जो जैसा सोचता है उसे वैसा ही जीने का अधिकार होना चाहिए. उसका राजनीतिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल गलत है. सांप्रदायिकता के सवाल को ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं है. यह निगल जानेवाली डिवाइस है. यह असहनीय और अन्यायपूर्ण है.
वर्तमान सरकार लोकसभा में पिछली सरकार के मुकाबले बहुमत होने के बावजूद रोज-ब-रोज समस्याओं से घिर रही है और कामकाज प्रभावित हो रहा है. यह सब नरेंद्र मोदी के सहयोगियों की टिप्पणी और कारनामों की वजह से हो रहा है. पिछले हफ्ते मैंने एक मंत्री के बारे में लिखा था. इस हफ्ते एक साथ दो बातें ऐसी हुईं, जो बड़ी समस्याओं का कारण बनीं. पहली समस्या भाजपा के एक सांसद द्वारा अनावश्यक रूप से गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करने के कारण खड़ी हुई. साधु से सांसद बने नेता ने एक निहत्थे बुजुर्ग पर गोली चलानेवाले को देशभक्त कह डाला. मैं इसे ज्यादा तूल देने के पक्ष में नहीं हूं, क्योंकि सब जानते हैं कि यह संघ का पुराना दृष्टिकोण है.
इस मुद्दे को पब्लिक के बीच लाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इससे संसद का कार्य प्रभावित होगा, जैसा कि हुआ भी. शुरू में मोदी सख्त थे और मंत्रियों से भी संसद में सख्ती से बरताव किया. दूसरी समस्या, जो दिख नहीं रही है, वह सरकार की तरफ से हथियार डाल देने की समस्या है. धर्म परिवर्तन का मुद्दा भाजपा को लंबे समय से परेशानियों में डालता रहा है. पार्टी की आमतौर पर यह धारणा बनी हुई है कि हिंदू ही इसलाम या ईसाई में परिवर्तित हुए हैं. आज के दौर में धर्म परिवर्तन के ऐसे बहुत कम मामले प्रकाश में आते हैं. आमतौर पर जो मामले सामने आते हैं वह आस्था की वजह से नहीं, बल्कि उसके पीछे विवाह बड़ा कारण होता है.
इस हफ्ते मामला इसके बिल्कुल उलट था. आगरा में इस बार मुसलिमों का धर्म परिवर्तन कराया गया. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार ‘लगभग 250 लोग हवन (शुरुआती संस्कार) प्रक्रिया में शामिल हुए’. कार्यक्रम में शामिल हुए झुग्गी झोपड़ियों में रहने और कूड़ा बीननेवाले लोग थे. स्थानीय हिंदूवादी कार्यकर्ताओं ने इनको राशन कार्ड और अन्य जरूरी सुविधाओं का लालच देकर कार्यक्रम में शामिल कराया था. झुग्गियों में रहनेवाली सेलिना ने बताया कि उसे धर्म परिवर्तन कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. ‘कार्यक्रम के दौरान हमें बताया गया कि जो पंडित कर रहे हैं, वही हमें भी करना है.’ एक मुसलिम के हाथ में मूर्ति थमा दी गयी. एक अन्य निवासी मुमताज ने बताया कि उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने के लिए किसी ने बाध्य नहीं किया, बल्कि सभी लोग कार्यक्रम में स्वेच्छा से शामिल हुए थे.
मुङो यह बहुत बड़ा मुद्दा नहीं लगता, लेकिन उर्दू मीडिया में इसकी कठोर आलोचना की गयी. हिंदुस्तान के पुराने और प्रभावी उर्दू अखबार ‘इंकलाब’ ने इस पर संपादकीय टिप्पणी करते हुए हेडलाइन दिया-‘झूठ, धोखा और बदतरीन फिरका-परस्ती.’ उधर, संसद में विपक्षी दल अक्रामक मुद्रा में आ गये. भाजपा ने बचाव की मुद्रा में जवाब देते हुए कहा कि वह खुद धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाना चाहती है. इस मुद्दे पर बहस को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. विपक्ष इस मुद्दे को जितना उछालेगा, भाजपा को उतना ही अपने वास्तविक तर्को पर आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. तब यह बात सामने आयेगी कि सभी प्रकार के धर्म परिवर्तन अवैध तौर पर हुए हैं और इस पर सरकार का नियमन होना चाहिए. यह धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का मामला है.
विश्व हिंदू परिषद् से जुड़े मेरे मित्र अशोक चोगुले ने इस मुद्दे पर गांधी जी के मत का जिक्र किया है- ‘मैं किसी व्यक्ति द्वारा किसी के धर्म परिवर्तन को गलत मानता हूं. हमें किसी की आस्था का निरादर नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे उसकी आस्था के प्रति मददगार बनना चाहिए. इससे सभी धर्मो में सत्य के प्रति सम्मान बढ़ेगा. यह वास्तविक मानवता का प्रतीक है और इस बात की पुष्टि है कि सभी धर्मो में एक माध्यम से दैवीय प्रकाश हासिल किया जाता है.’ उन्होंने धर्म परिवर्तन कराने वाले के खिलाफ भी बोला है. उन्होंने कहा कि एक अनैतिक उद्देश्य पूरी शिक्षा का सत्यानाश कर देता है. यह बिल्कुल जहर की एक बूंद की तरह होता है, जो पूरे भोजन को विषाक्त कर देता है. इसलिए हमें प्रवचन देने की बजाय काम करना चाहिए. गुलाब के फूल को उपदेश देने की जरूरत नहीं होती है, इसकी सुगंध अपने आप फैलती है. सुगंध ही सही मायनों में इसका उपदेश होता है. धर्म और आध्यात्मिक जीवन की सुगंध गुलाब की सुगंध के मुकाबले कहीं ज्यादा बेहतर और तीक्ष्ण होती है.
भारतीय संविधान में इस मुद्दे पर बहस हुई है और इसका कानून स्पष्ट है. अनुच्छेद-25 में सभी भारतीयों को ‘अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र वृत्ति, धार्मिक क्रिया-कलाप व प्रचार’ का अधिकार दिया है.’
6 दिसंबर, 1948 को संविधान सभा में इस मुद्दे पर बहस हुई थी. बहस के दौरान लोकनाथ मिश्र ने कहा था ‘वास्तव में दुनिया के किसी भी संविधान ने धर्म के प्रसार को मूल अधिकार नहीं माना है और न ही यह न्यायोचित है.’ मिश्र ने कहा कि क्राइस्ट या मोहम्मद ने क्या देखा व क्या कहा, इस बात को लेकर हमारा कोई विवाद नहीं होना चाहिए. हमें सबका सम्मान करना चाहिए. मेरे मत के अनुसार वैदिक सभ्यता भी अलग नहीं है. दुनिया के प्रत्येक दर्शन व सभ्यता का अपना-अपना स्थान है. (धर्म के लिए अतिरेक खतरनाक है). यह चिंताजनक तरीके से लोगों को बांटता है. वर्तमान संदर्भ में ‘अनुच्छेद 19’ के तहत ‘प्रसार’ शब्द का क्या मतलब हो सकता है. इसका मतलब केवल हिंदू सभ्यता, हिंदू जीवन दर्शन और तौर-तरीकों का नाश करना हो सकता है. इसलाम ने हिंदू विचारों का विरोध करने की घोषणा कर दी है. क्रिश्चियन शांतिपूर्ण तरीके से पिछले दरवाजे से परिवर्तन की नीति अपनाते हैं. इसका कारण यह है कि हिंदुत्व अपनी सुरक्षा के लिए बाधाओं को स्वीकार नहीं करता है. हिंदुत्व का नजरिया समेकित है और यह जीवन दर्शन और विश्व बंधुत्व पर आधारित है. लेकिन, हिंदुत्व की उदारता का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और हिंदू सभ्यता पर राजनीति की चाल चली जा रही है. भारत में आज के दौर में धर्म बड़े उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि आक्रामकता, गरीबी और कट्टरता के उदेश्यों के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है. आधुनिक युग पावर पॉलिटिक्स का है और अंदर का व्यक्ति गुबार में अदृश्य हो गया है. जो जैसा सोचता है उसे वैसा ही जीने का अधिकार होना चाहिए. उसका राजनीतिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जाना गलत है. सांप्रदायिकता के सवाल को ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं है. यह निगल जानेवाली डिवाइस है. यह असहनीय और अन्यायपूर्ण है. मिश्र वास्तव में बदलाव को प्रभावित नहीं कर पाये और आंबेडकर के नेतृत्व में उदारवादी पूरे दिन चिल्लाते रहे.
इस मुद्दे पर विपक्ष को सरकार पर हमला करने से पहले यह ध्यान में रखना चाहिए कि धर्म के मुद्दे पर उदारवादी कानून रखनेवाला भारत इस उपमहाद्वीप में बहुत असामान्य देश है. इससे ऐसी घटना न खड़ी हो जाये, जिससे इस कानून की पुनर्समीक्षा हो.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
aakar.patel@me.com