बेकार की बातों में फंसी सरकार

मार्क्‍स ने कहा था कि जरूरी मुद्दों को दबाने के लिए गैर-जरूरी मुद्दों को जोर से उठाया जाना जरूरी है. सरकार बनाने के पहले और उसके बाद की घटनाओं के संदर्भ में मोदी सरकार की करनी पर नजर डाली जाए, तो मार्क्‍स का कथन सही लगता है. सरकार बनाने के पहले महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कालाधन, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2014 1:18 AM

मार्क्‍स ने कहा था कि जरूरी मुद्दों को दबाने के लिए गैर-जरूरी मुद्दों को जोर से उठाया जाना जरूरी है. सरकार बनाने के पहले और उसके बाद की घटनाओं के संदर्भ में मोदी सरकार की करनी पर नजर डाली जाए, तो मार्क्‍स का कथन सही लगता है.

सरकार बनाने के पहले महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कालाधन, मुद्रास्फीति, पाकिस्तान-चीन की घुसपैठ, राजनैतिक भ्रष्टाचार आदि मुद्दे मोदी जी प्राय: प्रत्येक भाषणों में शामिल रहा है. सरकार बनते ही ये सारे मुद्दे दब गये. अब सफाई अभियान, जन धन योजना, बच्चों को संबोधित करना आदि गैरजरूरी मुद्दे उठने लगे हैं. मीडिया ने इसे आम जनता का सवाल बना दिया.

छह महीने से भी अधिक समय हो गया, पर योजना आयोग का कायाकल्प नहीं हो सका. मोदी ने सरकार में आते ही देश के ग्रामीण व शहरी इलाकों में विकास की योजना बनानेवाली संस्था को बंद कर दिया. इतना ही नहीं, देश की जनता को उलझाने के लिए इनके मंत्रियों और सांसदों के मुखारविंद से एक सोची-समझी रणनीति के तहत असंसदीय अल्फाज निकल रहे हैं. पूंजीपतियों को लाभान्वित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में श्रम कानून संशोधन बिल-2014 पास कर दिया गया. अब बीमा बिल की बारी है. जब यूपीए सरकार ने बीमा में 49 फीसदी एफडीआइ का बिल पेश किया, तो इन्हीं भाजपाइयों ने जम कर विरोध किया था. आज देश की स्थिति यूपीए कार्यकाल से भी बदतर होती दिख रही है. विनिवेश से अधिक जरूरी जनता की क्रयशक्ति को बढ़ाना और इसके लिए पूंजी का विकेंद्रीकरण जरूरी है, जिसे सरकार नहीं कर रही है. सरकार वह सबकुछ कर रही है, जिससे देश के आम नागरिक का कोई वास्ता नहीं है. इस पर ध्यान देना जरूरी है.

गणोश कुमार वर्मा, हजारीबाग

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