प्यार! तुझे जताने के तरीके हजार

पिछले कई दिनों से मेरे सीनियर के नहीं होने की वजह से अखबार की एक डेस्क की जिम्मेवारी मेरे कंधों पर है, जिसकी वजह से रोजाना सुबह से लेकर रात तक का ज्यादातर वक्त दफ्तर में ही बिताना पड़ रहा है. इस वजह से सुबह घर से निकलने की जल्दी होती है. आज भी कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2014 12:46 AM

पिछले कई दिनों से मेरे सीनियर के नहीं होने की वजह से अखबार की एक डेस्क की जिम्मेवारी मेरे कंधों पर है, जिसकी वजह से रोजाना सुबह से लेकर रात तक का ज्यादातर वक्त दफ्तर में ही बिताना पड़ रहा है. इस वजह से सुबह घर से निकलने की जल्दी होती है. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन पापा ने मेरी जल्दी को भांपते हुए खुद ही नाश्ता, लंच सब तैयार कर लिया.

आज मुङो रोटी भी नहीं बनाने दी. मैं तो समय पर घर से निकल गया, लेकिन पापा स्कूल के लिए आधा घंटा लेट हो गये. मैं उन्हें ‘थैंक्स’ नहीं कहूंगा, क्योंकि अपनों को ‘थैंक्स’ नहीं कहते, लेकिन हां, मेरे प्रति उनके प्यार के एहसास ने मेरा दिन जरूर बना दिया. शायद यही प्यार है, जिससे बड़ी चीज दुनिया में और कुछ भी नहीं. यह प्यार हमें किसी भी रूप में मिल जाता है.

घर में सभी भोजन कर लेते हैं. सो जाते हैं, लेकिन मां देर रात तक जगी रह कर इंतजार करती हैं कि बेटा आयेगा, तो उसके साथ खाऊंगी, यह उनका प्यार होता है. दीदी जानती है कि मेरा भाई काम में बहुत व्यस्त है. फोन नहीं कर पाता. इसलिए खुद ही फोन कर लेती हैं. फोन पर बोलती भी हैं कि बहुत व्यस्त हो गये हो. फिर भी फोन करना नहीं भूलतीं. यह प्यार है. दफ्तर में सहकर्मी टिफिन खोलते हैं, तो खाने के लिए बुलाते हैं. जिद करते हैं. यह उनका प्यार है. कॉलेज में मैं दोस्तों से अपने नोट्स शेयर करता था, उनके प्रति यह मेरा प्यार था. वे मेरे बिना कोई पार्टी नहीं करते थे, मेरे लिए यह उनका प्यार था. प्यार के पलों को याद करो तो न जाने कितने ही पल याद आ जाते हैं, जिनकी वजह से यह जिंदगी आबाद है. इंटर की पढ़ाई जीआइसी, इलाहाबाद से की थी. लॉजिक के टीचर देख नहीं सकते थे. एक हफ्ते के लिए मैं पटना आ गया, तो उन्होंने एक हफ्ते तक आगे का चैप्टर नहीं पढ़ाया. यह उनका प्यार था.

हाल ही में दिल्ली गया. भैया के पास पहुंचने में देर हो गयी, तो शाम तक उन्होंने खाने के लिए मेरा इंतजार किया. यह उनका प्यार था. मेरे दोस्त ने मुझसे लड़ाई की और फिर रात में मैसेज करके कहा कि उसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, यह उसका प्यार है. एक बार एक अंधे वृद्ध को रास्ता पार करा दिया, तो उन्होंने मेरे हाथों में एक टॉफी रख दी. यह उनका प्यार था. जब बेंगलुरु में रहता था और एक दिन रात में लौटते वक्त बहुत देर हो गयी, तो एक होटल चलानेवाली आंटी ने होटल खोल कर मुङो खाना खिलाया, यह उनका प्यार था. ऑटो में सफर करते वक्त ऑटो चालक से बात होती है. उतरते वक्त वह मुस्कुराता है, यह भी कुछ पलों में पैदा हुआ प्यार ही है. हम सबको एक-दूसरे से रोज प्यार होता है. हम रोज प्यार देते हैं और प्यार पाते हैं. तभी तो यह दुनिया इतनी प्यारी है. आखिर हम जैसे प्यारे-प्यारे लोग जो यहां के बाशिंदे हैं. चलते-चलते आप सब से कहता हूं, ‘मुङो आपसे प्यार है.’

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

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