जीवन में परिवर्तन के बजाय धर्म परिवर्तन!

किसी धर्म में आस्था या अनास्था व्यक्ति के निजी चयन का विषय है. भारत के संविधान में हर नागरिक को अपनी इच्छानुसार धर्म मानने, उसका प्रचार करने एवं धर्मातरण की स्वतंत्रता है. लेकिन, व्यावहारिक तौर पर सांप्रदायिक विद्वेष फैला कर राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रयास करना भारतीय राजनीति की घृणास्पद सच्चाई बन गयी है. आगरा में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2014 12:26 AM
किसी धर्म में आस्था या अनास्था व्यक्ति के निजी चयन का विषय है. भारत के संविधान में हर नागरिक को अपनी इच्छानुसार धर्म मानने, उसका प्रचार करने एवं धर्मातरण की स्वतंत्रता है. लेकिन, व्यावहारिक तौर पर सांप्रदायिक विद्वेष फैला कर राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रयास करना भारतीय राजनीति की घृणास्पद सच्चाई बन गयी है. आगरा में कूड़ा-कचरा बीन कर जीवन-यापन करनेवाले कुछ मुसलिम परिवारों की हिंदू धर्म में कथित ‘घर-वापसी’ का तमाशा इसी कड़वी सच्चाई का आईना है. इससे भी बड़ा आयोजन 25 दिसंबर को अलीगढ़ में करने की तैयारी चल रही है.

भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने इसमें हर हाल में शामिल होने की बात कही है. भाजपा भले ही विकास के वादे के साथ सत्ता में आयी है, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार से लेकर सत्ता में आने के छह महीने बाद तक उसके कुछ ‘फायरब्रांड’ नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों के क्रियाकलापों पर नजर डालें, तो स्पष्ट होता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आज भी इनकी रणनीति का अहम एजेंडा है. आगरा में जिन लोगों का धर्मातरण किया गया, उन्होंने कहा है कि उनके आधार कार्ड बनवाने के नाम पर यह सब धोखे से किया गया.

फिलहाल पुलिस इसकी जांच कर रही है, लेकिन इस घटना से कुछ जरूरी सवाल खड़े होते हैं. पहला, कुछ पार्टी नेताओं और हिंदुत्व के पैरोकारों की नफरत फैलानेवाली गतिविधियों पर पार्टी और प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं? दूसरा, माहौल बिगाड़नेवाले इस खेल में कानून-व्यवस्था की जिम्मेवारी राज्य सरकार की बतायी जा रही है, फिर भी धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करनेवाली राज्य सरकार इसे रोकने का प्रयास करती क्यों नहीं दिख रही? धर्मातरण की कोशिश अत्यंत गरीब तबकों में ही होती है, क्योंकि वे दो जून की रोटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है. तो बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाएं ऐसे लोगों का कल्याण क्यों नहीं कर पायी हैं? और इन्हें बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के बजाय लालच देकर या जबरन इनका धर्म-परिवर्तन क्यों कराया जा रहा है? अगर इस तरह से नफरत के बीज बोने का खेल तुरंत नहीं रोका गया, तो सांप्रदायिक सद्भाव और लोकतंत्र का भविष्य खतरे में पड़ सकता है.

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