धर्मांतरण पर दोहरी मानसिकता घातक
।।बल्देव भाई शर्मा।। पूर्व संपादक पांचजन्य पिछले सप्ताह आगरा में कुछ मुसलमानों को हिंदू बनाये जाने की घटना ने राजनीतिक तूफान तो खड़ा कर ही दिया है, देश में लंबे समय से चल रहे धर्मातरण के षड्यंत्र की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है. बताया जा रहा है कि आगरा में जिन मुसलमानों ने हिंदू […]
।।बल्देव भाई शर्मा।।
पूर्व संपादक
पांचजन्य
पिछले सप्ताह आगरा में कुछ मुसलमानों को हिंदू बनाये जाने की घटना ने राजनीतिक तूफान तो खड़ा कर ही दिया है, देश में लंबे समय से चल रहे धर्मातरण के षड्यंत्र की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है. बताया जा रहा है कि आगरा में जिन मुसलमानों ने हिंदू धर्म स्वीकार किया है, उनके पुरखे कुछ पीढ़ी पहले हिंदू ही थे और यह धर्मातरण नहीं, उनकी घर वापसी है. भारत का संविधान प्रलोभन से या बलपूर्वक किसी भी मतावलंबी के धर्मातरण को अपराध मानता है, लेकिन जो लोग स्वेच्छा से धर्मपरिवर्तन करते हैं या स्वेच्छा से घर वापसी कर अपने मूल धर्म में वापस लौटना चाहते हैं, उन्हें इसकी छूट है.
प्रख्यात आर्यसमाजी संत स्वामी श्रद्धानंद ने शुद्धिकरण अभियान चला कर करीब एक शताब्दी पहले बड़ी संख्या में उन मुसलमानों को पुन: हिंदू बनने का अवसर दिया था, जिनके पुरखों को मुगलकाल में तलवार का भय दिखा कर जबरन धर्मातरित किया गया. वास्तव में आज के घर वापसी आंदोलन की नींव वहीं से पड़ी. आज सेकुलर जमात आगरा में हुई घर वापसी पर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश में संघ परिवार और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है, क्योंकि कुछ मुसलमान अपने मूल हिंदू धर्म में वापस आ गये. लेकिन, यह कैसी विडंबना है कि बड़ी संख्या में हिंदुओं को मुसलमान या ईसाई बनाये जाने की साजिशों पर वे मौन रहते हैं.
आगरा में संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध यदि कुछ हुआ है, तो अवश्य उस पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन स्वेच्छा से मुसलमानों के हिंदू धर्म में वापस आने पर बावेला खड़ा करना बेमानी है. इस घटना ने धर्मातरण के मुद्दे पर व्यापक सोच-विचार का अवसर भी प्रदान किया है. शायद इसीलिए सरकार ने संसद में हंगामे के दौरान स्पष्ट कर दिया कि विपक्ष सहयोग करे, तो वह धर्मातरण पर रोक के लिए केंद्रीय कानून बनाने को तैयार है.
इससे इस मामले में सरकार की ईमानदारी और मंशा को समझा जा सकता है. लेकिन, सवाल है कि क्या आगरा की घटना पर हंगामा खड़ा करनेवाले लोग धर्मातरण पर रोक संबंधी किसी कानून के लिए तैयार होंगे? क्योंकि पहले जब भी ऐसे किसी केंद्रीय कानून की बात कही गयी, इसे राज्यों का मामला बता कर विरोध जताया गया. शायद वे जानते हैं कि ऐसा सख्त कानून बनने के बाद न केवल उनकी वोट की राजनीति, बल्कि धर्मातरण के लिए यूरोप व खाड़ी देशों से आ रही अरबों की धनराशि भी उनके हाथ से फिसल जायेगी.
सत्तर के दशक में तमिलनाडु के रामनाथपुरम में हजारों की संख्या में हिंदुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना इसी षड्यंत्र का हिस्सा थी. पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर कश्मीर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों तक में हिंदुओं के ईसाईकरण व इसलामीकरण का कारोबार बेतहाशा फल-फूल रहा है. इसके आड़े आनेवालों को स्वामी लक्ष्मणानंद की तरह बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है.
सेवा, शिक्षा और चिकित्सा के नाम पर आदिवासी क्षेत्रों में जिस तरह ईसाई मिशनरीज के धर्मातरण के कारोबार की खबरें आती रही हैं और भोले-भाले आदिवासियों को कभी प्रलोभन देकर, कभी भ्रमित करके, कभी भय और लालच से जबरन ईसाई बनाया जाता है, देश की आजादी के बाद से ही ये घटनाएं सामने आने लगी थीं. ब्रिटिश राज में ईसाई मिशनरियों का इस तरह की साजिशों पर शासन का पर्दा पड़ा रहता था, लेकिन देश स्वाधीन हुआ, तो इस ओर ध्यान जाना स्वाभाविक था.
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मिशनरियों की गतिविधियों की जांच के लिए गठित नियोगी आयोग की 1956 में आयी रिपोर्ट ऐसे तथ्यों से भरी पड़ी है. यह रिपोर्ट सेवा की आड़ में गढ़े गये मिशनरियों के सहृदय और मानवता के पुजारी जैसे चेहरे की विद्रूपता उजागर कर देती है. आदिवासी क्षेत्रों में चल रहे ऐसे कुत्सित प्रयासों पर रोक के लिए सबसे पहले मध्य प्रदेश और ओड़िशा की सरकारों ने धर्मातरण विरोधी कानून बनाये. लेकिन राजनीतिक कारणों से उन पर कितना कारगर अमल हो पाया, इसकी पड़ताल अवश्य होनी चाहिए.
पूर्वोत्तर राज्यों में विशेषकर नागालैंड व मिजोरम में जो अलगाववाद और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां पृथक राष्ट्र की मांग तक पहुंच गयीं और वहां ईसाईकरण की मुहिम में से पैदा हुए फिजो जैसे नेता को भारत सरकार देश निकाला तक देने पर मजबूर हुई, यह धर्मातरण के षड्यंत्र का ही प्रतिफलन था. ब्रिटिश राज में इस इलाके के ईसाईकरण के लिए पादरियों की जिस ‘फौज’ को पाला-पोसा गया, उसी के भरोसे रॉबर्ट रीड और कूपलैंड जैसे ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत के पूर्वोत्तर को ‘क्राउन कॉलोनी’ बनाने का ब्ल्यूप्रिंट तैयार किया.
देश की आजादी के समय अंगरेजी शासन की भरपूर कोशिश रही कि क्राउन कॉलोनी के रूप में वह हिस्सा भारत से अलग इंग्लैंड के आधिपत्य में अंगरेजों की ऐशगाह बना रहे. इन राज्यों में पनपे उग्रवाद और अलगाववाद के पीछे वहां फले-फूले ईसाईकरण की पृष्ठभूमि को नकारा नहीं जा सकता.
इस क्षेत्र की यह मानसिक गढ़न इस कदर घनीभूत होती गयी कि प्रधानमंत्री रहते राजीव गांधी को मिजोरम विधानसभा चुनाव में कहना पड़ा कि यदि वहां कांग्रेस जीती तो बाइबिल की मान्यताओं को राज्य संचालन में प्रधानता दी जायेगी. इससे साफ है कि भारत में जहां-जहां धर्मातरण के द्वारा हिंदुओं की जनसंख्या घटी या हिंदू अल्पमत में हो गये, वहां-वहां राष्ट्र-विरोधी व अलगाववादी गतिविधियों और षड्यंत्रों को बल मिला. पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद, कश्मीर में आतंकवाद और आदिवासी क्षेत्रों में माओवादी नक्सलवाद इसी का नतीजा हैं. एक समय मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पांच मिशनरियों को ऐसी देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होने पर राज्य से बाहर निकाल चुकी है.
आज कश्मीर समस्या भारत की अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी हुई है. छह सौ साल पहले यही कश्मीर हिंदू जनसंख्या वाला था. तलवार के जोर पर राज्य में इसलामीकरण की मुहिम चलायी गयी. इसके विरोध में नौवें सिख गुरु तेगबहादुर साहब को बलिदान देना पड़ा. दिल्ली शीशगंज गुरुद्वारा धर्मरक्षा के लिए दिये गये उसी महान बलिदान का प्रतीक है.
आजाद भारत में संविधान सबको अपने मत-पंथ के अनुपालन की स्वतंत्रता देता है, लेकिन सेकुलरवाद के नाम पर ईसाई और इसलामी ताकतों को हिंदुओं का धर्मातरण करने को अनदेखा करना और लालच या भय के कारण हिंदू धर्म छोड़नेवाले लोग या उनकी संतति फिर से अपने मूल धर्म में वापस आये तो बवाल मचाना, यह सिर्फ वोट की राजनीति है. आगरा की घटना के परिप्रेक्ष्य में देश में चल रहे ईसाईकरण व इसलामीकरण जैसे धर्मातरण के षड्यंत्रों की पड़ताल होनी चाहिए.
आज भी यह सवाल उतना ही प्रासंगिक है कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को आखिर नियोगी आयोग गठित करने की जरूरत क्यों पड़ी? लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देकर धर्मातरण पर दोहरा नजरिया देश-घातक ही साबित होगा कि हिंदुओं को मुसलमान-ईसाई बनाये जाने पर आंखें मूंद लो और हिंदू धर्म में घर वापसी पर हंगामा करो. इसका समाधान कड़ा केंद्रीय कानून बना कर उस पर ईमानदारी से अमल करने पर ही होगा.