारखंड कुपोषित दिखने लगा. राज्य की साक्षरता दर 67.6} है, जो भारत में 25वें स्थान पर है. जनसंख्या दर 22.42}, लिंगानुपात 948 प्रति 1000 पुरु ष है जो कि राष्ट्रीय औसत से नीचे है. 14 साल का जवान झारखंड और नौ सरकारें, तीन मर्तबा राष्ट्रपति शासन! कैसी दयनीय स्थिति है! दुखदायी है कि इतनी प्राकृतिक संपदा होने के बावजूद हम निम्न स्तर के पायदान पर भी लड़खड़ाते हुए खड़े हैं.
सुमित कुमार, रांची